कोर्ट जाएगी अब सेब बागवानों की लड़ाई, संयुक्त किसान मंच ने लिया फैसला

हिमाचल प्रदेश में सेब बागवानों की सरकार से चल रही लड़ाई अब अदालत तक जाएगी। राज्य में एपीएमसी एक्ट को सही तरह से लागू नहीं करने पर कोर्ट में चुनौती दी जाएगी जिसका एलान संयुक्त किसान मंच ने किया है।
इसी मकसद से संयुक्त किसान मंच ने एक लीगल सेल तैयार कर लिया है जो इस एक्ट के अलग अलग प्रावधान लागू करने के लिए राज्य सरकार, एग्रीकल्चर मार्केटिंग बोर्ड और एपीएमसी को अदालत में पार्टी बनाएंगे।
संयुक्त किसान मंच के पदाधिकारी एवं एप्पल ग्रोवर फोरम के अध्यक्ष दीपक सिंघा ने बताया कि किसानों को आढ़तियों और लदानियों के शोषण से बचाने वाला कानून सरकार ने मजाक बनाकर रख दिया है। इसलिए बागवानों को सड़कों पर उतरना पड़ा है। उन्होंने बताया कि एक्ट के कई प्रावधान सरकार दशकों बाद भी लागू नहीं कर पाई है। इसके लिए बागवान अब न्यायिक लड़ाई भी लड़ते रहेंगे।
इस एक्ट की धारा 39 की उप धारा 19 में किसानों की उपज बिकने के एक दिन के भीतर उन्हें पेमेंट दिए जाने का प्रावधान है। एक्ट के अनुसार, यदि कोई कमीशन एजेंट एक दिन में पेमेंट नहीं करता तो उस सूरत में कमीशन एजेंट की फसल को जब्त करके उसकी ऑक्शन करा सकते है।
उस ऑक्शन में मिलने वाले पैसे का भुगतान किसान को करने का प्रावधान है। सच्चाई यह है कि कई बागवानों को दो से तीन साल पहले की पेमेंट भी नहीं मिल रही है।
कानून की धारा 28 (2) के मुताबिक किसानों का हर एक उत्पाद माप.तोल करके बिकना चाहिए लेकिन कानून के इस प्रावधान को भी कमीशन एजेंटों के दबाव में लागू नहीं किया जा रहा। देश की सभी मंडियों सहित पूरी दुनिया में सेब किलो के हिसाब से बिकता है लेकिन हिमाचल में कुल्लू मंडी को छोड़कर कहीं भी मोलभाव करके सेब नहीं बेचा जाता।

एपीएमसी एक्ट में 5 से 8 रुपए अधिकतम मजदूरी की दरें तय हैं लेकिन प्रदेश की 90 फ़ीसदी मंडियों में तय दरों से ज्यादा मजदूरी काटी जा रही है। कई मंडियों में तो 15 से 18 रुपए तक मजदूरी काटी जा रही है। इससे बागवानों की गाढ़ी कमाई का बड़ा हिस्सा लेबर या उनसे काटे जा रहे तरह-तरह के चार्जिज के नाम पर काट लिया जाता है।
इन्हीं मांगों लेकर बागवान डेढ़ माह से सड़कों पर है ।