दिल्ली: उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता लागू करने को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी प्रतिबद्ध नजर आ रहे हैं. आजादी के अमृत महोत्सव की पृष्ठिभूमि में न्यूज 18 इंडिया द्वारा आयोजित कार्यक्रम ‘अमृत रत्न सम्मान’ समारोह में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने यूनिफॉर्म सिविल कोड पर स्पष्ट कहा कि यह कानून हमारा संकल्प है और तय समय-सीमा के भीतर ही इस कानून को उत्तराखंड में लागू किया जाएगा.
यूनिफॉर्म सिविल कोड के मुद्दे पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि सामान नागरिक संहिता से जुड़ा कानून जल्द आएगा. उत्तराखंड में हर परिवार से कोई ना कोई सेना में काम करता है. हमने चुनाव से पहले ही संकल्प ले रखा था कि नई सरकार के गठन होने के बाद सबसे पहला फैसला समान नागरिक संहिता पर होगा. जनता ने हमें मैंडेट (जनादेश) दिया और हम उस दिशा में आगे बढ़ गए हैं.
उन्होंने आगे कहा कि सामान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लेकर 5 सदस्यीय कमेटी काम शुरू कर चुकी है. इतना ही नहीं, इसकी दो बैठकें भी हो चुकी हैं. इस मसले पर कमेटी जन संवाद करेगी और उसके बाद कानून को लेकर ड्राफ्ट बनाएगी. सरकार उसी ड्राफ्ट को लागू करेगी. उन्होंने भरोसा दिलाया कि तय समय सीमा में सामान नागरिक संहिता लागू होगा. उन्होंने कहा कि इससे 20 प्रतिशत अदालती केस भी अपने आप खत्म हो जाएंगे.
सामान नागरिक संहिता जैसे कमद की आलोचना के बीच सीएम धामी ने कहा कि इससे दिक्कत उनको हो रही है, जो तुष्टिकरण पर काम करते रहे हैं. हम किसी के दवाब में नहीं आएंगे. बता दें कि उत्तराखंड चुनाव 2022 के पहले भारतीय जनता पार्टी की ओर से सरकार बनने की दिशा में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने की घोषणा की गई थी. सीएम पुष्कर सिंह धामी की इस घोषणा के बाद प्रदेश की 70 में से 47 विधाानसभा सीटों पर पार्टी को जीत मिली थी.
क्या है समान नागरिक संहिता
समान नागरिक संहिता पूरे देश के लिये एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि कानूनों में भी एक जैसी स्थिति प्रदान करती है. इसका पालन धर्म से परे सभी के लिए जरूरी होता है.
क्या संविधान में इसका प्रावधान है
हां, संविधान के अनुच्छेद 44 कहता है कि शासन भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने की कोशिश करेगा. अनुच्छेद-44 संविधान में वर्णित राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों में एक है. यानि कोई भी राज्य अगर चाहे तो इसको लागू कर सकता है. संविधान उसको इसकी इजाजत देता है. अनुच्छेद-37 में परिभाषित है कि राज्य के नीति निदेशक प्रावधानों को कोर्ट में बदला नहीं जा सकता लेकिन इसमें जो व्यवस्था की जाएगी वो सुशासन व्यवस्था की प्रवृत्ति के अनुकूल होने चाहिए.