अटल बिहारी वाजपेई झांसी आते थे तो इस घर में जरूर जाते थे, जेल में साथ रहे गिरीश सक्सेना ने बांटीं खास यादें

झांसी. 16 अगस्त 2018… इस दिन भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई जी का निधन हो गया था. 1954 से लेकर 2004 तक के लंबे राजनीतिक सफर के अटल बिहारी वाजपेई भारतीय राजनीति में एक ध्रुव तारे की तरह थे. इस शानदार सफर में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वाजपेई को ना जानता हो. झांसी के रहने वाले वरिष्ठ भाजपा नेता गिरीश सक्सेना का अटल जी के साथ गहरा नाता रहा. दो बार वाजपेई के साथ जेल भी गए थे. सक्सेना बताते हैं कि पहली बार 1968 में कच्छ आंदोलन के दौरान वह अटल जी के साथ जेल गए और उसके बाद 1974 में भी अटल जी के साथ जेल में रहे. इस दौरान उन्होंने नैनी जेल में 18 दिन वाजपेई के साथ बिताए.

गिरीश सक्सेना याद करते हुए बताते हैं कि नैनी जेल में कई बार जेलर से टकराव की स्थिति बनी थी. वरिष्ठ नेता राजनारायण ने इस टकराव को हवा भी दी थी. लेकिन, वाजपेई अपनी सूझबूझ और नेतृत्व क्षमता के चलते कार्यकर्ताओं को समझा-बुझाकर शांत कर देते थे. गिरीश कहते हैं कि नेतृत्व क्षमता के अलावा वाजपेई के भाषण देने की शैली के भी वह मुरीद रहे हैं. वह दावा करते हैं कि वाजपेई की एकमात्र ऐसे वक्ता हैं जो एक भाषण के दौरान श्रोताओं को हंसा और रुला भी सकते थे साथ ही जनता के अंदर जोश भी भर देते थे.

विदेश मंत्री रहते आए थे घर

वाजपेई जब कभी झांसी आए तो सर्किट हाउस में रुकने के अलावा वे सक्सेना के घर अवश्य जाया करते थे. 1978 में विदेश मंत्री बनने के बाद जब वाजपेई झांसी आए तो उनका भोजन सक्सेना के घर ही हुआ. नम आंखों के साथ गिरीश कहते हैं, “अटल जी का हमारे घर आना कुछ ऐसा था, जैसे शबरी के यहां राम आ गए हों. उस दिन घर में त्योहार जैसा माहौल था. घर की महिलाएं भोजन बनाते समय गीत गा रहीं थीं”. सक्सेना ने बताया कि जब उनके पिता वाजपेई को माला पहनाकर स्वागत कर रहे तो वाजपेई ने कहा कि आप आज हमारे अन्नदाता हैं इसलिए स्वागत तो हमें आपका करना चाहिए.

देहांत की खबर ने झकझोर दिया था

16 अगस्त 2018 के दिन को याद करते हुए गिरीश सक्सेना भावुक हो जाते हैं. वह बताते हैं कि उस दिन किले के मैदान में वह पार्टी द्वारा आयोजित किसी कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. उसी दौरान उस समय के जिलाध्यक्ष प्रदीप सरावागी ने उन्हें अटल जी के देहांत की सूचना दी. सक्सेना रुंधे हुए गले से बताते हैं, “अटल जी के देहांत की सूचना मिलते ही कुछ पल के लिए मेरी आंखों के आगे अंधेरा छा गया. इसके बाद मैंने खुद को संभाला और कार्यक्रम मौजूद बाकी लोगों को मंच से इस दुखद घटना की सूचना दी. हमें ऐसा लगा जैसे पार्टी का सच्चा तारणहार चला गया है.”

पहले जनसंघ और और वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता 84 वर्षीय सक्सेना कहते हैं कि “अटल जी ने 1 वोट की वजह से इस्तीफा दे दिया था और आज एक वोट के लिए करोड़ों रुपए देने से भी लोग पीछे नहीं हटते. आज चुनाव जीतना ही एकमात्र मकसद हो गया है चाहे तरीका कैसा भी हो.”