ऊना. हिमाचल प्रदेश में ऊना जिला के गांव मैडी के रहने वाले अक्षय ने दिव्यांगता को हराकर अपने सपनों को पाने में कामयाबी हासिल की है. एक हादसे में अपने दोनों हाथ गंवाने के बाद भी अक्षय ने अपनी मेहनत के दम पर बीए एलएलबी की पढ़ाई पूरी करने के बाद अब कोर्ट में वकालत शुरू कर दी है. दरअसल जब अक्षय सातवीं में था तो गन्ने का जूस निकालने वाली मशीन में उसके दोनों हाथ बुरी तरह पिस गए थे, लेकिन अक्षय ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी मंजिल को पाने में सफलता हासिल कर ली.
ऊना जिला के अंब उपमंडल के मैड़ी गांव के अक्षय कुमार के दोनों हाथ वर्ष 2007 में गन्ने का जूस निकालने वाली मशीन में बुरी तरह से पिस गए थे. इस हादसे के बाद उसके दोनों हाथों को कोहनियों तक काटना पड़ा. उस समय अक्षय सातवीं कक्षा के छात्र थे. साधारण परिवार से संबंधित अक्षय व उसके माता-पिता, भाई-बहनों के लिए यह हादसा किसी बड़े आघात से कम नहीं था. परिवार का होनहार बच्चा अपने दोनों हाथ गवां चुका था.
परिजनों को अपने लाडले के भविष्य की चिंता सता रही थी. वहीं इस दर्दनाक हादसे से उबरने की कोशिश में जुटे अक्षय के मन में कुछ और ही चल रहा था. दोनों हाथों के घाव भरने के बाद अक्षय ने पेन पकड़ने का अभ्यास शुरू किया. दोनों कोहनियों के साथ पेन पकड़कर कागज पर लिखने की कोशिश करने के साथ वह पेटिंग का अभ्यास भी करता रहा. इसी दौरान उसने अपनी पढ़ाई चालू रखी.
दसवीं कक्षा की परीक्षा मैड़ी के हाई स्कूल में दी और पेपर लिखने के लिए सहायक की सेवाएं ली, लेकिन परीक्षा में अपेक्षित अंक नहीं आए. इसका मूल कारण वह बताते हैं कि उसके सहायक ने लिखने के दौरान काफी गलतियां की थी. इसके चलते उसने अगली कक्षा में स्वयं ही लिखने की ठानी और नैहरियां के वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल से अपनी प्लस टू की परीक्षा उर्तीण की.
एडवोकेट अक्षय कुमार ने इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा. अंब के महाराणा प्रताप कॉलेज में बीए में प्रवेश लिया और 79 प्रतिशत अंकों के साथ बीए की परीक्षा उर्तीण की. इसके बाद उसने एलएलबी करने की ठानी और हरोली के बढेड़ा में स्थित हिम कैप्स लॉ कालेज प्रवेश लेकर अपनी मेहनत के दम पर प्रथम श्रेणी में परीक्षा पास की. अब अक्षय ने अंब अदालत वकालत का कार्य शुरू कर दिया है.
अपने दोनों हाथ गवां चुके अक्षय कुमार अपनी दैनिक दिनचर्या में भी दूसरों पर निर्भर नहीं है. कपड़े बदलने से लेकर, नहाने, धोने व खाना पीना वह स्वयं करते हैं. इसके अलावा घर के छोटे-बड़े काम भी वह करके परिजनों का हाथ भी बंटाते हैं.
एडवोकेट अक्षय कुमार ने कहा कि उन जैसे हजारों लोग किसी न किसी हादसे में अपने अंग गवाकर दिव्यांग का जीवन जीने पर मजबूर है। लेकिन ऐसे लोगों को अपने जीवन में हार नहीं माननी चाहिए, बल्कि लगातार प्रयत्नशील रहकर संघर्ष कर स्वावलंबी व आत्म सम्मान से जीने की कला सीखनी चाहिए.
वहीं हिमकैप्स लॉ कॉलेज बढेड़ा के चेयरमेन देसराज राणा ने कहा कि अक्षय कुमार ने अपने दोनों हाथ न होने के बावजूद बीए व एलएलबी की परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में उर्तीण कर अन्य विद्यार्थियों के लिए उदाहरण प्रस्तुत किया है. वहीं असंख्य दिव्यांगजनों को भी दूसरों पर निर्भर न रहकर आत्मसम्मान से जीने की राह दिखाई है.