अमेरिका और स्विटजरलैंड में उगने वाले ड्रैगन फ्रूट ने बदली भीलवाड़ा के किसान की किस्मत, जानिए कैसे

Rajasthan News : भीलवाड़ा के कोटडी उपखंड के खजीना गांव के प्रगतिशील किसान रामेश्वर जाट ( Progressive Farmer Rameshwar Jat) ने ड्रैगन फ्रूट (Dragon Fruit Cultivation) की खेती की है। इन्होंने गुजरात और श्रीलंका से ड्रैगन फ्रूट के पौथे मंगलवाकर अपने खेत में रोपे। अब ढाई साल बाद इन पर फल लगे हैं।

bhilwara dragon fruit cultivation

जयपुर: एग्रीकल्चर साइंस में हो रहे डवलपमेंट किसी चमत्कार से कम नहीं हैं। अब इसके चलते वो बाते भी संभव हो गई है, जिसकी कल्पना शायद मुश्किल थी। सुनने में अजीब लगेगा , लेकिन राजस्थान के भीलवाड़ा में अब दक्षिण अमेरिका ,भूटान और स्विटजरलैंड के ड्रैगन फ्रूट की खेती होने लगी है। भीलवाड़ा का कोटडी उपखंड के खजीना गांव के प्रगतिशील किसान रामेश्वर जाट ने श्रीलंका से यह पौधे मंगवाए और अब ढाई साल बाद इन पर फल लगे हैं।

ड्रैगन फ्रूट का पौधा 20 साल तक उत्पादन देता है । अभी यह ड्रैगन फ़्रूट ₹300 प्रति किलो में आसानी से बिक रहा है। वैसे जब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने ड्रेगन फ्रूट का नाम बदल कर “कमलम “रखने की घोषण की थी। तब इस पर राजनीति भी बहुत हुई थी ।

परंपरागत खेती से हुआ नुकसान, तब नया कुछ करने का सोचा
भीलवाड़ा जिले में ड्रैगन फ्रूट की पहली बार खेती करने वाले रामेश्वर लाल जाट को परंपरागत खेती में नुकसान उठाना पड़ रहा था। तब उन्होंने सोचा खेती में कुछ नया किया जाए। इसी उद्देश्य को लेकर रामेश्वर लाल गुजरात गए और वहां 3 साल तक ड्रैगन फ्रूट की खेती को बारीकी से समझा। इसके बाद कुछ पौधे गुजरात और बाकी 6000 पौधे श्रीलंका से ड्रैगन फ्रूट के मंगवा कर साल 2020 में अपनी दो बीघा जमीन में रोपे। जिसकी कीमत लगभग ₹600000 आई । अब ढाई साल किसान रामेश्वर लाल की मेहनत फलीभूत हुई और इन पर फल आने लगे हैं।

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किसान रामेश्वरलाल बताते हैं एक बार में लगभग 150000 रुपए का उत्पादन में कर लूंगा। ड्रैगन फ्रूट अभी ₹300 प्रति किलो के हिसाब से आसानी से बिक रहा है। इसके उत्पादन पर सबसे बड़ी खासियत यह है कि सूखे बाढ़ या अन्य किसी प्राकृतिक आपदा का कोई असर नहीं पड़ता है, यह कैक्टस की तरह का पौधा है जिसमें कम देखभाल की जरूरत होती है। यह 20 साल तक उत्पादन देता है। इसे खेत में किसी मजबूत डंडे या कॉलम के सहारे खड़ा करना होता है। ढाई से तीन साल में एक पौधे पर सालाना 25 से 30 किलो ड्रैगन फ्रूट का फल लगता है।
ड्रैगन फ्रूट में पाया जाते हैं औषधीय गुण
यह फ्रूट मुख्य रूप से दक्षिण अमेरिका में पाया जाता है। गुजरात के कच्छ नवसारी और सौराष्ट्र क्षेत्र में अब इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है। ढाई से 3 साल तक जब इसके फल नहीं आते हैं तब इन पौधों के बीच में खाली जगह पर सब्जियां और पाइन एप्पल लगाकर दैनिक खर्च निकाल लिया जाता है। ड्रैगन फ्रूट की लगभग 150 किस्मों में से किसान रामेश्वर लाल ने सी वैराइटी की फसल उगाई है, जो महंगे दामों पर बिकता है। यह इसराइल भूटान स्विटजरलैंड में ज्यादा उगाया जाता है। यह फल रसीला और औषधीय गुणों से भरपूर है।
डायबिटिज और कोलस्ट्रोल कंट्रोल करने में सहायक
ड्रैगन फ्रूट से जेम आइसक्रीम, जेली जूस और वाइन बनाई जाती है। ड्रैगन फ्रूट एक रसीला मीठा फल है जो दिखने में गुलाबी होता है। ड्रैगन फ्रूट का बायोलॉजिकल नाम हिलोकेरेस अंडटस और हिंदी में इसे पिताया या स्ट्रॉबेरी पियर के नाम से भी जानते हैं। ड्रैगन फ्रूट के नियमित सेवन से मधुमेह और कोलस्ट्रोल को नियंत्रित किया जा सकता है।

Dragon fruit

ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए जरूरी यह जलवायु
ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए नम और गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है। बर्फबारी वाले इलाके में इसकी खेती नहीं की जा सकती है। यदि हम तापमान की बात करें तो अधिकतम 40 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम 10 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले क्षेत्रों में इसकी खेती की जा सकती है। ड्रैगन फ्रूट के लिए मिट्टी 7-8 PH की उत्तम मानी गई है, वैसे सभी प्रकार की उपजाऊ मिट्टी इसकी खेती के लिए अनुकूल है। जल जमाव वाले इलाके में इसकी खेती नहीं की जानी चाहिए। जल निकासी की अच्छी व्यवस्था वाले क्षेत्रों में इसकी खेती उत्तम होती है।

क्योंकि भारत में नया फल है अतः किसानों को इसकी पूरी जानकारी के बाद ही खेती करना चाहिए। ड्रैगन फ्रूट के बीज और पौधे लगाकर दोनों प्रकार से इसकी खेती की जा सकती है। पौधे लगाने पर 2 से 3 साल में यह फल देने लग जाता है जबकि बीज की बुवाई कर खेती करने पर 4 से 5 साल में फल आते हैं।

इसकी खेती में कम सिंचाई की आवश्यकता होती है। सर्दी के मौसम में तो महीने में दो बार पानी देने से काम चल जाता है, जबकि गर्मी में इनके पौधों को 8 से 10 बार पानी देने की जरूरत पड़ती है। इसकी खेती में जैविक खाद को उत्तम बताया गया है। 10 से 15 किलो गोबर की खाद 50 से 70 ग्राम एनपीके को मिट्टी में मिला कर पौधों की रोपाई से पहले तैयार किए गए गड्ढों में भरकर सिंचाई करना उत्तम रहता है

गुजरात और हरियाणा सरकार देती है सब्सिडी
किसान रामेश्वर लाल ने कहा कि मैंने सूरत और गांधी नगर में रहते हुए इसकी खेती की जानकारी ली। गुजरात सरकार इसकी खेती पाए प्रति एकड़ 1.45 लाख रुपए की और हरियाणा सरकार 1.35 लाख रुपए की सब्सिडी देती है मगर राजस्थान में अभी कुछ नही मिलता है। रामेश्वर लाल के दोस्त किशन लाल ने बताया कि मुझे कोरोना होने पर किसी ने ड्रेगन फ्रूट खाने की सलाह दी थी। तब मैंने इसी रामेश्वर लाल जो गुजरात में रहता था, यह फल मंगवाया था जो आज हमारे गांव में ही पैदा हो रहा है।