टैक्स सेविंग बनाम टैक्स-फ्री: किस तरह की स्कीम में निवेश करना आपके लिए अधिक फायदेमंद? जानिए

नई दिल्ली. आज के समय में सब जानते हैं कि निवेश करना बेहद जरूरी है. लेकिन निवेश की शुरुआत में क्या-क्या जानकारियां आपके पास होनी चाहिएं, इसके बारे में अधिकतर लोगों को मालूम नहीं होता. ऐसी ही एक चीज है कि टैक्स सेविंग इंस्ट्रूमेंट्स (साधन) और टैक्स फ्री इंस्ट्रूमेंट्स में से कौन-सा आपके लिए बेहतर विकल्प होगा?

ताज्जुब नहीं होना चाहिए, यदि बहुत-सारे लोगों को टैक्स बचाने वाले इंस्ट्रूमेंट्स और टैक्स फ्री इंस्ट्रूमेंट्स का फर्क मालूम न हो. यदि आप भी नहीं जानते तो फिक्र करने की जरूरत नहीं है. हम आज आपको इनके बीच का फर्क तो बताएंगे ही, साथ ही आप ये समझ पाएंगे कि आपके लिए इन दोनों में से कौन-सा फायदेमंद है.

टैक्स बचाने वाले इंस्ट्रूमेंट्स
किसी भी स्कीम के टैक्स सेविंग के फीचर से निवेशक अपनी टैक्सेबल इनकम अथवा कर लगने योग्य आय से डिडक्शन क्लेम कर सकते हैं. यह इस पर निर्भर करता है कि सरकार ने डिडक्शन की ऊपरी लिमिट क्या तय की है. हालांकि, टैक्स सेविंग फीचर होने का मतलब यह नहीं है कि इंस्ट्रूमेंट से मिलने वाले ब्याज या रिटर्न या गेन पर टैक्स में छूट मिलेगी. ऐसे इंस्ट्रूमेंट पर मिलने वाली ब्याज/रिटर्न/लाभ और मैच्योरिटी वेल्यू कर-मुक्त हो भी सकती है या नहीं भी.

इस तरह के टैक्स सेविंग फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट्स में FD पर मिलने पर टैक्सेबल ब्याज/रिटर्न/लाभ, सीनियर सिटिजन सेविंग्स स्कीम, नेशनल सेविंग्स सर्टीफिकेट, प्रधान मंत्री वय वंदना योजना (PMVVY), जीवन बीमा कंपनियों की पेंशन योजनाएं और टैक्स की बचत करने वाले बॉन्ड शामिल होते हैं.

टैक्स-फ्री स्कीमें
इसमें टैक्स-फ्री फीचर कुछ इस तरह का होता है कि निवेशक को इस स्कीम के ब्याज या रिटर्न पर टैक्स नहीं देना होता, और न ही उसे मैच्योरिटी पर कोई टैक्स देना होता है. इसमें यह जरूरी नहीं है कि मिलने वाले ब्याज या रिटर्न या लाभ और मैच्योरिटी वेल्यू पर निवेशक को टैक्स बचाने वाला लाभ भी मिलेगा. इस तरह की स्कीमों में टैक्स सेविंग का लाभ मिल भी सकता है और नहीं भी. टैक्स फ्री मैच्योरिटी वाले साधनों में टैक्स-फ्री बॉन्ड्स, सोवेरन गोल्ड बॉन्ड्स (SGB) जैसे इंस्ट्रूमेंट आते हैं. इनकी मैच्योरिटी बेशक टैक्स-फ्री होती है, लेकिन इस पर टैक्स-सेविंग का लाभ नहीं मिलता.

दोनों लाभ देने वाले इंस्ट्रूमेंट्स
ऐसा नहीं है कि आपको दोनों में से एक ही विकल्प चुनना होगा. एक तीसरी तरह का विकल्प भी मौजूद होता है, जिसमें आप दोनों तरह के लाभ दे सकते हैं. मतलब जब आप सेविंग करेंगे तो टैक्स भी बचा पाएंगे और मैच्योरिटी वेल्यू पर भी कोई टैक्स नहीं देना होगा.

इस तरह की स्कीमों EEE कैटेगरी में आती हैं, जिसे कहा जाता है – निवेश, ब्याज/रिटर्न और मैच्योरिटी पर टैक्स में छूट. इस तरह के कुछ साधनों में पब्लिक प्रोविडेंट फंड (PPF), सुकन्या समृद्धि योजना (SSY), और यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान्स (ULIPs) शामिल हैं.

कुछ ऐसी स्कीमें भी हैं जिनमें कर-बचत की विशेषताएं हैं और मैच्योरिटी/रिडम्पशन पर आंशिक कर (Partial tax relief) राहत है. उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) टियर -1 अकाउंट्स, इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम (ELSS) आदि.

कौन-सा विकल्प ज्यादा फायदेमंद
अब तक आप समझ ही गए होंगे कि कौन-सा आपके लिए बेहतर होगा. जी हां, जिसमें EEE फीचर मिलेंगे, वही अच्छा होगा. ट्रिपल ई का मतलह है कि इसमें निवेश करते समय टैक्स में छूट मिलेगी और मैच्योरिटी पर भी कोई टैक्स नहीं लगेगा. हालांकि इस तरह के इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करने के लिए सरकार द्वारा एक सीमा तय की गई है. उस सीमा से ज्यादा निवेश पर आपको ये दोनों लाभ नहीं मिलेंगे.

तो, यह कहा जा सकता है कि यदि आपकी निवेश की क्षमता EEE की लिमिट में है तो इसी में निवेश करना बेस्ट रहेगा. इसकी मदद से आप सीमित निवेश के जरिये अपने फाइनेंशियल गोल हासिल कर सकते हैं. यदि आपको ज्यादा रिटर्न चाहिए तो फिर आप अन्य इंस्ट्रूमेंट्स के बारे में भी सोच सकते हैं.

इसके अलावा एक और गौर करने वाली बात ये है कि यदि आपने ट्रिपल ई इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश की सीमा पूरी कर ली है मतलब उसकी लिमिट जितना निवेश कर लिया है तो फिर आपको ट्रैक्स-फ्री फीचर वाले इंस्ट्रूमेंट्स के साथ जाना चाहिए. ज्यादा रिटर्न के लिए आप मैच्योरिटी पर आंशिक टैक्स लाभ वाले साधनों के बारे में भी सोच सकते हैं.