राजस्थान की ये दरगाह है कौमी एकता की मिसाल, हर साल होता है भंडारा, हिंदू-मुस्लिम साथ मनाते हैं हर त्योहार

इम्तियाज अली. झुंझुनूं. राजस्थान के झुंझुनूं जिले के चिड़ावा इलाके में स्थित नरहड़ की हजरत शक्करबार पीर बाबा की दरगाह एक मात्र ऐसी दरगाह है, जहां हिन्दू-मुस्लिम कौमी एकता की मिसाल देखने को मिलती है. करीब 750 साल पुरानी कौमी एकता की मिसाल इस दरगाह में सालाना उर्स के अलावा भादवा में मेला भरता है. दरगाह में आज भी लोग मिल जुलकर पूजा अर्चना और दुआएं करते हैं, भंडारे में हिंदू-मुस्लिम सभी लोग एक साथ बैठकर प्रसाद खाते हैं. तीन दिन चलने वाले आयोजन में देशभर से जायरीन आते हैं. इनमें जितने मुस्लमान होते हैं, उससे कहीं अधिक हिंदु समाज के लोग होते हैं. यानी यह एक ऐसी दरगाह जहां हिंदु-मुस्लिम का भेद नहीं होता. यहां सिर्फ इंसानियत का धर्म होता है. देशभर से लाखों लोग इस दिन दरगाह पहुंचते है और खुशियां मनाते है. साथ ही उनके प्रेम में सूफी गीत गाए जाते है.

दरगाह के खादिम बताते हैं कि हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की छठ से अष्टमी तक तीन दिवसीय कार्यक्रम करवाती है. इस बार भी यह आयोजन शुरू हो चुका है. 19 अगस्त को यहां मेला भरेगा. सूफी संतों के आगमन के समय इरान से भारत आए थे. शक्करबार पीरभारत में जब सूफी संतों का आगमन हुआ उस समय शक्करबार पीर बाबा भी इरान की तरफ से भारत में आए थे. वे यहां रुके तथा दीन-दुखियों की मदद करने लगे. धीरे-धीरे इनकी प्रसिद्धि फैलने लगी. चिड़ावा के आसपास के गांवों के लोगों की अधिक श्रद्धा थी.

श्रद्धालुओं का कहना है कि बाबा ने नरहड़ में करीब साढ़े सात सौ साल पहले समाधि ली थी. तब से लेकर हर साल उर्स होता है तो जन्माष्टमी पर मेला भरता है. स्थानीय लोगों का कहना कि सभी उत्सव चाहे होली या दीवाली, मुहर्रम हो या बकरा ईद, सब मिलकर मनाते हैं. श्रद्धालुओं के लिए रहने की यहां उचित व्यवस्था व्यवस्थाएं है. दरगाह का गुंबद चिकनी मिट्टी का बना हुआ है. अजमेर में सूफी धारा के संत मोइनुद्दीन चिश्ती हुए ठीक उसी समय शेखावाटी के नरहड़ में हजरत शक्करबार शाह नाम के पीर हुए. उन्हीं के जैसे सिद्ध पुरुष थे. इन्हीं शक्करबार शाह के नाम से यहां दरगाह निर्मित है. शक्करबार शाह ने मोइनुद्दीन चिश्ती के कुछ समय बाद ही देह त्याग दी थी. नरहड़ दरगाह के बारे में लोक कथा है कि यहां कभी दरगाह के गुंबद से शक्कर बरसती थी. लोग मजार पर मिठाइयां, चादर आदि चढ़ाते हैं.

जानें क्यों पड़ा दरगाह का नाम शकरबार 

बाबा हाजीब शकरबार शाह की दरगाह के नाम से मशहूरयह दरगाह बाबा हाजीब शकरबार शाह की दरगाह के नाम से मशहूर है. लोगों का मानना है कि पहले यहां दरगाह के गुम्बद से शक्कर बरसती थी. इस जगह के प्रति लोगों की काफी मान्यता है. दरगाह में एक जाल का एक विशालकाय वृक्ष है जिस पर लोग अपनी मन्नत के धागे बांधते हैं.

नरहड़ जाने के लिए चिड़ावा पहुंचना होगा. जयपुर, दिल्ली, बीकानेर और नारनौल से चिड़ावा शहर स्टेट हाइवे व नेशनल हाइवे के जरिए जुड़ा हुआ है. रेलवे स्टेशन भी है. चिड़ावा में बस या ट्रेन से उतरकर नरहड़ पहुंच सकते है. चिड़ावा से नरहड़ की दूरी महज 11 किमी है. पिलानी रोड पर स्थित देवरोड गांव से नरहड़ जाया जा सकता है. देवरोड से नरहड़ तीन किमी दूर है. पिलानी से नरहड़ की दूरी 21 किमी है. अगर आप झुंझुनूं से नरहड़ जाना चाहते हैं तो 38 किमी का सफर करना पड़ेगा. जयपुर से नरहड़ की दूरी 218 किमी है.