नई दिल्ली. कोरोना के दिनों में जमकर बिकी डोलो दवाई इन दिनों मुश्किलों का सामना कर रही हैं. कभी कोरोना होने पर डोलो की मारामारी झेल चुकी जनता को अब वही डोलो खिलाने के लिए दवाई निर्माता को पैसे देने पड़ रहे हैं. हाल ही में टैक्स को लेकर हुए एक विवाद के बाद यह सामने आया है कि डोलो की दवाई निर्माता कंपनी डॉक्टर्स को एक हजार करोड़ रूपए देकर मरीजों को दवाई लिखने के लिए कह रही है. दवाई कंपनी के इस कदम को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी मामले को लेकर गंभीरता जताई है.
फेडरेशन ऑफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FMRAI) की लॉबी द्वारा दायर एक जनहित याचिका में यह दावा किया गया है कि डोलो निर्माता ने डॉक्टरों को दवाई लिखने के लिए पैसों की पेशकश की है. वहीं सुनवाई के दौरान बेंच का नेतृत्व कर रहे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने इसे एक गंभीर मुद्दा बताया और कहा कि उन्हें भी ऐसा ही करने के लिए कहा गया था जब उन्हें कोविड था. यह एक गंभीर मुद्दा और मामला है. चंद्रचूड़ ने अब केंद्र को 10 दिन में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है.
पेरासिटामोल के प्रचार पर 1,000 करोड़ रुपये खर्च
डोलो-650 बुखार के दौरान दी जाने वाली एक गोली है, जिसे पैरासिटामोल के नाम से भी जाना जाता है. पेरासिटामोल एक सामान्य दर्द निवारक दवा है जिसका उपयोग दर्द के इलाज और उच्च तापमान को कम करने के लिए किया जाता है और यह 1960 के दशक से बाजार में है.
Crocin, Sumo, Dolo या Calpol – ये अलग-अलग नाम हैं जो फार्मा कंपनियां अपने कॉपीराइट ब्रांड के तहत बेचती हैं. इसलिए, यह एक इनोवेटिव, पेटेंट और जटिल दवा नहीं है जिसे माइक्रो लैब बनाती है।
कानून के मुताबिक पेरासिटामोल एक आवश्यक दवा है और सरकार के मूल्य नियंत्रण तंत्र के अंतर्गत आती है, जिसका अर्थ है कि कंपनी सरकार द्वारा तय की गई सीमा से ऊपर दवा की कीमत बढ़ा या तय नहीं कर सकती है. यह दवाएं आम तौर पर 2 रुपये प्रति टैबलेट या 15 टैबलेट की एक स्ट्रिप 30 रुपये में मिलती हैं. तो सवाल यह उठता हैं कि इतनी सस्ती दवाओं के लिए कोई कंपनी एक हजार करोड़ रूपए क्यों खर्च करेगी.