हिमाचल प्रदेश विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद (हिमकोस्ट) शिमला के साथ मिलकर विश्वविद्यालय राजमा के भौगोलिक सूचकांक के लिए प्रयास कर रहा है।
हिमाचली राजमा को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए कृषि विवि पालमपुर बड़े स्तर पर काम कर रहा है। विवि ने फैसला किया है कि वह आने वाले दिनों में हिमाचली राजमा के लिए भौगोलिक सूचकांक (जीआई) प्राप्त करेगा। इससे किसानों को भी इसकी अच्छी कीमत मिलेगी। विवि ने कुकुमसेरी (लाहौल-स्पीति), किन्नौर, कुल्लू, मंडी और चंबा जिलों के दुर्गम जनजातीय क्षेत्रों में राजमा की 368 स्थानीय किस्मों को तलाशा है।
विवि के कुलपति प्रो. एचके चौधरी ने कहा कि प्रदेश में ये क्षेत्र राजमा की खेती के लिए प्रमुख तौर पर जाने जाते हैं। राजमा को एकत्र करने के बाद उन्होंने इनकी विशिष्टता, मूल्यांकन और शोधन के बाद ख्याति प्राप्त वैरायटी त्रिलोकी राजमा को प्रजनन शुद्ध को ध्यान में रखते हुए विकसित किया है। हिमाचल प्रदेश विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद (हिमकोस्ट) शिमला के साथ मिलकर विश्वविद्यालय राजमा के भौगोलिक सूचकांक के लिए प्रयास कर रहा है।
उन्होंने खुलासा किया कि विवि नए शोध के माध्यम से हिमालयी क्षेत्र में जलवायु के लचीलेपन का लाभ लेते हुए इसकी गुणवत्ता में सुधार करते हुए विशेष प्रयास कर रहा है। हिमाचल अपनी भौगोलिक परिस्थितियों के लिए विख्यात है। यहां एक तरफ ठंडा शुष्क रेगिस्तान है, दूसरी तरफ विभिन्न क्षेत्र है, जो राजमा को लेकर अन्य राज्यों से अलग है।
उन्होंने बताया कि राजमा की त्रिलोकी किस्म शुष्क ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में खेती के लिए है। इसका बड़ा और हल्का पीला बीज है जो पकाने में बढ़िया, जैविक स्वाद से भरपूर, बैक्ट्रीरियल ब्लाइट जैसी बीमारी से मुक्त और औसतन प्रति हेक्टेयर 20 से 22 क्विंटल पैदावार रहती है।