ऋषि सुनक क्या ब्रिटेन के पीएम बनने की दौड़ में टिके रह पाएंगे?

ऋषि सुनक

ऋषि सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पद की होड़ में सबसे आगे नज़र आ रहे हैं. हालांकि अभी अंतिम रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता क्योंकि बोरिस जॉनसन की जगह लेने वाले कंजरवेटिव नेता और प्रधानमंत्री पद के लिए नेता के चुनाव की प्रक्रिया जारी है.

ब्रिटेन के पूर्व वित्त मंत्री ऋषि सुनक ने सांसदों के बीच होने वाले पहले तीनों चुनाव में जीत हासिल की है, लेकिन उन्हें बोरिस जॉनसन के सहयोगियों के विरोध का सामना भी करना पड़ा है. जॉनसन के सहयोगी बोरिस जॉनसन के इस्तीफ़े की वजह कैबिनेट से सुनक के इस्तीफ़े को मान रहे हैं.

हालांकि ऋषि सुनक को जॉनसन के मंत्रालय के कुछ कद्दावर मंत्रियों का सहयोग भी मिला है. ख़ास बात यह है कि सुनक ने खुद को ऐसे नेता के तौर पर पेश किया है जो कह रहा है कि जब तक महंगाई नियंत्रण में न आए, तब तक टैक्स नहीं वसूले जाएंगे और यह उनके प्रतिद्वंदी नेताओं के बिल्कुल उलट है.

सुनक फ़रवरी, 2020 में ब्रिटेन के वित्त मंत्री बने थे और कुछ ही सप्ताह के अंदर उनके सामने कोरोना महामारी और लॉकडाउन के दौरान ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को चलाने की चुनौती आ गयी. पहले लॉकडाउन के दौरान अपना 40वां जन्म दिन मनाने वाले सुनक ने कोरोना महामारी के दौरान भरोसे के साथ देश की अर्थव्यवस्था की बागडोर संभाली.

उन्होंने 2020 की गर्मियों में कहा था कि कोरोना संक्रमण के दौरान वे लोगों की हरसंभव मदद करेंगे और 350 बिलियन पाउंड की मदद की घोषणा भी की, जिसके बाद उनकी लोकप्रियता काफ़ी बढ़ गई थी. लेकिन कोरोना संकट के बाद से ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था की चुनौतियां बनीं रहीं. जून, 2020 में डाउनिंग स्ट्रीट में लॉकडाउन के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए सुनक को जुर्माना भी चुकाना पड़ा था.

इस साल अप्रैल में, कंजरवेटिव पार्टी के आलोचकों ने सवाल उठाया कि क्या करोड़पति सुनक ब्रिटेन के आम लोगों के घर चलाने और जीवन यापन की चुनौतियों को समझ चुके हैं.

इसी महीने सुनक और उनके परिवार की आर्थिक स्थिति को लेकर भी मामला गरमाया और उनकी पत्नी अक्षता मूर्ति के टैक्स भुगतान को लेकर विवाद सुर्खियों में आ गया. मूर्ति ब्रिटेन के क़ानूनों के हिसाब, विदेशों की अपनी कमाई पर टैक्स भुगतान में छूट का लाभ उठा रही थीं.

बाद में अक्षता मूर्ति ने घोषणा की वे ब्रिटिश क़ानून के तहत टैक्स का भुगतान करेंगी तब तक जाकर उनके पति पर से राजनीतिक दबाव कम हुआ.