देरी से मांगे गए वैध वित्तीय लाभ को खारिज करना न्यायोचित नहीं

प्रदेश हाईकोर्ट ने ग्रांट इन एड देने के मामले में एक महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है। न्यायाधीश संदीप शर्मा ने निर्णय में कहा कि अपने हक को पाने के लिए यदि देरी से भी आवेदन किया हो तो उसे सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता।

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने ग्रांट इन एड देने के मामले में एक महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है। न्यायाधीश संदीप शर्मा ने निर्णय में कहा कि अपने हक को पाने के लिए यदि देरी से भी आवेदन किया हो तो उसे सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। अदालत ने याचिकाकर्ता कुमारी रंजना और छह अन्य शिक्षकों को वर्ष 1993 से ग्रांट इन एड दिए जाने के आदेश दिए हैं। अदालत ने शिक्षा विभाग से आशा की है कि याचिकाकर्ताओं को यह राशि आठ सप्ताह के भीतर अदा कर दी जाएगी।  याचिकाकर्ताओं को वर्ष 1993 में जिला कांगड़ा के निजी स्कूल प्रबंधन कमेटी बिलासपुर ने अलग-अलग विषय में पढ़ाने के लिए नियुक्त किया था। याचिकाकर्ताओं ने वर्ष 2009 में ग्रांट इन एड दिए जाने के लिए राज्य सरकार के पास प्रतिवेदन किया। प्रधान सचिव शिक्षा ने अपने आदेशों में स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता जिला कांगड़ा के बिलासपुर निजी स्कूल में कार्यरत थे।

इस स्कूल का नाम उन 144 स्कूलों में शामिल था, जिन्हें राज्य सरकार ने वर्ष 1993 से ग्रांट इन एड दिए जाने के आदेश दिए हैं। राज्य सरकार ने इस स्कूल के साथ-साथ 144 अन्य स्कूलों को अपने अधीन किया था।  इन निजी स्कूलों में कार्यरत सभी शिक्षकों की सेवाओं को भी राज्य सरकार ने शिक्षा विभाग के अधीन करने के आदेश पारित किए। प्रधान सचिव शिक्षा के आदेशों के बावजूद निदेशक उच्च शिक्षा ने  याचिकाकर्ताओं को ग्रांट इन एड देने से इंकार कर दिया था। अदालत ने मामले से जुड़े रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद पाया कि जब प्रधान शिक्षा सचिव ने याचिकाकर्ताओं  को ग्रांट इन एड दिए जाने के लिए सक्षम पाया था, तो उस स्थिति में निदेशक उच्च शिक्षा की ओर से याचिकाकर्ताओं को यह लाभ न दिया जाना उचित नहीं है। अदालत ने कहा की वैध वित्तीय लाभ प्राप्त करने के लिए देरी से किए गए प्रतिवेदन खारिज करना न्यायोचित नहीं है।