डाॅ. वाईएस परमार मेडिकल कॉलेज (Dr. YS Parmar Medical College) में बेशकीमती ‘रक्त’ की उपयोगिता सही नहीं हो रही। इस कारण रक्तदाताओं द्वारा डोनेट किए जाने वाले ब्लड के तीन कंपोनेंट (three components of blood) बर्बाद हो जाते हैं। बता दें कि चंद सप्ताह पहले युवाओं की एक टोली ने स्थानीय विधायक अजय सोलंकी से भी मुलाकात कर मेडिकल कॉलेज में ब्लड सेपरेटर (blood separator) उपलब्ध करवाने की मांग की थी।
मेडिकल प्रशासन ने दलील दी थी कि जल्द ही सुविधा उपलब्ध होगी, लेकिन अफसोस की बात है कि स्थिति जस की तस है। हाल ही में एक मरीज को प्लाज्मा (Plasma) की आपातकाल में आवश्यकता थी, लेकिन ब्लड सेपरेटर न होने के कारण मरीज को प्लाज्मा के लिए 32 सेक्टर चंडीगढ़ रैफर किया गया था।
जानकारों का कहना है कि ब्लड सेपरेटर उपकरण को स्थापित करने के लिए लगभग 60 लाख की आवश्यकता रहती है। सवाल इस बात पर भी उठाया जा रहा है कि अगर बजट उपलब्ध होने में दिक्कत आ रही है तो माता बालासुंदरी मंदिर न्यास ट्रस्ट से ये राशि उपलब्ध करवा क्यों ब्लड सेपरेटर नहीं लगवाया जा सकता।
आपको बता दें कि रक्तदान में लाल रक्त कोशिकाओं (Red Blood Cells), प्लेटलेट्स व प्लाज्मा (Platelates & Plasma) सहित कई जीवन रक्षक घटक होते हैं। रक्तदान के बाद रक्त को प्रयोगशाला में भेजा जाता है, ताकि तीनों घटकों को अलग कर लिया जाए। इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्रसूति के समय गर्भवती महिलाओं को अक्सर संपूर्ण ब्लड की आवश्यकता होती है, लेकिन कई मर्तबा प्लेटलेट्स व प्लाज्मा या व्हाइट ब्लड सैल की आवश्यकता आपातकाल में होती है। सेपरेटर न होने की वजह से मरीजों को चंडीगढ़ रैफर कर दिया जाता है।
महज 50-60 लाख के सेपरेटर के न होने के कारण हर माह सैंकड़ों मरीजों को चंडीगढ़ के धक्के खाने पड़ते हैं, साथ ही चंडीगढ़ के मेडिकल काॅलेज के अलावा पीजीआई (PGI) को मरीजों के अतिरिक्त दबाव का भी सामना करना पड़ता है। बड़ी बात ये है कि मेडिकल काॅलेज में पीजी कक्षाओं को शुरू करने की तैयारी चल रही है, साथ ही नर्सिंग काॅलेज को भी मंजूरी मिली है। लेकिन विडंबना ये है कि मेडिकल काॅलेज प्रबंधन ब्लड सेपरेटर का इंतजाम करने में विफल रहा है।
उल्लेखनीय है कि मरीजों, यहां तक बच्चों में भी प्लेटलेट्स की कमी की बीमारी सामान्य हो चुकी है, ऐसे में ब्लड सेपरेटर की नितांत आवश्यकता महसूस की जा रही है। मौजूदा में रक्तदाता ब्लड तो उपलब्ध करवा देते हैं, लेकिन मरीज को कई मर्तबा एक विशेष घटक की भी आवश्यकता होती है। ऐसे में ये कहना अनुचित नहीं होगा कि तीन घटक बर्बाद होते हैं।
बता दें कि वैश्विक महामारी के दौरान प्लाज्मा थेरेपी का भी प्रयोग हुआ था। ये बात अलग है कि ये थेरेपी कोविड के गंभीर मरीजों पर कारगार साबित नहीं हुई।
उधर, ड्रॉप्स आफ होप ग्रुप (Drops of Hope Group) के संस्थापक ईशान राव ने कहा कि ब्लड सेपरेटर की सुविधा उपलब्ध करवाने को लेकर प्रतिनिधिमंडल ने विधायक से मुलाकात की थी। जल्द ही विधायक से सुविधा उपलब्ध करवाने को लेकर दोबारा बात की जाएगी।
उधर, मेडिकल काॅलेज की ब्लड बैंक प्रभारी डॉ. निशी ने कहा कि एनएचएम (NHM) को प्रस्ताव भेजा गया है। उन्होंने कहा कि कॉलेज के प्रधानाचार्य ने भी प्रस्ताव मांगा था। उम्मीद है कि जल्द ही मेडिकल काॅलेज में ये सुविधा शुरू हो जाएगी। उन्होंने कहा कि ब्लड सेपरेटर के साथ-साथ स्टाफ की भी आवश्यकता होती है। इन पहलुओं पर तेजी से कार्य किया जा रहा है।