हक की बात : …तो पत्नी को होगा अबॉर्शन का अधिकार, क्या शादी में रेप क्राइम है, जानिए हर जरूरी सवाल के जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया ऐतिहासिक फैसले में शादीशुदा महिलाओं को अबॉर्शन का अधिकार दिया है, बशर्ते वह पति के रेप से प्रेग्नेंट हुई हो। आखिर क्या है मैरिटल रेप, क्या ये क्राइम है, इसे लेकर कानून क्या कहता है, हक की बात सीरीज के इस अंक में आज ऐसे ही सवालों के जवाब।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मैरिटल रेप के कारण गर्भवती हुई कोई महिला अगर प्रेग्नेंसी टर्मिनेट कराना चाहती है तो यह उसका हक होगा। अदालत ने कहा है कि एमटीपी (मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी) एक्ट के तहत रेप के दायरे में मैरिटल रेप भी आएगा। वैसे मैरिटल रेप आईपीसी के तहत अभी अपराध नहीं है। उसे अपराध के दायरे में लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की दूसरी बेंच के सामने मामला पेंडिंग है, जिसका परीक्षण सुप्रीम कोर्ट करने वाला है। ‘हक की बात’ (Haq Ki Baat) सीरीज के इस अंक में आज बात मैरिटल रेप और उससे जुड़े सवालों की।

पहले कानून में प्रावधान यह भी था कि अगर पत्नी नाबालिग है और उम्र 15 साल से ज्यादा है तो उसके साथ पति द्वारा बनाया गया संबंध रेप के दायरे में नहीं आएगा। लेकिन अक्टूबर 2017 में आए सुप्रीम कोर्ट के एक जजमेंट ने इस अपवाद को निरस्त कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अगर पत्नी 15 साल से लेकर 18 साल के बीच है और पति उसकी मर्जी के खिलाफ उससे संबंध बनाता है तो पत्नी अपने पति के खिलाफ रेप का केस दर्ज करा सकती है। यानी नाबालिग पत्नी मैरिटल रेप की शिकायत कर सकती है। लेकिन पत्नी अगर बालिग है, तो मौजूदा कानूनी प्रावधान के तहत वह अपने पति के खिलाफ रेप का केस दर्ज नहीं करा सकती।

हाई कोर्ट में हो चुकी है बहस
इस संबंध में दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल एक अर्जी में मांग की गई थी कि मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में लाया जाना चाहिए। इसमें कहा गया था कि लड़की अगर शादीशुदा नहीं है तो उसकी मर्जी के खिलाफ संबंध रेप की श्रेणी में आता है। लेकिन अगर वह शादीशुदा है तो उसकी मर्जी के खिलाफ संबंध रेप की परिभाषा में नहीं आता, जो समानता के अधिकार का उल्लंघन है। दूसरी ओर केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हाई कोर्ट को बताया था कि इस मुद्दे पर राज्य सरकारों और अन्य हितधारकों के साथ परामर्श के बाद ही केंद्र सरकार अपना रुख तय करके कोर्ट के सामने रखने की स्थिति में होगी। उन्होंने जोर देते हुए कहा था कि चूंकि इस मामले का सामाजिक और पारिवारिक जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है, इसलिए केंद्र परामर्श प्रक्रिया के बाद ही अपना पक्ष रखेगा। वैसे पहले केंद्र ने कहा था कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने से शादी संस्था की बुनियाद हिल जाएगी और पतियों को प्रताड़ित करने का टूल मिल जाएगा।

भारत में ‘मैरिटल रेप’ पर छिड़ी है बहस
जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस सी हरिशंकर की बेंच ने इस मुद्दे पर अपनी अलग-अलग राय दी। जस्टिस शकधर ने विवादित छूट को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया, तो जस्टिस हरिशंकर ने छूट को संवैधानिक मानते हुए इसे बरकरार रखा। मैरिटल रेप मामले का अब सुप्रीम परीक्षण होगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करते हुए भी इस बहस के कुछ जरूरी पहलुओं पर एक नजर डाल लेना ठीक होगा-

  • -मैरिटल रेप को कानून के दायरे में लाने की वकालत करने वालों का कहना है कि रेप केस में उक्त अपवाद संविधान के अनुच्छेद-14 ही नहीं 21 का भी उल्लंघन करता है।
  • – संविधान का अनुच्छेद-14 समानता की बात करता है, जबकि संविधान के अनुच्छेद-21 में राइट टु लाइफ एंड लिबर्टी की बात है। जाहिर है, जीवन की गरिमा भी इससे जुड़ी हुई है। लेकिन आईपीसी में जो प्रावधान है उससे शादीशुदा महिला की गरिमा प्रभावित होती है।
  • – सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले ने एमटीपी एक्ट के तहत मैरिटल रेप को मान्य बताकर बहस को नई दिशा जरूर दे दी है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में एक फैसले में व्यवस्था दी थी कि अगर पत्नी नाबालिग है और उसके पति ने मर्जी के खिलाफ संबंध बनाए हैं तो वह रेप का केस दर्ज करा सकती है।
  • – एडल्टरी कानून को गैर संवैधानिक करार देते हुए भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह कानून महिला को पति का गुलाम और उसकी संपत्ति की तरह बनाता है। शीर्ष अदालत ने कहा था कि स्वायत्तता का अधिकार, व्यक्तिगत इच्छा का अधिकार और गरिमा का अधिकार संवैधानिक है और इसी दायरे में सेक्सुअल स्वायत्तता भी आती है।
  • – अगर निजता के अधिकार के जजमेंट को देखें तो उसमें भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि निजता के मूल में व्यक्तिगत घनिष्ठता, पारिवारिक जीवन, शादी, प्रजनन, घर, सेक्सुअल ओरिएंटेशन- सब कुछ है।

जाहिर है, कोर्ट के अब तक के आदेशों की दिशा उम्मीद पैदा करती है। फिर भी फैसला आने से पहले कुछ भी कहना कयासबाजी करना ही होगा, इसलिए उसमें उतरना बेमानी है। बहरहाल, इतना तो तय है कि जब मामले का परीक्षण होगा तो सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट से इस बहस को नई दिशा मिलेगी।