मैरी कॉम: 3 बच्चों की मां, जिसने क्रिकेट पर मरने वाले देश को बॉक्सिंग से प्यार करना सिखाया

“किसी को इतना भी मत डराओ कि उसका डर ही ख़त्म हो जाए.”

मैरी कॉम के जीवन पर आधारित प्रियंका चोपड़ा की फ़िल्म का एक डायलॉग उनके ऊपर एकदम सटीक बैठता है. हकीकत में उनके अंदर डर नाम की कोई चीज़ नहीं है. वो एक निर्भीक खिलाड़ी और उतनी ही साहसी महिला हैं. बॉक्सिंग के रिंग में उन्होंने जो भी हासिल किया, वो आने वाली पीढ़ी के लिए किसी इंस्टीट्यूशन से कम नहीं. उन्होंने क्रिकेट पर मरने वाले देश को बॉक्सिंग से प्यार करना सिखाया.

पिछले दो दशकों में अगर किसी ने भारतीय बॉक्सिंग को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई, तो वो मैरी कॉम ही थीं. उन्हें अपना पहले मेडल 18 साल की उम्र में मिला. बच्चे होने के बाद उन्होंने खेल से ब्रेक लिया और जो कमबैक किया, उसे स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा. मैरी कॉम जिस मुकाम पर पहुंची, उसके पीछे हर मिनट की मेहनत, समर्पण और त्याग है. उनकी उपलब्धियां आसान नहीं थी.

लड़कियों के लिए प्रेरणा बन चुकीं मैरी कॉम का पूरा नाम मांगते चुंगनेजंग मैरी कॉम है. उनका जन्म 1 मार्च 1983 को मणिपुरी के कन्गथेइ में रहने वाले एक गरीब किसान के यहां हुआ था. चार बहन भाई में सबसे बड़ी मेरीकॉम का बचपन संघर्षमयी रहा. बेहद छोटी उम्र में उन्हें मा-बाप की मदद के लिए काम करना पड़ता था. एक आम लड़की से लेकर सफल बॉक्सर बनने तक का सफर उनका सफर कठिन रहा. 

18 साल की उम्र में उन्होंने अपने बॉक्सिंग करियर की शुरुवात कर दी थी. अब वो भारत की शान हैं. उन्होंने 6 बार बॉक्सिंग वर्ल्ड चैंपियनशिप जीती और 8 बार भारत के लिए मेडल लेकर आईं. 2012 में ओलम्पिक ब्रॉन्ज़ जीत कर बॉक्सिंग में मेडल लाने वाली वो पहली भारतीय महिला बॉक्सर बनीं. सिर्फ़ वर्ल्ड चैंपियनशिप नहीं, उन्होंने 5 बार एशियन चैंपियनशिप जीती और 1 बार एशियन इंडोर गेम्स की विजेता भी बनीं. 

 एशियाई खेलों में और कॉमनवेल्थ में उनके जिताए गोल्ड मेडल्स को कौन भूल सकता है. पद्मभूषण, पद्मविभूषण और पद्मश्री से सम्मानित मेरीकॉम का सपना अपने आख़री ओलंपिक्स में गोल्ड लाने का था. भले ही ऐसा न हो पाया लेकिन उनका सफ़र इसे कहीं ज़्यादा शानदार रहा. 3 बच्चों की मां बनने के बाद भी जिस तरह से रिंग में अपने मुक्कों से विरोधी को हराती रही वो समाज को हमेशा प्रेरित करेगा.