वो क्रांतिकारी जिससे अंग्रेज़ थर्रा गए थे, फांसी देने को जल्लाद भी नहीं थे तैयार

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 साल 1827 में यूपी के बलिया से ताल्लुक रखने वाले एक ऐसे क्रांतिकारी ने जन्म लिया था, जिसके नाम से अंग्रेज थर्राते थे. जिन्होंने 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ बैरकपुर में विद्रोह कर क्रांति शुरू की थी. जिन्हें अंग्रेजों ने डरकर 10 दिन पहले ही फांसी दे दी थी. यहां हम अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ 1857 में क्रांति का बिगुल फूंकने वाले मंगल पांडेय की बात कर रहे हैं. 

मंगल पांडेय का बचपन आम बच्चों की तरह बीता. वो करीब 18 साल के थे, जब वह ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैन्ट्री में सिपाही के तौर पर भर्ती हुए थे. नौकरी के करीब 1 साल बाद ही उनकी कंपनी में नई इनफील्ड राइफल लाई गई. कथित तौर पर इस राइफल की कारतूस में गाय और सुअर की चर्बी मिली होती थी. इस कारतूस को चलाने के लिए मुंह से काटकर राइफल में लोड करना होता था, जोकि भारतीय सैनिकों को मंजूर नहीं था. आखिरकार इसी के विरोध में मंगल पांडे ने 29 मार्च 1857 को विद्रोह कर दिया.

29 मार्च 1857 को अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई

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बंगाल के बैरकपुर छावनी में मंगल पांडे ने कारतूस का इस्तेमाल करने से मना कर दिया. यही नहीं ‘मारो फिरंगी को’ नारे के साथ उन्होंने अंग्रेजों पर हमला तक कर दिया था. परिणाम स्वरूप उनकी गिरफ्तारी हुई और मुकदमा चलाया गया. उन्हें इस विद्रोह के लिए फांसी की सजा सुनाई गई थी. 18 अप्रैल, 1857 यही वो तारीख थी, जब उन्हें फांसी दी जानी थी. मगर अंग्रेजों को डर था कि मंगल पांडे ने विद्रोह की जो चिंगारी जलाई है, वह देशभर में क्रांति ला सकती है. इसलिए तय तारीख से 10 दिन पहले ही उन्हें 8 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी गई.

अंग्रेजों के इस फैसले का खूब विरोध हुआ था. यहां तक कि जल्लाद मंगल पांडे को फांसी तक देने के लिए तैयार नहीं थे. हालांकि, अंग्रेजों के दवाब के कारण उन्हें यह काम करना पड़ा था. मंगल पांडे की फांसी के बाद अंग्रेजो को लगा था कि वो सब संभाल लेंगे, मगर क्रांति की ज्वाला जल चुकी थी. मंगल पांडे की फांसी के बाद देशभर में अंग्रेजों के खिलाफ विरोध शुरू हो गया था. आम लोगों में भी अंग्रेजों के प्रति आक्रोश बढ़ने लगा. इस तरह से 1857 की क्रांति के रूप में भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम ने जोर पकड़ा और आगे चलकर भारत को आजादी मिली.

1984 में भारत सरकार ने सम्मान में डॉक टिकट जारी किया था  

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मंगल पांडे अब हमारे बीच में नहीं हैं, मगर उनका नाम भारतीय इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से दर्ज है. उनके साहस की कहानी हमेशा आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी. इस अमर सपूत के सम्मान में भारत सरकार ने 1984 में एक खास डॉक टिकट जारी किया था. मंगल पांडे के जीवन पर आधारित एक फिल्म भी बन चुकी है. 2005 में ‘मंगल पांडे- द राइजिंग’ नाम की यह फिल्म रिलीज हुई थी.