उत्तरी भारत के सुप्रसिद्ध धार्मिक स्थल डेरा बाबा बड़भाग सिंह में होला मोहल्ला मेला बहुत ही श्रद्धापूर्वक मनाया जा रहा है। मेले के मद्देनजर पूरे इलाके को दुल्हन की तरह सजाया गया है। 27 फरवरी से 9 मार्च तक मनाए जाने वाले इस मेले के सातवें दिन रविवार को श्रद्धालुओं का खूब जनसैलाब उमड़ा।
अगर डेरा बाबा बड़भाग सिंह के इतिहास पर नजर डाली जाए तो वर्ष 1761 में पंजाब के कस्बा करतारपुर में सिख गुरू अर्जुन देव के बंशज बाबा राम सिंह सोढ़ी और उनकी धर्मपत्नी माता राजकौर के घर में बड़भाग सिंह जी का जन्म हुआ। उन दिनों अफगानों के साथ सिख जत्थेदारों की खूनी भिड़तें होती रहती थी।
बाबा बड़भाग सिंह बाल्याकाल से ही आध्यातम को समर्पित होकर पीड़ित मानवता की सेवा को ही अपना लक्ष्य मानने लगे थे। कहते है कि एक दिन वो घुमते हुए मैड़ी गांव स्थित दर्शनी खड्ड जिसे अब चरण गंगा कहा जाता है, पहुंचे और यहां के पवित्र जल में स्नान करने के बाद मैड़ी स्थित एक बेरी के पेड़ के नीचे ध्यानमग्न हो गए।
कहते है कि यह क्षेत्र वीर नाहर सिंह नामक एक पिशाच के प्रभाव में था। नाहर सिंह द्वारा परेशान किए जाने के बाबजूद बाबा बड़भाग सिंह इस स्थान पर घोर तपस्या की तथा एक दिन दोनों का आमना सामना हो गया तथा बाबा बड़भाग सिंह ने दिव्य शक्ति से नाहरसिंह पर काबू पाकर उसे बेरी के पेड़ के नीचे ही एक पिंजरे में कैद कर लिया।
कहते है कि बाबा बड़भाग सिंह ने नाहर सिंह को इस शर्त पर आजाद किया था कि नाहर सिंह अब इसी स्थान पर मानसिक रूप से बीमार और बुरी आत्माओं के शिंकजे में जकड़े लोगों को स्वस्थ करेंगे और साथ ही निःसंतान लोगों को फलने का आशीर्वाद भी देंगे। यह बेरी का पेड़ आज भी इसी स्थान पर मौजूद है तथा हर बर्ष लाखों की तादाद में देश विदेश से श्रद्धालु आकर माथा टेककर आशीर्वाद प्राप्त करते है। ऐसी मान्यता है कि अगर प्रेत आत्माओं से ग्रसित व्यक्ति को इस कुछ देर के लिए इस बेरी के पेड़ के नीचे बिठाया जाए तो वो व्यक्ति प्रेत आत्मायों के चंगुल से आजाद हो जाता है।
मैडी में स्थित मंजी साहिब गुरुद्वारा के गद्दीनशीन संत स्वर्ण सिंह जी की माने तो बाबा बड़भाग सिंह जी ने इसी स्थान पर 17 साल 8 महीने तपस्या की थी। संत स्वर्ण सिंह जी ने कहा कि हर साल होला मेले पर सभी धर्मों से संबंध रखने वाले लाखों श्रद्धालु जहाँ नतमस्तक होते है।