नई दिल्ली. यह सुनने में ही कितना खतरनाक और जोमिख भरा लगता है कि देश में हर साल अप्रूवल पाने वाली 30 फीसदी दवाएं किसी काम की नहीं होतीं. इन्हें खाने से आपकी बीमारी पर तो कोई असर नहीं होगा, अलबत्ते इनके साइड इफेक्ट की वजह से आपको दूसरी बीमारियां घेर लेंगी.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, केरल और अमेरिका के डॉक्टरों की संयुक्त रिसर्च में यह बात सामने आई है कि कई गंभीर रोगों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाएं पूरी तरह बेअसर हैं. बावजूद इसके अप्रूवल देने की लचर व्यवस्था का लाभ उठाकर कंपनियां इन दवाओं को बाजार में धड़ल्ले से बेच रही हैं. इन दवाओं में आर्थराइटिस, सेक्सुअल डिस्ऑर्डर, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल डिजीज, स्किन डिजीज और सांस से जुड़ी बीमारियां शामिल हैं. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बिना प्रॉपर जांच के अप्रूवल देने का यह खेल करीब 10 साल से चल रहा है.
रिपोर्ट की सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि इन दवाओं के असर की बात तो छोडि़ए इनसे होने वाले नुकसान पर भी ठीक से शोध नहीं किया जाता है. दरअसल, ड्र्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया की ओर से इन दवाओं को ऑटोमेटिक अप्रूवल मिलता है, क्योंकि इन्हें स्टेट ड्र्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट की ओर से पहले ही अनुमति मिल चुकी होती है. एक तथ्य यह भी है कि देश में हाल फिलहाल के वर्षों में किसी भी दवा को उसकी खराब गुणवत्ता या साइड इफेक्ट की वजह से वापस नहीं लिया गया.
क्या है शोध का आधार
यह शोध न्यूयॉर्क के रोजवेल पार्क स्थित कैंसर सेंटर में रक्त और कैंसर विभाग की प्रमुख आर्या मरियम रॉय, न्यूयॉर्क के स्टोनी ब्रूक यूनिवर्सिटी के रेचल जोंस और केरल के एक मेडिकल कॉलेज की कैंसर विज्ञानी डॉ अजू मैथ्यू की संयुक्त टीम ने किया है. ‘साइंस डाइरेक्ट’ में प्रकाशित इस अध्ययन में उन दवाओं को शामिल किया गया, जिन्हें हाल के वर्षों में भारत में अप्रूवल दिया गया और इन्हीं दवाओं को अमेरिका, यूरोप व कनाडा में लाया गया.
भारत में धड़ल्ले से बिक रहीं दूसरी जगह प्रतिबंधित दवाएं
शोध के अनुसार, भारत में कई ऐसे गैर कैंसर दवाओं को अप्रूवल दिया गया जिन्हें अमेरिका, यूरोप और कनाडा ने अपने यहां जारी करने से मना कर दिया. शोध में भारत की दवा अप्रूवल व्यवस्था में बड़े सुधार की जरूरत बताई गई है. डॉ मैथ्यू ने कहा कि दूसरे देशों में दवाओं को अप्रूवल देने के बाद भी उनकी निगरानी की जाती है. लेकिन, भारत में खराब व्यवस्था की वजह से ऐसी दवाओं का कोई आंकड़ा नहीं जुटाया जाता है.
क्या बदलाव लाना होगा
ड्र्रग कंट्रोलर पीएम जायान का कहना है कि भारत में फील्ड ट्रायल के बाद ही दवाओं को अप्रूवल मिलता है, लेकिन इसकी लिमिटेशन है. फील्ड ट्रायल के दौरान डॉक्टर दवाओं के सभी साइड इफेक्ट की जानकारी नहीं देते, सिर्फ बड़े मामलों को छोड़कर. बेहतर होगा कि इन दवाओं की बाजार में बिक्री के बाद भी मॉनिटरिंग की जाए. इसके अलावा विदेशी दवा विनिर्माता कंपनियां भारत में सस्ती कीमत पर दवा लांच करती हैं, जिससे यहां आसानी से अप्रूवल मिल जाता है. दूसरे देशों में इसके लिए उन्हें भारी-भरकम राशि खर्च करनी पड़ती है.