श्मशान में होली खेलना वह भी चिता की राख से सुनकर ही आम लोग डर जाते हैं। लेकिन बनारस के मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर मसाने की होली खेलते हुए लोगों को देखकर हैरान रह जाएंगे। यहां हम आपको मसाने की होली की ऐसी तस्वीर दिखा रहे हैं जिसे देखकर आप हैरान रह जाएंगे।
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मणिकर्णिका घाट पर भस्म की होली
आमलकी एकादशी पर काशी विश्वनाथ की होली होती है और इसके अगले दिन यानी अबकी बार 4 मार्च को शनिवार को काशी के मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर लोग चिता भस्म से होली खेलेंगे। बाबा महाश्मशान नाथ मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने बताया कि यहां आज से ही हजारों की संख्या में लोग मसाने की होली खेलने के लिए इकट्ठा हो गए हैं।
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क्यों खेली जाती है भस्म की होली
पौराणिक मान्यताएं बताती है कि रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव माता पार्वती से शादी करने से बाद उन्हें गौना कराकर काशी लेकर आए थे। इसके बाद उन्होंने अपने गणों के साथ रंगों से होली खेली थी। इसके बाद बाबा ने अगले दिन अपने भूत-प्रेतों के साथ मसाने की होली खेली थी।
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भगवान शिव ने खेली थी भस्म से होली
मसाने की होली भगवान भोलेनाथ ने अपने गणों को प्रसन्न करने के लिए खेली थी। भूत, प्रेत, बेताल, राक्षस गणों की इच्छा थी की भोलेनाथ उनके साथ भी होली खेलें। अपने इन भक्तों की इच्छा की पूर्ति के लिए भोने बाबा ने यह होली खेली थी। तब से ही यह परंपरा काशी में चली आ रही है।
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काशी में भस्म की होली का अद्भूत नजारा
मसाने की अद्भुत होली आपको सिर्फ और सिर्फ काशी में ही देखने को मिलेगी। मणिकर्णिका घाट महादेव के जयकारों के साथ गूंज उठता है और लोग अवधूत बनकर भगवान भोले की भक्ति में लीन होकर बम-बम का जयघोष करते हुए मसाने की राख से होली खेलते हैं।
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चिता की भस्म की खेली जाती है होली
होली के मौके पर चिता की भस्म को लोग अबीर गुलाल की तरह इस्तेमाल करते हैं। ऐसा करके भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता ऐसी यहां की मान्यताएं कहती हैं। चिता की जो राख ठंडी हो जाती है लोग उसे एक दूसरे पर डालकर इस होली की मस्ती में मस्त होकर झूमते हैं।