Bengaluru: जीवन का एक हिस्सा मुश्किलें भी है, अगर इस हिस्से को जिसने कण्ट्रोल करलिया और आगे बढ़ने के थोड़ा भी सफल हो गया, तो उसे एक कामयाब इंसान बनने से कोई नहीं रोक सकता है। 50 साल के रेणुका आराध्य (Renuka Aradhya) ने यह साबित कर दिखाया है की आपकी लगन और कुछ करने की सोच को गरीबी और आर्थिक तंगी हरा नहीं सकती है। कठिन परिस्थियां भरा ही कुछ परेशानियां जरूर खड़ी कर दें, लेकिन वे आपको बढ़ने से रिक नहीं सकती हैं।
रेणुका एक वक़्त अपने पिता के साथ गांव की कच्ची सडकों में जाकर भीख माँगने का काम करते थे। किसी का भीख माँगना उसकी लाचारी को बयां कर देता है। अब आज अपनी पॉजिटिव सोच, लगन और कड़ी मेहनत की डम पर 40 करोड़ का साम्राज्य खड़ा कर लिया है।
दक्षिण भारत में बेंगलुरु (Bengaluru) के पास स्थित गोपसांद्रा नामक गांव से आने वाले रेणुका की का जीवन संघर्ष (Struggle) से भरा हुआ है। एक बहुत ही ग़रीब पुजारी परिवार में जन्मे रेणुका ने जीवन में बहुत ही मुश्किल परिस्थितियों का सामना किया। उनके घर के आर्थिक हालात इतने ख़राब थे कि उन्हें अपनी पढाई पूरी करने के लिए दूसरे के घर नौकर का काम करना पड़ता था।
अपनी 10वीं तक की पढाई पूरी करने के बाद रेणुका (Renuka Aradhya) एक बूढ़े व्यक्ति के घर उनकी सेवा और देख रेख का काम करने लगे। इसके अलावा क्षेत्र के एक मंदिर में पुजारी का भी काम करते थे। यह सब काम और जीवन 7 साल तक चलता रहा।
उनके मन में आहे पढ़ने की भी जिज्ञासा थी। ऐसे में उनके पिता ने रेणुका को शहर के एक आश्रम में दाखिला दिलवा दिया। उस आश्रम में केवल दो बार सुबह और शाम के 8 बजे खाने को मिलता था। ऐसे में रेणुका पूरे दिन भूख नहीं सहल कर पाते और पढाई भी सही से नहीं कर पाते थे। वे परीक्षा में फ़ैल रहे और उन्हें वापस घर लौटना पड़ा। कुछ समय बाद उनके पिता भी चल बसे।
रेणुका के सर दुःख का पहाड़ टूट पड़ा था और अपना जीवन यापन करने के लिए पास की ही एक फैक्ट्री (Factory) में काम मिल गया। एक साल तक फैक्ट्री में काम करने के बाद वो दूसरी कंपनी में काम करने लगे, वहां प्लास्टिक और बर्फ बनाने का काम किया जाता था। उसके बाद वो बैग की ट्रेडिंग करने वाली एक कंपनी में चले गए।
कुछ साल वहां काम करने के बाद उन्हें खुद का व्यवसाय चालू करने का ख्याल आया। उन्होंने सूटकेस अटैची के कवर का एक व्यवसाय शुरू किया, परन्तु वहां उन्हें 30000 रुपये का नुकसान हो गया। उसके बाद उन्होंने सिक्यूरिटी गार्ड (Security Guard) के रूप में जॉब करना शुरू कर दिया।
जॉब करते करते उन्हें जीवन में कुछ बड़ा करने का मन किया और गार्ड की नौकरी छोड़ने का मन बना लिया। फिर उन्होंने कार ड्राइविंग (Driving) सीखने का फैसला किया। इसके लिए अपने एक रिश्तेदार से कुछ पैसे कर्ज लेकर रेणुका ने ड्राइविंग सीखी और काम शुरू कर दिया। एक बार फिर उनका दुर्भाग्य हावी हो गया और कार पार्किंग के दौरान कार की टक्कर हो गयी।
हिम्मत बांधते हुए उन्होंने दिन-रात ड्राइविंग की प्रैक्टिस की और एक सफल ड्राईवर (Good Driver) बन गए। कुछ दिनों बाद वो एक बड़ी ट्रेवल एजेंसी (Travel Agency) में ड्राईवर का काम करने लगे। यहाँ वो देशी और विदेशी पर्यटकों को घुमाने का काम किया करते थे और उन्हें सैलरी के साथ साथ अच्छी टिप्स भी मिल जाती थी।
लगभग 4 साल तक ड्राइवर का काम करने के बाद रेणुका ने ख़ुद की एक ट्रेवल कंपनी (Travel Company) खोलने का मन बना लिया। ख़ुद की बचत और बैंक लोन की मदद से उन्होंने अपनी पहली कार खरीदी और ‘सिटी सफारी’ (Citi Safari) नाम से एक कंपनी शुरू कर दी। एक साल उसी कार से काम बढ़ने के बाद उन्होंने एक और कार खरीद ली।
उस वक़्त एक कैब कंपनी की स्थिति ख़राब चल रही थी और वो अपने बिज़नेस को बेचना चाहती थी। ऐसे में रेणुका ने लगब्भग 6 लाख में उस कंपनी को खरीद लिया, अब जिसके पास 35 कैब आ चुकी थी। इन सभी गाड़ियों के डम पर उन्होंने अच्छा ख़ासा काम और नाम बना लिया था।
फिर उनकी किस्मत तब चमकी जब अमेज़न इंडिया ने ख़ुद के प्रोमोशन के लिए उन्हें पसंद किया। धीरे-धीरे वालमार्ट, जनरल मोटर्स जैसी बड़ी-बड़ी कंपनियाँ उनके साथ डील करने लगी। एक एक सीढ़ी चढ़ते हुए आज इनकी कंपनी का टर्नओवर 40 करोड़ के पार है और यह 150 से ज्यादा लोगों को रोज़गार भी दे रही है।
वे सेवा भाव भी रखते हैं और महिला सशक्तिकरण को प्रोत्साहन देने के लिए रेणुका महिलाओं को ड्राईवर बनने के लिए भी प्रोत्साहित कर रहे हैं और उन्हें ख़ुद की कार खरीदने में 50 हज़ार तक की आर्थिक मदद भी करते है। उनका यह संघर्ष और सफलता यह साबिक कर देती है की मुश्किलें और रुकावट कितनी भी आएं, आप मेहनत करना और पॉजिटिव सोचना मत छोड़िये।