मंडला. मंडला जिले के बाजारों में इन दिनों एक सब्जी की आमद हुई है. इस सब्जी का नाम है पिहरी. बाजार में आने से इसे खाने वाले बेहद खुश नज़र आ रहे हैं. इस दुर्लभ सब्जी का भाव सुनते ही आप घबरा जाएंगे. आसमान छूता भाव भी लोगों के उत्साह को कम नहीं कर रहा है. इतने महंगे होने के बावजूद लोग इसे बड़े ही चाव के साथ खरीद रहे हैं.
जायकेदार सब्जियों की बात की जाए तो एक से बढ़कर एक सब्जियां बाजार में मिलती हैं जबकि पहले सब्जियों का एक सीजन हुआ करता था. अब तो लगभग हर सब्जी हर सीजन में मिल जाती है. आज हम आपको एक अनोखी सब्जी के बारे में बताने जा रहे हैं जो एक निश्चित सीजन और निश्चित समय पर ही मिलती है. इस सब्जी के दाम सुनेंगे तो आपके होश उड़ जाएंगे लेकिन लोग भी फिर पूरे साल इसका इंतजार करते हैं.
जितनी बिजली चमकती है उतनी ये सब्जी होती है
पिहरी बारिश के पहले सीजन में मिलती है और मुश्किल से 20 से 25 दिन ही इस साग की पैदावार होती है. वो भी पूरी तरह से प्राकृतिक. यह सब्जी जंगल-पहाड़ों में एक निश्चित समय तक उगती है और ऐसा माना जाता है कि आसमान में जितनी बिजली चमकती है उतनी ही यह वनोपज उगती है. बात अगर पिहरी के दाम की करें तो इसके दाम आसमान पर हैं. फिर भी लोगों के बीच ये ऑन डिमांड पर है. इसकी कीमत आज 800 से लेकर 1000 रुपये किलो तक है.
जंगल में होती है बेहद कम
महानगरों में मशरूम कहलाने वाला ये साग मण्डला जिले में पिहरी नाम से जाना जाता है. इसके दाम ऊंचे होने की कुछ वजह है. पिहरी एक तो जंगल, पहाड़ जैसे क्षेत्रों में होती है. यह कम मात्रा में पैदा होती है. इसे इकट्ठा करना भी बड़ा काम होता है. इसकी पहचान आदिवासी समुदाय और वनांचल में रहने वाले ग्रामीणों को ही बेहतर होती है. वो इसे जंगल से चुन-चुनकर इकट्ठा करते हैं, इसलिए यह महंगी मिलती है.
अच्छी कमाई का जरिया
पिहरी भले ही कम समय के लिए आती है. लेकिन ये ग्रामीणों की कमाई का जरिया है. ग्रामीण जंगलों से पिहरी इकट्ठा कर सब्जी व्यापारी को बेचते हैं. फिर व्यापारी बाजार लाकर. पिहरी जिले के मवई, मोतीनाला और राष्ट्रीय उद्यान कान्हा से लगे जंगलों में होती है. जहां साल के पेड़ों की अधिकता होती है. वहां पर ये उगती है.
मीट का अच्छा विकल्प
देश के कई इलाकों में सदियों से मशरूम की एक प्रजाति लोगों के पसंदीदा भोजन में शामिल है. लेकिन इस प्रजाति के बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं. मशरूम की प्रजाति पिहरी शत-प्रतिशत प्राकृतिक उपज है. इसको वनस्पति मांस का सबसे अच्छा विकल्प कहा जाता है. पिहरी के बारे में कहा जाता है ये न सिर्फ मांस से ज्यादा पौष्टिक और फायदेमंद है बल्कि उससे कहीं ज्यादा लजीज भी है. चिकित्सक भी शाकाहारियों को ये खाने की सलाह देते हैं ताकि मांस जैसे पोषक तत्व उन्हें मिल जाएं.