सुशील पाल/पुष्कर. राजस्थान में जगत पिता तीर्थ राज पुष्कर का एक जायका ऐसा है, जिसकी मिठास दुनिया भर तक है. भारत के कई शहरों में मालपुआ बनाया जाता है, लेकिन जब बात मालपुए के सबसे बेहतरीन स्वाद की होती है तो पुष्कर के रबड़ी से बने मालपुए का नाम सबसे पहले आता है. रबड़ी के मालपुआ की मिठास ऐसी होती है कि पुष्कर आने वाला कोई भी शख़्स इसे खाए बिना रह नहीं पाता है.
पुष्कर में श्री राधे मिष्ठान भंडार के अंकुश न्यूज़ 18 लोकल से बात करते हुए बताते है कि इसकी शुरुआत उनके दादाजी ने पुष्कर में की थी. कुछ दशक पहले तक पुष्कर में तीन चार दुकानों पर ही मालपुए बनाए जाते थे, लेकिन प्रसिद्धि बढ़ने के साथ ही अब यहां 15 से अधिक दुकानों पर मालपुए बनाए और बेचे जा रहे हैं. पुष्कर के पानी की मिठास और तासीर कुछ ऐसी है कि मालपुए में यहां का पानी ही स्वाद पैदा करता है. दुकान मालिक अंकुश के मुताबिक़ उनके यहां पहले रबड़ी को बनाया जाता है. ये रबड़ी सिर्फ़ मालपुए के लिए तैयार की जाती है. उसके बाद इसे मालपुआ बनाने के लिए उपयोग में लिया जाता है.
पुष्कर में मालपुए ऐसे बनाए जाते है
न्यूज़ 18 लोकल से बात करते हुए अंकुश बताते है कि रबड़ी के मालपुओं को बनाने में दूध व मैदा काम में लिया जाता है. दूध को लगातार उबालने के बाद गाढ़ा किया जाता है. इस रबड़ीनुमा दूध में मैदा मिलाकर घोल बनाया जाता है. फिर इस घोल से देशी गर्म घी में डालकर जालीदार मालपुए बनाए जाते है. इनकी कड़क सिकाई के बाद मालपुओं को एक तार की चासनी में डुबो दिया जाता है.
हर रोज़ कितना बिकता है मालपुआ
पुष्कर में मालपुए की बिक्री की बात करें तो यहां प्रतिदिन लगभग 500 किलो से अधिक मालपुओं की बिक्री होती है. ये बिक्री पुष्कर फ़ेयर और सावन के महीने में और बढ़ जाती है. कार्तिक मास व पुष्कर मेला भरने के दौरान प्रतिदिन करीब 1000 किलो मालपुए तक पुष्कर में बिकते हुए दिखाई देते है.
12 महीने होती है मालपुए की बिक्री
पुष्कर तीर्थ आने वाले लोग मालपुए का स्वाद लेना कभी नहीं भूलते, भले ही मौसम गर्मी का हो या सर्दी का. पुष्कर के रबड़ी मालपुए 12 महीने बनाए और खाए जाते है। पुष्कर के इन मालपुओं का स्वाद देश-दुनिया तक प्रसिद्ध है.