वाणी प्रकाशन ग्रुप से प्रकाशित साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित लेखिका अलका सरावगी की दो पुस्तकों- ‘कुलभूषण का नाम दर्ज कीजिए’ और ‘तेरह हलफनामे’ (अनुवाद, सहयोग: गरुत्मान) पर परिचर्चा समारोह का आयोजन नई दिल्ली स्थित साहित्य अकादेमी सभागार में सम्पन्न हुआ.
उत्तर-उपनिवेशवाद और अनुवाद अध्ययन के विद्वान हरीश त्रिवेदी ने लेखिका अलका सरावगी के रचनाकर्म की प्रशंसा करते हुए कहा कि अलका सरावगी हर बार खुद को एक अच्छी कथावाचक साबित करती हैं.
युवा आलोचक वैभव सिंह ने कहा कि कुलभूषण की कथा सिर्फ कुलभूषण की नहीं है यह पूर्वी बंगाल के पीड़ितों की कथा है. ये एक ऐसे समय का उपन्यास है जिसमें धर्म और भगवान तक ने हमारा साथ छोड़ दिया है.
कहानीकार और कवि रोहिणी अग्रवाल ने कहा कि पुस्तकों में पात्र बहुत मिलते हैं लेकिन पात्र के भीतर मनुष्य को खोजना और मनुष्य के भीतर भविष्य गढ़ने वाले नायक को स्थापित करने की दृष्टि अलका सरावगी के पास है. इसलिए ‘कुलभूषण का नाम दर्ज कीजिए’ अपने समय का मील का मील का पत्थर है.
लेखिका अलका सरावगी ने कहा कि उनकी कथाओं के जो पात्र हैं वे असल जीवन से लिए गए पात्र हैं. ये कोई मनगढ़ंत या बनाए हुए पात्र नहीं हैं. उन्होंने कहा कि जब भी वे कुलभूषण के बारे में सोचती हैं लगता है कि हम सभी के जीवन में उस भूलने वाले बटन की आवश्यकता है. यह उपन्यास लिंगीय राजनीति से कोसों दूर है. विभाजन की पीड़ा और मनुष्य की मनुष्यता बचाने की जद्दोजहद को करीब से समझता है.
वाणी प्रकाशन ग्रुप के चेयरमैन व प्रबन्ध निदेशक अरुण माहेश्वरी ने कहा कि पुस्तक में इतिहास प्रेम और मानवीयता के साथ-साथ सबसे बड़ा जो गुण पाठ की निरन्तर पठनीयता है. जिससे यह पुस्तक पाठकों के मध्य लोकप्रिय हुई है. ऐसी ही पुस्तकें कालजयी कृतियों के रूप में जानी जाती हैं. कार्यक्रम का संचालन वाणी प्रकाशन ग्रुप की कार्यकारी निदेशक अदिति माहेश्वरी गोयल ने किया.