सोलन जिला में मक्की की फसल को ‘फाल आर्मी वोर्म’ नामक कीड़े के प्रकोप से बचाने के लिए कृषि विभाग ने किसानों के लिए परामर्श जारी किया है। यह जानकारी आज यहां कृषि उपनिदेशक डाॅ. राजेश कौशिक ने दी।
डाॅ. राजेश कौशिक ने कहा कि सोलन जिला के निचले क्षेत्रों में इस कीट का अधिक प्रकोप देखने को मिला है। प्राप्त जानकारी के अनुसार जिला में लगभग 4750 हैक्टेयर मक्की की फसल में खेतों के बीच-बीच में स्थानीय पैच के रूप में 10 से 15 प्रतिशत पौधे इस कीड़े से ग्रस्त पाए गए हैं।
उन्होंने कहा कि ‘फाल आर्मी वोर्म’ नामक कीड़े से मक्की की फसल को बचाने के लिए किसान अपनी फसल का नियमित निरीक्षण करें। उन्होंने कहा कि यदि खेत में मक्की के 5 प्रतिशत से अधिक पौधों पर ‘फाल आर्मी वोर्म’ नामक कीड़े का प्रकोप पाया जाता है तो इसके नियंत्रण के लिए उपाय आरम्भ कर दें।
डाॅ. राजेश कौशिक ने कहा कि किसान इस कीड़े से ग्रसित पौधों के सबसे उपरी पत्ते अथवा मध्य छल्ले में खेत की मिटटी, रेत या राख भरें। यदि तदोपरांत बारिश न हो तो उनमें पानी भर दें। ऐसा करने से सुंडियां मर जाएंगी। उन्हांेने कहा कि खेत में प्रकाश प्रपंच तथा फेरोमोन ट्रैप स्थापित करें। जैविक कीटनाशकों जैसे बीटी (2 ग्राम प्रति लीटर पानी), नीम आधारित कीटनाशक (2 मिली लीटर प्रति लीटर पानी), फफूंद आधारित कीटनाशकों मेटारहीजीयम (5 ग्राम प्रति लीटर पानी) इत्यादि का उपयोंग करें।
डाॅ. राजेश कौशिक ने कहा कि किसान मक्की की फसल में परजीवियों जैसे ट्राइकोग्रेम्मा, कोटेशिया, टेलीनोमस इत्यदि की संख्या बढ़ाने के लिए इनमें प्रयोगशाला में तैयार परजीवियों के अंडे छोड़ें।
उन्होंने कहा कि यदि इन उपायों के बाद भी ‘फाल आर्मी वोर्म’ का प्रकोप कम नहीं होता है तो अंतिम उपाय के रूप में रसायनों जैसे स्पाईनोसैड (0.3 मिली लीटर प्रति लीटर पानी), कलोरनट्रेनिलिप्रोल (0.3 मिली लीटर प्रति लीटर पानी), एमाबेक्टीन बेन्जोएट (0.4 ग्राम प्रति लीटर पानी), थायोडीकार्ब (2 ग्राम प्रति लीटर पानी), फ्लूबेंडामाइड (0.3 मिली लीटर प्रति लीटर पानी) या थाओमिथेक्सोन एवं लैम्ब्डा साईंहेलोथ्रिन (0.25 मिली लीटर प्रति लीटर पानी) में मिला कर ग्रसित पौधों के सबसे उपरी पत्ते अथवा मध्य छल्ले में भरें।
उन्होंने कहा कि ग्रसित पौधों के अवशेष खेत में न छोड़ें नहीं तो इससे दूसरी फसल को नुकसान होगा। उन्होंने कहा कि शोध के अनुसार यह कीड़ा 80 से ज्यादा फसलों को हानि पहुंचाता है। उन्होंने कहा कि अगले वर्ष मक्की की फसल के साथ उड़द, लोबिया इत्यादि दाल की फसल अवश्य लगाएं।ऐसी मिश्रित फसल में फाल आर्मी वोर्म कीड़े का प्रकोप कम होता है और मक्की की फसल को दलहन फसल से नत्रजन निःशुल्क प्राप्त होती है। उन्होंने कहा कि मक्की की फसल के चारों और 3-4 लाइनें नेपियर घास की ट्रैप फसल के रूप में मुख्य फसल से 10 दिन पहले लगाएं ताकि वहां पर ‘फाल आर्मी वोर्म’ कीड़े की उपस्थिति होते ही उन्हें ट्रैप करके वहीं समाप्त कर दिया जाए।
कृषि उपनिदेशक ने कहा कि यह कीड़ा दक्षिण अमेरिका में पाया जाता था परन्तु कुछ वर्ष पहले यह अफ्रीकी देशों से होते हुए भारत में कर्नाटक राज्य पहुंचा और वहां से उत्तरी पूर्वी राज्यों में पहुंचने के बाद अब उत्तरी राज्यों में भी पहुंच गया है। उन्होंने कहा कि नत्रजन के अधिक उपयोग के कारण पौधों की रोगों और कीटों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता समाप्त हो जाती है। इस कारण विभिन्न प्रकार के रोग और कीड़े फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं।
सोलन जिला में लगभग 23,500 हेक्टेयर भूमि पर मक्की की खेती की जाती है। जिला का मक्की उत्पादन लगभग 58750 मीट्रिक टन है।