वायलेट जेसोप: वो नर्स, जो टाइटैनिक के हादसे मे ज़िंदा बची और पूरी दुनिया को उसकी दास्तान सुनाई

15 अप्रैल 1912 की उस रात सपनों का जहाज़ ‘टाइटैनिक’ समुद्र की लहरों को चीरता हुआ अपनी मजिल की ओर बढ़ रहा था. जहाज़ पर मौजूद सभी यात्री इस कभी न डूब सकने वाले जहाज़ की यात्रा में मग्न थे. उन्हीं यात्रियों में से एक थीं नर्स वायलेट जेसप.

वायलेट जेसोप वो महिला हैं, जिन्होंने डूबते टाइटैनिक का खौफनाक मंजर अपनी आंखों के सामने देखा. वो डूबते जहाज़ और बर्फीले पानी को पार करके अपनी जान बचाती हुई वापस लौटी, ताकि दुनिया को ये दर्दनाक दास्तां सुना सकें. तो चलिए जानते हैं वायलेट जेसोप की अनसुनी कहानी:

बचपन में ही पा लिया था जीने का हौसला

1887 में अर्जेंटीना के एक आयरिश परिवार में जन्म लेने वाली वायलेट जेसप का बचपन में ही मौत से सामना हो गया था. उनके माता-पिता के 9 बच्चे हुए थे जिनमें से सिर्फ 6 ही जिंदा बच पाए, वायलेट उन्हीं में से एक थीं. हालांकि, उनका शुरूआती जीवन इतना आसान नहीं रहा. 

इससे पहले कि वायलेट अपना जीवन शुरू कर पाती, छोटी उम्र में ही उन्हें टीबी हो गया. माना जाता है कि टीबी के कारण उनकी मौत होने ही वाली थी पर वह जिंदगी और मौत की इस लड़ाई में जीत गई. टीबी से बचने के बाद वायलेट ने अपनी जिंदगी फिर शुरू की मगर उनका शुरूआती जीवन काफी खुशहाल नहीं होने वाला था. 

वायलेट महज़ 16 साल की हुई थीं की अचानक ही उनके पिता की मौत हो गयी. पिता की मौत से सारा परिवार इतना हताश हुआ की वह सब अर्जेंटीना को पीछे छोड़ इंग्लैंड आ के बस गए. यहीं से वायलेट ने अपनी नई जिंदगी की शुरुआत की.

परिवार की खातिर शिप पर किया काम

 

Violet Jessop

इंग्लैंड आने के बाद वायलेट की मां ने काम करना शुरू किया. जब मां काम पर चली जाती तो वायलेट अपने छोटे भाई-बहनों का ख्याल रखा करती थीं. उनकी मां दिन-रात एक शिप पर बतौर नर्स का काम किया करती थीं. पर परिवार इतना बड़ा था कि पैसों की कमी हर दम रहती थी. 

इतना काम करने के कारण वायलेट के मां बीमार रहने लगी. एक दिन फिर ऐसा भी आया कि उनकी मां दुनिया को छोड़कर चली गईं. वायलेट के भाई-बहन अभी छोटे थे. उनके पास इतना वक़्त नहीं था कि वो मां के जाने का शोक भी मना पाती. मजबूरन उन्हें जल्द से जल्द नौकरी ढूंढनी थी.

परिवार की आर्थिक स्थिति ख़राब होने के कारण वायलेट अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर पाई थी. ऐसे में वह सिर्फ़ एक ही नौकरी कर सकती थीं और वह नौकरी थी एक ‘नर्स’ की. उन्होंने अपनी मां की तरह शिप कर नर्स बनने का फैसला किया. जल्द ही ‘रॉयल मेल लाइन’ शिप पर उन्होंने बतौर नर्स काम शुरू कर दिया.

टाइटैनिक पर देखा मौत का मंजर

 

Violet Jessop

एक नर्स के रूप में वायलेट ने काफी अच्छा काम किया और उनका काफी नाम भी हुआ. इसके चलते जब 1912 में टाइटैनिक पर बेहतरीन नर्सों की जरूरत पड़ी तो वायलेट का नाम भी उसमें दर्ज था. वायलेट बहुत खुश थी कि उन्हें टाइटैनिक पर बैठने का अवसर प्राप्त हुआ. 

10 अप्रैल 1912 को टाइटैनिक ने अपनी यात्रा शुरू की. सभी नर्सों की तरह वायलेट जहाज़ पर मौजूद लोगों की देख-भाल में लग गई. 15 अप्रैल 1912 को जहाज़ बुरी तरह हिला. हर तरफ से लोगों के चीखने का शोर सुनाई दिया. जब वायलेट अपने कमरे से बाहर निकली तो देखा हर तरह अफरा-तफरी का माहौल था.

हर किसी की ज़बान पर सिर्फ एक ही बात थी “टाइटैनिक डूब रहा है”. वायलेट को अपनी सुनी बात पर विश्वास ही नहीं हुआ पर यात्रियों और जहाज़ के कर्मचारियों की आँखों में दिखे डर ने उनके सारे सवालों का जवाब दे दिया. जैसे ही वायलेट को हालात की समझ हुई तो उन्होंने लोगों की मदद करना शुरू कर दिया.

जहाज़ पर मंज़र बहुत बुरा था. लोग जान बचाने के लिए बर्फीले पानी में कूद रहे थे. हर पल के साथ टाइटैनिक समुद्र में समा रहा था. ऐसी मुश्किल परिस्थितियों में भी वायलेट ने अपना काम नहीं छोड़ा. कुछ देर बाद लाइफ बोट्स को निकाला गया. यह फैसला किया गया कि बच्चों और महिलाओं को पहले बचाया जाए.

वायलेट चाहती तो खुद को बचा सकती थीं पर उन्होंने यात्रियों को पहली प्राथमिकता दी. उन्होंने एक-एक करके लोगों को बोट पर बिठाया और डूबते टाइटैनिक से दूर भेज दिया.

जब आंखों के सामने डूब गया टाइटैनिक

 

Violet Jessop

वायलेट अपने काम में लगी थीं और दूसरी ओर टाइटैनिक डूबने की कगार पर आ गया था. उसी समय जहाज़ के एक कर्मचारी ने एक नवजात बच्चे को वायलेट की गोद में थमा दिया. उस कर्मचारी ने वायलेट को बताया कि यह बच्चा जहाज़ में ही छूट गया था और उसकी मां कहीं नज़र नहीं आ रही थी. इसके चलते वायलेट को उन्होंने बच्चा थमा दिया.

वायलेट के हाथों में अब एक बच्चे की ज़िम्मेदारी आ गई थी. वह उसको संभालते हुए जहाज़ पर मौजूद बाकी बच्चों की मदद नहीं कर सकती थीं. मजबूरन अगली लाइफ बोट पर उन्हें भी बैठना पड़ा. बच्चे को अपनी गोद में लिए वायलेट टाइटैनिक से दूर जाने लगी थीं. थोड़ी ही देर में उनकी आँखों के सामने पूरा टाइटैनिक नष्ट हो गया और समुद्र में समा गया.

वायलेट की बोट जैसे ही किनारे पर पहुंची तो उस नवजात बच्चे की माँ उसे ढूंढते हुए वापस आई और वायलेट ने बच्चा उन्हें वापस किया. टाइटैनिक से तो वायलेट बच गई पर उस मंजर की यादें जिंदगी भर के लिए उनके अन्दर घर कर गई थी. टाइटैनिक के डूबने की पूरी कहानी उन्होंने दुनिया को बताई.

टाइटैनिक के डूबने से वायलेट बहुत हताश थीं. उन्हें उम्र भर इस बात का मलाल रहा कि वह और लोगों को नहीं बचा सकी. शायद इसलिए ही उन्होंने इतने बड़े हादसे से बचने के बाद भी शिप पर नर्स का काम जारी रखा. जब तक उनके शरीर में जान रही वो लोगों की मदद करती रही.