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प्रकृति ने अपने बनाए हर जीव को इतना सक्षम बनाया है कि वो अपना निर्वाह कर सके. इंसान बिना हाथ पैर के अपाहिज है मगर ऐसे जीव भी हैं जो केवल रेंग सकते हैं. पक्षी जो कमजोर हैं उन्हें पंख दिए हैं ताकि वो खतरे से बचने के लिए उड़ सकें, और इसी उड़ान की मदद से अपना भोजन ढूंढ सकें.
हम इंसान केवल अपने विषय में सोच कर ही सारा जीवन गुजार देते हैं. बहुत कम ही ऐसे इंसान होंगे जिन्होंने इन बेजुबान पशु पक्षियों के बारे में गहराई से सोचा होगा. आप सबने टीवी या कभी सामने से गिद्ध को जरुर देखा होगा. गिद्ध का अपने भोजन की तरफ एक टक देखना इतना प्रचलित है कि अगर किसी चीज पर हम ज्यादा देर नजरें गड़ा देते हैं तो कोई न कोई कह ही देता है कि ‘गिद्ध नजर’ से देख रहा है.
बदसूरत माने जाते हैं गिद्ध
Wikimedia Commons
गिद्धों को इतना बदसूरत माना जाता है कि बच्चों के लिए दिखाए जाने वाले कार्टून में भी हमेशा इनका नकारात्मक रूप ही दिखता है. गिद्ध होते भी तो कितने हैं! मगर इन सब से अलग जो अहम बात है वो ये कि इन्हें भी कुदरत ने उसी तरह गढ़ा है जैसे कि हम इंसानों को और इन्हें भी जीने का उतना ही हक़ है जितना कि हमें.
आपको बता दें कि ये बदसूरत दिखने वाला ये पक्षी ईको सिस्टम के लिए बेहद जरूरी है. एक तरह से प्रकृति ने जो ये चक्र बनाया है उसमें साफ सफाई का काम इन गिद्धों का ही है. यही गिद्ध हैं जो फसल बर्बाद करने वाले कीड़ों से ले कर जहर और बीमारी फैलाने वाले सड़े हुए शवों को अपना भोजन बना कर उनका सफाया करते हैं.
आसमान से ऊंची है इसकी उड़ान
A committee of Himalayan griffon, Eurasian griffon and Long-billed vulture. | Prakash Mehta
उड़ने वाले पक्षियों में गिद्धों की उड़ान सबसे ऊंची होती है. इसकी सबसे ऊंची उड़ान को रूपेल्स वेंचर ने 1973 में आइवरी कोस्ट में रिकार्ड किया था, जिसकी ऊंचाई 37,000 फीट थी. ये किसी एवरेस्ट (29,029 फीट) की ऊंचाई से काफी अधिक है. इतनी ऊंचाई पर दूसरे पक्षी ऑक्सीजन की कमी के कारन दम तोड़ देते हैं.
गिद्दों को लेकर हुए अध्ययनों से उनके हीमोग्लोबिन और ह्दय की संरचना से संबंधित कई ऐसी विशेषताओं के बारे में पता चला, जिनके चलते वो असाधारण वातावरण में भी सांस ले सकते हैं. गिद्ध भोजन की तलाश में एक बड़े इलाके पर नजर डालने के लिए अक्सर ऊंची उड़ान भरते हैं.
सबसे ज्यादा मांस खाने वाला जीव
Cinereous vulture, Himalayan and Eurasian griffon feeding on a carcass | Prakash Mehta
आपको क्या लगता है कि जंगली जानवरों को अपना आहार बनाने वाले पशु पक्षियों में सबसे आगे कौन होगा, शेर, हाइना, तेंदुए, चीते, जंगली कुत्ते या गीदड़ इत्यादि ? नहीं इनमें से कोई नहीं. आपको ये जान कर शायद हैरानी हो कि अफ्रीका के गिद्ध इन सबसे आगे हैं. उदाहरण के तौर पर आप अफ्रीकी क्षेत्र सेरेंगेती को ले सकते हैं. यहां एक अनुमान के मुताबिक हर साल मृत पशुओं का सड़ा मांस और कंकाल कुल चार करोड़ टन से अधिक होते हैं. मांसाहारी जीव (स्तनधारी) इसके केवल 36 प्रतिशत हिस्से को खा सकते हैं और बाकी गिद्धों के हिस्से में आता है. इस संसाधन के लिए जीवाणु और कीड़े गिद्धों से मुकाबला करते हैं, लेकिन इसके बावजूद गिद्ध ही सबसे बड़े उपभोक्ता हैं.”
भोजन की तलाश में निकल जाते हैं दूर
Long-billed vulture | Prakash Mehta
गिद्ध अपने भोजन के लिए काफ़ी अधिक दूरी तय कर सकते हैं. रूपेल्स वेंचर ने एक गिद्ध को तंजानिया स्थित अपने घोंसले से उड़ात भरते हुए केन्या के रास्ते सूडान और ईथोपिया तक सैर करते हुए कैमरे में क़ैद किया.
शोधकर्ताओं के एक अंतरराष्ट्रीय दल ने पाया कि सूखे के दौरान केन्या के मसाई मारा रिजर्व से ये पक्षी जंगली हिरणों का पीछा करते हुए अपने भोजन की तलाश में दूसरे स्थानों तक जाते हैं.
जब गिद्धों को बताया गया जासूस
Reuters
सीमाओं को पार करने की इस आदत के कारण इन पक्षियों को परेशानी भी उठानी पड़ती है. एक बात तो सऊदी अरब में स्थानीय मीडिया ने इन पक्षियों पर “इजराइल का जासूस” होने का आरोप भी लगा दिया.
तुर्की के गिद्ध अपने पैरों पर पेशाब करते हैं और उनकी ये आदत आपको भले ही अच्छी न लगे, लेकिन वैज्ञानिकों का अनुमान है कि उनकी इस आदत से उन्हें बीमारियों से बचने में मदद मिलती है. सड़े हुए मांस पर खड़े होने के कारण गिद्धों के पैरों में गंदगी लग जाती है और ऐसा अनुमान है कि गिद्धों के पेशाब में मौजूद अम्ल उनके पैरों को कीटाणुओं से मुक्त बनाने में मदद करता है.
बिजली के खंबों का करते हैं उपयोग
Reuters
दक्षिण अफ्रीकी केप गिद्ध एक सीध में करीब 1000 किलोमीटर तक की दूरी तय करने के लिए बिजली के विशाल खंभों का अनुसरण करते हैं. ऐसी मानवनिर्मित चीज़ों की मदद लेने के अपने जोखिम भी हैं. बिजली के खंभों पर ठहरने या घोंसला बनाने से तारों से चिपक जाने और करंट लगने का जोखिम रहता है.
बिजली के तार निजी खेतों से भी गुजरते हैं और भोजन की तलाश में इन स्थानों पर घूमने के दौरान ज़हर की चपेट में आने की आशंका भी बनी रहती है.
ड्राई फ्रूट के भी शौकीन होते हैं गिद्ध
Representational Image
ये सही है कि गिद्धों को सड़ा हुआ मांस और मृत पशुओं को खाने के लिए जाना जाता है, लेकिन सभी गिद्ध केवल सड़ा हुआ मांस नहीं खाते हैं. जैसा कि नाम से ही ज़ाहिर होता है पाम नट वल्चर (गिद्ध) कई तरह के अखरोट, अंजीर, मछली और कभी कभी पक्षियों को भी खाता है. कंकालों के मुक़ाबले इसे कीड़े और ताजा मांस पसंद है. गिद्धों की सबसे बड़ी अफ्रीकी प्रजाति लैप्पेट-फेस्ड वल्चर के पंख 2.9 मीटर तक चौड़े होते हैं और इसे मुर्गी के जिंदा बच्चे भोजन के रूप में अधिक पसंद हैं.
बिर्डड वल्चर दुनिया का एक मात्र ऐसा जानवर है जो अपने भोजन में 70 से 90 प्रतिशत तक हड्डियों को शामिल कर सकता है और उनके पेट का अम्ल उन चीजों से भी पोषक तत्व ले सकते हैं, जिसे दूसरे जानवर छोड़ देते हैं. गिद्धों के पेट का अम्ल इतना शक्तिशाली होता है कि वो हैजे और एंथ्रेक्स के जीवाणुओं को भी नष्ट कर सकता है जबकि दूसरी कई प्रजातियां इन जीवाणुओं के प्रहार से मर सकती हैं.
कम हो रहे हैं गिद्ध
Egyptian vulture | Prakash Mehta
आपने इन गिद्धों की विशेषता तो जान ली अब इनके ऊपर आई मुसीबत के बारे में भी जान लीजिए. क्या आप जानते हैं पिछले एक दशक के दौरान भारत, नेपाल और पाकिस्तान में गिद्धों की तादात में 95 प्रतिशत तक की कमी आई है और ऐसे ही रुझान पूरे अफ्रीका में देखे गए हैं.
असल में इनके विलुप्त होने का एक मुख्य मुख्य कारण जो सामने आया है वो है पशुओं को दी जाने वाली विषैली दवा. इन दवाओं के कारण गिद्धों की प्रजनन क्षमता समाप्त होती जा रही है जिसके चलते इनकी संख्या में भरी गिरावट देखी जा रही है. ये पक्षी जिन शवों को खाते हैं, उसके द्वारा इनके शरीर में जहर पहुंच रहा है.
ये भी है एक कारण
BCCL
जबकि दूसरा एक कारण ये भी सामने आया है कि इन्हें इस लए भी मारा जा रहा है कि कहीं ये नियमों को ताक पर रख कर शिकार करने वालों का भांडा न फोड़ दें. असल में जब ये किसी हाथी या गैंडे को मरा हुआ पाते हैं तो शोर मचाते हैं जिस वजह से गैरकानूनी काम करने वालों को अपने पकड़े जाने का भय हो जाता है.
Amusing Planet/Towers of Silence
सबसे पहले पारसी समुदाय के लोगों ने इस बात पर ध्यान दिया कि गिद्धों की संख्या में भरी कमी आ रही है. असल में पारसी समुदाय पिछले करीब तीन हजार वर्षों से मरणोपरांत शवों के दोखमेनाशिनी नाम से अंतिम संस्कार की परंपरा को निभाते आ रहा है. इस परंपरा को निभाने के लिए ये लोग पूर्णत: गिद्धों पर ही निर्भर होते हैं. क्योंकि गिद्ध ही मृतक के शव को अपना भोजन बनाते हैं. अब जब गिद्ध ही नहीं रहेंगे तो फिर भला इनके संस्कार को कैसे पूरा किया जाएगा.
असल में गिद्ध मुर्दाखोर होते हैं, लिहाजा ये पर्यावरण को संतुलित रखने में अपनी भूमिका निभाते हैं. गिद्धों का इस तरह से कम होना चिंता का विषय है. ये अच्छी बात है कि इनकी सुरक्षा के प्रति जागरूक करने और इनका महत्व समझाने के लिए हर वर्ष सितम्बर के पहले शनिवार को अंतरराष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस मनाया जाता है.