Hapur Gold Medalist Girl Story: हापुड़ की गोल्ड मेडलिस्ट छात्रा की कहानी आपको प्रेरित करेगी। काजल ने तमाम बाधाओं को पीछे छोड़ते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय स्तर पर हुई प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीतकर हर किसी को जवाब दे दिया है। अब उसकी निगाहें एशियाई गेम्स और राष्ट्रमंडल खेलों में बेहतर प्रदर्शन करने पर टिकी हुई हैं।
हापुड़: कुछ कर गुजरने की चाहत हो तो कोई भी लक्ष्य मुश्किल नहीं होता। लक्ष्य पाने के लिए परिश्रम करना पड़ता है। अगर आप परिश्रम की कठिनाई को देखने बैठेंगे तो सफलता संभव नहीं है। लेकिन, आप और आपके परिश्रम के बीच समाज की रूढ़िवादिता आ जाए तो फिर मुश्किलें अधिक बढ़ती हैं। काजल ने जब ट्रैक पर अपने कदम बढ़ाए तो बेड़ियां कदमों में जकड़ी। लेकिन, लड़की को कहां इसकी परवाह थी। लक्ष्य को मन में लिए मेहनत करती रही। आज उसकी सफलता को हर कोई सलाम कर रहा है। ट्रैक पर दौड़ती स्टीपचेज गर्ल काजल उन उपहासों को करारा जवाब दे रही थी, जिसने उसके कदमों को जकड़ने का प्रयास किया। उन रूढ़िवादिता को तोड़ने का प्रयास किया, जिसने उसे ट्रैक पर उतरने से रोकने की कोशिश की। स्टीपलचेज में बाधाएं दौड़ का हिस्सा होती हैं। उन्हें पार करने वाला ही विजेता होता है। काजल ने इसे अपनी जिंदगी में उतारा और जीत गई।
गोल्ड मेडलिस्ट बनी काजल शर्मा
हापुड़ की काजल शर्मा को लखनऊ यूनिवर्सिटी के 21 जनवरी को होने वाले दीक्षांत समारोह में पिरी मेमोरियल गोल्ड मेडल से सम्मानित किया जाएगा। विश्वविद्यालय के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी को इस सम्मान से सम्मानित किया जाता है। काजल ने खेलो इंडिया 2022, क्रॉस कंट्री नेशनल 2020 एवं 2021 और 3 किलोमीटर की स्टीपलचेज प्रतियोगिताओं में विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया। अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। स्टीपलचेज प्रतियोगिताओं में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के जरिए उसने विश्वविद्यालय का नाम रोशन किया। अब उसे विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से सम्मानित किया जा रहा है।
किसान की बेटी के लिए सफर नहीं था आसान
काजल शर्मा हापुड़ जिले के कंडोला गांव के एक छोटे किसान की बेटी है। उसके गांव में स्कूल नहीं था। सड़क और बिजली का अभाव था। लेकिन, मन में जुनून था, कुछ कर गुजरने का। पिता ने साथ दिया। जब काजल 10 साल की थी, तो पिता देवेंद्र शर्मा ने उन्हें प्रशिक्षित करना शुरू कर दिया था। लेकिन, पिता और बेटी को समाज के तानों को सहना पड़ा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले में रूढ़ियों को तोड़ना उनके लिए चुनौती थी।
काजल कहती हैं कि हमारे पिता ने कभी हमारा साथ नहीं छोड़ा। उन्हें अपने रिश्तेदारों, दोस्तों और गांव के लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा। लोग कहते थे कि बेटी लड़कों के साथ दौड़ रही होगी और बाप यहां बैठा हुआ है। उनके किसान होने और बेकार बैठने को लेकर ताने मारते थे। पिता ने परवाह नहीं की। बेटी को आगे बढ़ाया।