हिमाचल सरकार ने ओल्ड पेंशन योजना को लेकर मामला केंद्र सरकार के समक्ष उठाया है। इसके लिए ही अधिकारियों की कमेटी बनाकर सहानुभूतिपूर्वक कोई रास्ता निकालने के भी प्रयास कर रहे हैं। मुख्यमंत्री ने विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव की चर्चा का जवाब देते हुए सदन में ये बात कही। उन्होंने कहा कि कांग्रेस जितनी सरलता से ओपीएस बहाली की बात कर रही है, यह मामला उतना सरल नहीं है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों से उन्होंने इस मुद्दे पर व्यक्तिगत तौर पर बात की है, लेकिन ये राज्य भी ओपीएस को अभी तक बहाल नहीं कर पाए हैं।
उन्होंने प्रदेश में ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने की मांग कर रहे कर्मचारियों से आग्रह करते हुए कहा कि वे राजनीतिक झांसे में न आएं। उन्होंने कहा कि वह कांग्रेस की सरकार थी, जिसने प्रदेश में ओपीएस को लागू किया था। ऐसे में उसे आज कर्मचारियों को जवाब भी देना चाहिए। सीएम ने कहा कि इसी तरह कांग्रेस ने अपने समय में वादा किया था कि ‘नो वर्क, नो पे’ को हटाया जाएगा, लेकिन इस पर कुछ नहीं किया। इसी तरह बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता देने का ऐलान घोषणा पत्र में किया गया था, लेकिन उस पर भी कुछ नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि सभी अपने भविष्य के लिए प्रयत्न करते हैं। कई वर्ग अपनी-अपनी मांग उठा रहे हैं और सरकार उनकी समस्याओं को सहानुभूतिपूर्वक सुलझाने की कोशिश कर रही है।
बागबानों को भडक़ा रहे
मुख्यमंत्री ने कहा कि सेब बागवानों से जुड़े मुद्दे पर राजनीति की जा रही है। पेकेजिंग मेटिरियल पर जीएसटी छह फीसदी बढऩे के चलते उनकी सरकार ने छह फीसदी सबसिडी दी है। इसी तरह एमआईएस का बकाया चुकता किया जा रहा है। कांग्रेस तथा माकपा राजनीतिक हित को साधने के लिए बागबानों की नाराजगी को हवा दे रहे है। पूर्व मुख्य सचिव को लेकर लगाए आरोपों पर सीएम ने कहा कि जो व्यक्ति सदन में मौजूद नहीं, उसके बारे में कुछ नहीं कहना चाहिए। सीएम ने माना कि जीएसटी लागू होने से प्रदेश को नुकसान हुआ है। हालांकि जीएसटी एकत्रीकरण में बढ़ोतरी हुई है और प्रदेश की आर्थिकी पटरी पर लौट रही है।
2016 में धांधली किसने दबाई
मुख्यमंत्री ने कहा कि जब उन्हें सूचना मिली कि पेपर लीक हुआ तो तत्काल लिखित परीक्षा रद्द करने के आदेश दिए। इसके साथ ही पुलिस को एफआईआर दर्ज करने को कहा। इसके बाद एसआईटी गठित की। पेपर रद्द करने के पीछे मंशा यह थी कि कोई शंका न रहे। बाद में सीबीआई को रैफर करने के आदेश दिए। सीबीआई ने अभी तक न हां की और न ही न कही है। ऐसे में जब तक सीबीआई जांच नहीं करतीए तब तक एसआईटी जांच करती रहे। इस मामले में 204 लोगों को गिरफ्रतार किया गया। उन्होंने कहा कि 2016 में भी पुलिस भर्ती पेपर लीक हुएए इस पर कोई कार्रवाई तत्कालीन सरकार ने नहीं की।
लोन पर तुक्के मारते हैं कांग्रेस नेता
शिमला – हिमाचल विधानसभा के मानसून सत्र में अविश्वास प्रस्ताव पर जारी चर्चा के बीच मुख्यमंत्री ने राज्य सरकार द्वारा लिए गए लोन और हेलिकॉप्टर पर उठाए गए सवालों का आंकडों के साथ जवाब दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस के कई विधायक लोन को लेकर तुक्के मार रहे हैं। कोई 80000 करोड लोन बताता है, कोई 90000 करोड़, तो कोई 17000 करोड़, जबकि वास्तविकता कुछ और है। अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा में विपक्ष के आरोपों के बीच हस्तक्षेप करते हुए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने लोन और हेलिकॉप्टर को लेकर कांग्रेस विधायकों की ओर से लगाए गए आरोपों के जवाब दिए। जयराम ठाकुर ने कहा कि कांग्रेस सरकार के पिछले पंाच साल के दौरान 40000 करोड़ तक लोन पहुंच गया था और कुल वृद्धि 67 फीसदी थी, जबकि उनकी सरकार के अब तक के कार्यकाल में लोन 64904 करोड़ है और वृद्धि 35 फीसदी है। हेलिकॉप्टर में उडऩे के आरोपों पर सीएम ने कहा कि यह आरोप हास्यास्पद हैं, क्योंकि हिमाचल सरकार के पास 1993 से हेलिकॉप्टर है। पहले बड़ा हेलीकॉप्टर होता था, लेकिन वह अब छोटा हेलिकॉप्टर यूज कर रहे हैं और यह सभी राज्यों में सबसे सस्ता है। सरकार को कामकाज के लिए दूरदराज क्षेत्रों में भी जाना होता है और उसके लिए ही हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल होता है। वह निजी कामों के लिए हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल नहीं करते। हालांकि कांग्रेस विधायक को खासकर जगत सिंह नेगी का यह आरोप था कि मुख्यमंत्री शिमला से सोलन जाने के लिए भी हेलिकॉप्टर की उड़ान भर रहे हैं, इस पर कांग्रेस को आपत्ति है।
चर्चा के लिए कम समय देने से नाराज विपक्ष ने किया वॉकआउट
मानसूत्र सत्र में विपक्ष द्वारा लाया गया अविश्वास प्रस्ताव ध्वनिमत से गिर गया। गुरुवार को सदन में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा हुई, लेकिन जब मुख्यमंंत्री के जवाब देने का समय आया तो विपक्षी सदस्य चर्चा के लिए कम समय दिए जाने के विरोध में सदन से वॉकआउट कर गए। मुख्यमंत्री ने कहा कि सत्तापक्ष के सदस्यों ने चर्चा के दौरान विपक्ष को मुंहतोड़ जवाब दिया है। उन्होंने कहा कि सदन में सत्तापक्ष के सदस्यों की संख्या विपक्ष से दोगुना है। ऐसे में होना यह चाहिए था कि एक सदस्य वहां से बोलता और दो यहां से बोलते, लेकिन फिर भी विपक्ष को अपनी बात रखने का पूरा मौका दिया गया।