बिहार में इसी महीने होने वाले नगर निकाय के चुनाव आरक्षण के मुद्दे पर स्थगित कर दिया गया। आरक्षण एक ऐसा मुद्दा है, जिसे लेकर देश में बड़े पैमाने पर राजनीति की जाती है। बिहार में तो आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर से जोर पकड़ने लगा है। जेडीयू पूरी तरह इसे भुनाने के लिए रणनीति पर काम कर रही है तो बीजेपी की ओर से जोरदार काउंटर अटैक किया जा रहा है।
नील कमल, पटना : देश में मंडल-कमंडल का बवंडर खड़ा करने वाले राजनीतिक दलों के लिए जाति आधारित राजनीति और आरक्षण का मुद्दा किसी संजीवनी से कम नहीं है। देश में किसी भी राज्य में जब भी चुनाव की तारीख नजदीक आती है, तब जातीय राजनीति करने वाले राजनीतिक दल ‘आरक्षण’ का मुद्दा जरूर उठाते हैं। हालांकि बिहार में फिलहाल कोई चुनाव नहीं है लेकिन स्थानीय निकाय के चुनाव में अति पिछड़ा/पिछड़ा वर्ग के आरक्षण पर पटना हाईकोर्ट के रोक लगाए जाने के बाद एक बार फिर से ‘आरक्षण’ की राजनीति शुरू हो चुकी है।
बिहार में फिर उठाया जा रहा आरक्षण का मुद्दा
बिहार में नगर निकाय चुनाव में पिछड़ा अतिपिछड़ा के आरक्षण के सवाल पर दायर की गई याचिका पर सुनवाई हुई। पटना उच्च न्यायालय ने ये कहा कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत बिना ट्रिपल टेस्ट के अतिपिछड़ा वर्ग को आरक्षण दे दिया है, जो कानूनन सही नहीं है। पटना हाईकोर्ट ने अपने फैसले में ये भी स्पष्ट किया कि नियम के अनुसार ही आरक्षण की व्यवस्था हो। तब तक स्थानीय निकायों में ओबीसी के लिए आरक्षण की अनुमति नहीं दी जा सकती, जब तक राज्य सरकार 2010 में सुप्रीम कोर्ट के निर्धारित तीन टेस्ट को पूरा नहीं कराती।
कोर्ट के फैसले में सियासत ने खोजा मौका
पटना हाईकोर्ट के फैसले के बाद सियासत का दौर शुरू हुआ। नीतीश कुमार के नेतृत्व में चल रहे महागठबंधन की सरकार ने केंद्र सरकार और बीजेपी की साजिश करार दिया। भारतीय जनता पार्टी को आरक्षण विरोधी मानसिकता का बता दिया। जेडीयू और आरजेडी के नेताओं ने ये भी कहना शुरू कर दिया कि बीजेपी शुरू से ही सोशल जस्टिस के खिलाफ काम करती रही है। जेडीयू की ओर से ये भी कहा गया कि अगर केंद्र की मोदी सरकार जातीय जनगणना करा लेती तो इस तरह की नौबत नहीं आती। पटना हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद महागठबंधन की ओर से 2015 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के उस बयान को भी प्रचारित किया जाने लगा, जिसमें उन्होंने आरक्षण की समीक्षा करने की बात कही थी।
2015 वाली स्थिति 2024 और 2025 में नहीं
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि देश में अब आरक्षण के मुद्दे पर राजनीतिक दलों को वोट नहीं मिलने वाले। विशेषज्ञों का मानना है कि 2014 के बाद देश काफी बदल चुका है और अब देश की जनता को बरगलाना मुश्किल है। आपको बता दें कि 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव के ठीक पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने लखनऊ में ये कहा था कि समय आ चुका है कि अब आरक्षण की समीक्षा की जानी चाहिए। बिहार विधानसभा चुनाव के ऐन पहले मोहन भागवत के इस बयान को लालू प्रसाद यादव ने हाथों हाथ लिया था। आरजेडी सुप्रीमो ने बिहार विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान जनता को ये समझाने में सफल रहे थे कि बीजेपी आरक्षण विरोधी है और वो धीरे-धीरे आरक्षण को खत्म कर देगी।
2015 में आरक्षण पर दांव खेल गए थे लालू
लालू प्रसाद यादव के इस दांव से नीतीश लालू की जोड़ी ने विधानसभा में 150 से अधिक सीटों पर जीत हासिल कर महागठबंधन की सरकार बनाई थी। जानकारों का कहना है कि उस वक्त केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार को महज एक साल ही हुए थे। तब जनता को ये नहीं पता था कि केंद्र में बैठी मोदी सरकार ओबीसी, एसटी/एससी के लिए क्या काम करने जा रही है?
केंद्र में 27 OBC, EBC, SC-ST और 5 अल्पसंख्यक समुदाय के मंत्री
केंद्र के नरेंद्र मोदी की सरकार के दूसरे कार्यकाल में 78 मंत्रिमंडल वाली सरकार में ओबीसी (OBC) के 27 मंत्रियों को शामिल किया गया है, जिनमें से 19 अतिपिछड़ी जातियों से हैं। इसके अलावा 15 राज्यों से आने वाले ओबीसी समुदाय के पांच मंत्रियों को कैबिनेट रैंक भी दी गई है। इतना ही नहीं मोदी मंत्रिमंडल में पांच मंत्री अलग-अलग अल्पसंख्यक समुदाय आने वाले सांसदों को भी जगह दी गई है। आपको बता दें कि नरेंद्र मोदी कैबिनेट में शामिल 12 मंत्री दलित समुदाय (SC) और 8 मंत्री शेड्यूल ट्राइब्स (ST) वर्ग से आते हैं। इसके साथ ही अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले जिन 5 सांसदों को मोदी मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है, उनमें एक मुस्लिम, एक सिख, दो बौद्ध और एक इसाई समुदाय से आते हैं।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिलाना नरेंद्र मोदी की सरकार की बड़ी उपलब्धियों में से एक है। पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा मिल जाने से आयोग को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के बराबर दर्जा प्राप्त हो चुका है। बीजेपी का कहना है कि आयोग को संवैधानिक दर्जा प्राप्त होने से पिछड़ी जातियों को न्याय मिल सकेगा। इसके अलावा नरेंद्र मोदी ने सभी सांसदों और विधायकों के साथ कार्यकर्ताओं को ये निर्देश दिया था कि SC/ST और दलितों के सशक्तिकरण के लिए केंद्र सरकार की ओर किए जा रहे काम को जनता के बीच रखें ताकि वे सुविधाओं का लाभ उठा सकें।
2014 से अब तक का कार्यकाल देख चुकी जनता
राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो देश की जनता नरेंद्र मोदी के 8 साल के कार्यकाल को बेहद करीब से देख चुकी है। पॉलिटिकल पंडितों का कहना है कि इंटरनेट के इस दौर में अब कोई भी नेता जनता को बरगला नहीं सकता। जनता अब समझदार हो चुकी है, वो नेताओं की कही जाने वाली बातों को इंटरनेट पर तलाश कर ये जान लेती है कि नेता झूठ बोला है या सच।
इसी तरह अब बीजेपी और नरेंद्र मोदी को आरक्षण विरोधी या सोशल जस्टिस के खिलाफ बताया जाना भी विपक्ष पर भारी पड़ सकता है। क्योंकि 5G के इस दौर में देश की 140 करोड़ जनता में से 115 करोड़ लोग मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं। उनमें से 80 करोड़ लोग इंटरनेट के जरिए दुनिया से जुड़े रहते हैं। जाहिर है इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाली जनता सोशल मीडिया और गूगल के माध्यम से नरेंद्र मोदी के सरकार के कार्य और विपक्ष की टिप्पणियों पर भी नजर रख रही है। इसलिए किसी प्रकार का झूठ बोलकर या अफवाह फैलाकर किसी भी राजनीतिक दल के खिलाफ जनता को खड़ा करना सभी राजनीतिक दलों के लिए बेहद मुश्किल भरा काम हो गया है।