Order regarding local holiday

अब शूलिनी माता मंदिर में मिलेगा ‘भोग’ प्रमाणीकृत प्रसाद

देवालय भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। प्रत्येक भारतीय अपने जीवन के आरम्भ से लेकर अन्त तक किसी न किसी रूप में देवालयों के माध्यम से ईश्वर से जुड़ा रहता है। हमारी दिनचर्या देवालय दर्शन से आरम्भ होती है। देवभूमि हिमाचल प्रदेश को अपनी नयनाभिराम संस्कृति के साथ-साथ असंख्य मंदिरों के लिए भी जाना जाता है।


हिमाचल के प्रत्येक जिले को अपने अनूठे उत्पादों के साथ-साथ उन विशिष्ट देवी-देवताओं के मंदिरों के लिए जाना जाता है जो जिला विशेष की संस्कृति और आस्था का अभिन्न अंग हैं। इन मंदिरों में प्रतिदिन बड़ी संख्या में लोग एकत्र होकर अपनी तथा अपने परिजनों की सुरक्षा की कामना करते हैं। मंदिरों से प्राप्त प्रसाद को अमृत माना जाता है। प्रदेश सरकार सघन प्रयासों के माध्यम से यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रही है कि आस्था के इन केन्द्रों में आने वाले श्रद्धालुओं को सुरक्षित एवं स्वच्छ प्रसाद उपलब्ध हो। इस दिशा में प्रदेश सरकार की सार्थक पहल को सफल बनाने का बीड़ा उठाया है हिमाचल प्रदेश स्वास्थ्य सुरक्षा एवं नियमन निदेशालय ने। 


हिमाचल प्रदेश स्वास्थ्य सुरक्षा एवं नियमन निदेशालय ने भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) की देखरेख में प्रदेश सरकार की इस सार्थक पहल को पूर्ण किया है। प्रदेश सरकार के इन प्रयासों का ही परिणाम है कि सोलन की अधिष्ठात्री मां शूलिनी को समर्पित माता शूलिनी मंदिर और सोलन में ही स्थापित एशिया के सबसे ऊंचे शिव मंदिर जटोली को ‘भोग’ के तहत प्रमाणीकृत कर दिया गया है। 


‘भोग’ अर्थात ईश्वर को आनंदपूर्ण स्वच्छ चढ़ावा। यह एक प्रकार का प्रमाण पत्र है जो भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण द्वारा प्रदान किया जाता है। भोग का मुख्य उद्देश्य श्रद्धालुओं को पूजा के उपरांत मिलने वाले प्रसाद की गुणवत्ता एवं स्वच्छता सुनिश्चित बनाना है। प्रमाण पत्र प्रदान करने से पूर्व प्रसाद तैयार करने वालों को आधारभूत खाद्य सुरक्षा के सम्बन्ध में प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। मंदिर के आसपास प्रसाद विक्रय करने वालों को भी प्रशिक्षण दिया जाता है। तदोपरांत मानकों के अनुसार सम्बन्धित मंदिर का फाइनल आॅडिट किया जाता है और उचित व्यवस्थाओं के अनुरूप प्रमाण पत्र प्रदान किया जाता है।

सोलन जिला के मां शूलिनी एवं जटोली मंदिर प्रदेश के क्रमशः प्रथम एवं द्वितीय मंदिर हैं जहां सभी हितधारकों को आवश्यक प्रशिक्षण के उपरान्त भोग प्रमाण पत्र प्रदान किया गया है। शिमला जिला के सुप्रसिद्ध जाखू मंदिर एवं संकट मोचन मंदिर को भी भोग प्रमाणीकरण के तहत लाया गया है। 
सोलन के दोनों मंदिरों के भोग प्रमाणीकरण पूर्व प्रशिक्षण में प्रसाद तैयार करने के समय अपनाई जाने वाली सावधानियों की पूर्ण जानकारी दी गई है।


कोविड-19 के उपरांत मंदिर खुलने पर भोग प्रमाणीकरण जहां श्रद्धालुओं को स्वच्छ एवं सुरक्षित प्रसाद उपलब्ध करवाएगा वहीं इस दिशा में सभी को जागरूक करने का साधन भी बनेगा।
सोलन स्थित मां शूलिनी एवं जटोली स्थित शिव मंदिर को भोग के तहत प्रमाणीकृत किए जाने से प्रदेश के अन्य मंदिरों को प्रमाणीकृत करने की दिशा में प्रदेश सरकार के निर्देशानुसार कार्य प्रगति पर है। राज्य सरकार के यह प्रयास वास्तविक अर्थों में आनंदपूर्ण प्रसाद उपलब्ध करवाने की दिशा में सार्थक सिद्ध होंगे और निकट भविष्य मेें हिमाचल को प्राकृतिक सौन्दर्य, समृद्ध देव संस्कृति तथा स्वच्छ एवं आन्नददायक प्रसाद के लिए जाना जाएगा।