विशाल क्षुद्रग्रह के टकाराने से बने थे पृथ्वी के महाद्वीप

पृथ्वी का निर्माण (Formation of Earth) कैसे हुआ यह पड़ताल लंबे समय से चल रही है. पृथ्वी के कई स्वरूपों के कारण जानने के प्रयास किए जा रहे हैं और प्रमाण तलाशे जा रहे हैं. इन्हीं में से एक है पृथ्वी की सतह का वर्तमान आकार कैसे बना, वो कौन कौन से कारक थे जिन्होंने पृथ्वी को आज की स्थिति में पहुंचाया और आज जो हम महाद्वीप (Continents of Earth) देखते हैं उनका विकास कैसे हुआ. क्या इनके के पीछे केवल पृथ्वी के अंदर के ही बल और कारक थे या फिर बाहरी प्रभावों का भी उनमें कोई योगदान था. नए अध्ययन में इस बात के स्पष्ट और पुष्ट प्रमाण देखने को मिले हैं कि पृथ्वी के महाद्वीप के निर्माण में विशाल उल्कापिंडों के टकराव (Meteorites Impact) की भूमिका थी.

एक भूभाग से हुए थे टुकड़े
वैसे तो महद्वीप के निर्माण की सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं हैं. लेकिन वैज्ञानिक इस बात से भली भांति परिचित हैं कि एक समय था जब पृथ्वी पर बिखरे आज के सभी महाद्वीप आपस में जुड़े हुए थे और एक विशाल महाद्वीप के भूभाग का हिस्सा हुआ करते थे. लेकिन उन्हें अभी तक पुख्ता तौर पर यह पता नहीं था कि आखिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि यह विशालकाय महाद्वीप टूटा और उसके टुकड़े एक दूसरे से दूर जाने लगे.

पर्पटी का संरक्षित टुकड़ा
इस सवाल के जवाब के कुछ संकेत वैज्ञानिकों  को पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में मौजूद क्रेटॉन से मिले जिरकॉन खनिज के क्रिस्टल में मिले. यह क्रेटॉन पृथ्वी की पर्पटी का ऐसा टुकड़ा है दो करीब एक अरब साल से स्थिर और एक तरह से संरक्षित पड़ा था. इस क्रेटॉन का नाम पिलबारा क्रेटॉन है और यह पृथ्वी की सबसे संरक्षित पर्पटी के टुकड़ा माना जाता है.

उल्कापिंडो के विशाल टकरावों के कारण
इस क्रेटॉन के अंदर मौजूद जिरकॉन क्रिसटल में पुराने समय के उल्कापिंडों के टकराव के प्रमाण हैं और ये संकेत विशालकाय महाद्वीप के टूटने के पहले के हैं. कर्टन यूनिवर्सिटी के शोधक्रताओं द्वारा किया गया यह अध्ययन नेचर जर्नल में अगस्त माह के पहले पखवाड़े में ही प्रकाशित हुआ है. इससे शोधकर्ता इस नतीजे पर बहुंचे हैं कि 4.5 अरब साल पुरानी पृथ्वी के बनने के पहले एक अरब साल में हुए उल्कापिंडों के भारी टकरावों की वजह से ही महाद्वीपों को निर्माण हुआ

ऑक्सीजन के आइसोटोप का अध्ययन
कर्टन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ अर्थ एंड प्लैनेटरी साइंसेस के डॉ टिम जॉनसन ने बताया कि उल्कापिंडों के टकारवों से महाद्वीपों के निर्माण की अवधारणा नई नहीं है. यह कई दशकों से बताई जा रही है. लेकिन अब तक इस मत के समर्थन में पुख्ता प्रमाण बहुत ही कम थे. शोधकर्ताओं पिलबारा क्रेटॉन की चट्टानों मेंमिले जिरकॉन खनिज के महीन क्रिस्टल में ऑक्सीजन का आइसोटोप का अध्ययन किया.

पूरी प्रकिया देखी शोधकर्ताओं ने
आइसोटोप के अध्ययन से सतह पर चट्टानों के पिघलने से लेकर गहराई तक चली प्रक्रियाओं का खुलासा हो सका जिसमें विशाल उल्कापिंड टकरावों के प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई दिए. डॉ जॉनसन ने बताया कि उनकी टीम को महाद्वीपों के निर्माण में उल्कापिंडों की टकराव उसी तरह से पहचाना जिस तरह अन्य शोधों में वैज्ञानिकों ने डायनासोर के विनाश के प्रमाण खोजे थे.

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महाद्वीपों की विकासक्रम
डॉ जॉनसन के मुताबिक पृथ्वी के महाद्वीपों की निर्माण और चल रहे विकासक्रम को समझने बहुत आवश्यक है क्योंकि महद्वीपों में पृथ्वी की अधिकांश जैविक भार, सभी इंसान और पृथ्वी प्रमुख खनिज निक्षेप मौजूद हैं. महाद्वीपों में लीथियम, टिन, निकल, और अन्य पदार्थ मौजूद होते हैं जो हरित तकनीकों के लिए बहुत उपोयगी होते हैं.

शोधकर्ताओं के मुताबिक महाद्वीपों के इस खजाने से ही हम जलवायु परिवर्तन को कम कर सकेंगे. खनिजों के निक्षेपण पृथ्वी की पर्पटी में विभिन्नता की प्रक्रिया के अंतिम नतीजे हैं जो शुरूआती भूभागों के निर्माण से ही शुरू हो गए थे. पिलबारा क्रेटॉन इन्ही भूभागों में से एक है. जबकि दूसरे पुरातन भूभागों में भी उसी तरह के पैटर्न देखने के मिल रहे हैं जिसका शोधकर्ता परीक्षण करने वाले हैं.