आम की कई किस्में होती है। इन्हीं में से एक है मियाजाकी आम। ये दुनिया की सबसे महंगी आम की किस्म है। अब इसकी खेती बिहार में भी होने लगी है। कटिहार के युवा किसान प्रशांत चौधरी ने मियाजाकी आम के अलावा सेब और लीची की खेती शुरू की है।
कटिहार: एक तरफ जहां आज लोगों का खेती-किसानी से मोहभंग हो रहा है, वहीं कुछ युवा अब सभी के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन रहे है। कटिहार के रहने वाले प्रशांत चौधरी ने भी अपनी मेहनत से खेती-किसानी को एक नया आयाम दिया है। एमआईटी की डिग्री प्राप्त प्रशांत चौधरी दिल्ली में कंप्यूटर इंजीनियरिंग की नौकरी करते थे, लेकिन वे नोकरी छोड़कर अपने गांव लौट आए। अब गांव में ही अपने 15 एकड़ जमीन में बागवानी करने लगे। प्रशांत चौधरी के बाग में अमरूद, निम्बू, पपीता, सेव, इलायची, संतरा, कॉफी, आम, जपानी लीची, काली मिर्च, काली हल्दी, लॉन्ग, इंडियन चंदन, अगर वुड, महोगनी लगे हुए हैं। सबसे बड़ी बड़ी खासियत इनकी बागवानी में यह है कि यहां मियां जाकी नामक आम का पौधा भी लगा हुआ है। जो मियां जाकी आम इंटरनेशनल बाजार में दो लाख रुपये से ढाई लाख रुपया किलो बिकता है। उन्होंने बताया कि जापान के एक शहर मियाजाकी में इसे उगाया जाता है, इस कारण इसका नाम भी उसी शहर पर पड़ा। मियाजाकी आम में एंटी ऑक्सीडेंट, बीटा-कैरोटी और फोलिक एसिड जैसे गुण होते है। इसमें शुगर 15 प्रतिशत या अधिक होती है। इस किस्म की खेती के लिए तेज धूप और अधिक बारिश की आवश्कता होती है।
अब 48 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी सेब की खेती
सेब की खेती को लेकर पहले ये माना जाता था कि ये हिमाचल प्रदेश और कश्मीर जैसी ठंडी वादियों में ही संभव है। लेकिन अब सेब की खेती बिहार में भी संभव है। कृषि वैज्ञानिकों ने सेब की कई किस्मों को विकसित किया है। प्रशांत चौधरी भी ‘अन्ना’ नामक सेब की प्रजाति को अपने गार्डेन में लगाया है। सेब के ये पौधे 48 से 50 डिग्री सेल्सियस में भी लहलहाएंगे।
थाईलैंड की लीची, आधा दर्जन किस्म के अमरूद और अन्य फलों का उपज
प्रशांत चौधरी अपने गार्डेन में थाईलैंड की लीची से लेकर छह किस्म के अमरूद, पपीता और नींबू समेत कई फलों का भी उत्पादन कर रहे है। वे संतरा, बेर, चंदन, नाशपाती, काठ बादाम, इलायची, काली मिर्च और लॉन्ग की खेती के अलावा अन्य कई तरह के आम और लीची की खेती कर रहे है। फलदार वृक्ष के साथ प्रशांत चौघरी कई कीमती लकड़ियों के पौधे को भी गार्डेन के किनारे लगाया है। इससे पूरा गार्डन हरा-भरा नजर आता है। वहीं इन कीमती लकड़ियों से आने वाले 10-12 साल में उन्हें करोड़ों रुपये की कमाई होगी। उनकी की खेती और बागवानी की सबसे खास बात है कि वे अपने फसलों में रासायनिक खाद का प्रयोग नहीं करते हैं। पूरी तरह से ऑर्गेनिक खाद का ही इस्तेमाल करते हैं। प्रशांत कुमार की खेती की चर्चा अब कटिहार, पूर्णिया और अन्य जिलों में होने लगी है। आधुनिक और विविधता भरी उनकी खेती को देख कृषि वैज्ञानिक भी दांतो तले उंगली दबा लेते हैं।