कौन बनाता है राष्ट्रपति और उनके मेहमानों का खाना, कैसी है पहले नागरिक की रसोई

राष्ट्रपति भवन में नई राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का आगमन हो चुका है. इसके साथ ही 300 एकड़ परिसर में फैली खास इमारत में तमाम बदलाव भी हो रहे हैं. आमतौर पर हर बार राष्ट्रपति बदलने के बाद यहां के सचिवालय का स्टाफ भी बदलता है. राष्ट्रपति भवन के खास किचन में व्यंजनों की लिस्ट में बदलाव होता है. ये बदलाव मौजूदा राष्ट्रपति के खान-पान की रुचि और पसंद के अनुरूप होता है. ऐसा इस बार भी हो रहा है. क्या आपको मालूम है कि इस बार राष्ट्रपति भवन की रसोई में क्या नया पकने लगा है. भोजन डिपार्टमेंट यानि राष्ट्रपति भवन की खास किचन का प्रमुख कौन है, जो वहां के खानपान पर निगाह रखता है.

हर नए राष्ट्रपति के आगमन के साथ यहां के मेनू में राष्ट्रपति के गृह राज्य के व्यंजनों को शामिल किया जाता है. खासकर राष्ट्रपति के पसंदीदा खाने को. द्रौपदी मुर्मू को उडिया व्यंजन पाखला बहुत पसंद है. वह शाकाहारी हैं और अपने खाने में प्याज और लहसुन का कतई इस्तेमाल नहीं करतीं. मतलब वो सात्विक खाना ही खाती हैं. तो जाहिर सी बात है कि राष्ट्रपति भवन में अब उनके लिए जो भी खाना बनेगा, उसमें काफी बदलाव होगा.

वैसे आपको बता दें कि पाखला चावल से बनने वाला ऐसा व्यंजन है, जो आमतौर पर हर उड़िया की पसंद होता है. राष्ट्रपति साथ में साजन साग और आलू भर्ता भी खाने में पसंद करती हैं. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी शाकाहारी थे. हालांकि उससे पहले राष्ट्रपति रहे प्रणब मुखर्जी खाने के शौकीन थे. उन्हें मछलियों की डिश पसंद थीं.

भारत यात्रा पर आने वाले हर बड़े देश के राष्ट्राध्यक्ष के सम्मान में राष्ट्रपति भवन में भोज दिया जाता है. ये परंपरा लंबे समय से चली रही है. ये उत्सुकता का विषय भी हो सकता है कि 340 कमरों और तीन लाख वर्ग मीटर क्षेत्रफल में फैले राष्ट्रपति भवन का किचन कैसा है. कैसे ये विदेशी मेहमानों के लिए भोज की तैयारी करता है.

एडविन लुटियन द्वारा करीब 90 साल पहले बनाया गया ये भवन अक्सर बड़े कार्यक्रमों और भोज का गवाह बनता है. यहां दो किचन हैं- एक राष्ट्रपति का निजी किचन और दूसरा राष्ट्रपति भवन में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में खानपान की जिम्मेदारी निभाने वाला किचन.

पहला किचन छोटा है, लेकिन दूसरा किचन काफी बड़ा- जो आकार-प्रकार और स्टाफ की क्षमता के हिसाब से पांच सितारा होटलों के किचन को भी मात देता है. बड़ा किचन सारी आधुनिक सुविधाओं से लैस है. फिलहाल मॉन्टी सैनी राष्ट्रपति भवन की इस किचन के हेड हैं. वह 45 लोगों की किचन टीम को लीड करते हैं. कुछ समय पहले जब फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के स्वागत में यहां भोज दिया गया तो मैक्रों और उनके साथ आए मेहमानों ने राष्ट्रपति भवन में परोसे गए पकवानों की ख़ूब तारीफ की.

किचन के कई सेक्शन  

राष्ट्रपति भवन के इस किचन के कई सेक्शन हैं, जिसमें मुख्य किचन, बेकर्स, हलवाई, कॉन्टिनेटल और ट्रेनिंग एरिया शामिल हैं. ये पूरी तरह वातानुकूलित है. इसकी सफाई के लिए भी एक खास टीम है, जो हाईजीन के उच्च मानदंडों के अनुसार किचन को हमेशा साफ रखती है. यही किचन राष्ट्रपति भवन के सभी आधिकारिक समारोहों, मीटिंग्स, रिसेप्शन और कॉन्फ्रेंस में खानपान की व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालता है.

राष्ट्रपति भवन के किचन में तैयार जापानी व्यंजन सुशी (फोटो साभारः शेफ मोंटू सैनी पेज)

समोसे और कचौड़ियों की बात ही खास

राष्ट्रपति भवन के रसोइये तरह-तरह के व्यंजनों के उस्ताद हैं. बेकरी सेक्शन अगर केक, ब्रेड्स, पिज्जा, डोनट्स, पेस्ट्री आदि का विशेषज्ञ है, तो भारतीय मिठाइयों का सेक्शन जलेबी, गुलाब जामुन, इमरती, बंगाली मिठाइयां आदि बनाता है. जिन लोगों ने राष्ट्रपति भवन के समारोहों में शिरकत की है, वो बताते हैं कि यहां के समोसे, ढोकले और कचौड़ियों का स्वाद ही अलग होता है, जो यहां आने वाले लोगों को भी खूब भाता है.

अवधी व्यंजनों का भी बोलबाला

इसके अलावा मुर्ग दरबारी, गोश्त थाखनी, दाल रायसीना, कोफ्ता, आलू बुखारा कुछ ऐसे व्यंजन हैं, जिसमें यहां की किचन देश के किसी पांच सितारा होटल की पाक कला को भी मात देती है. यहां परोसे वाले अवधी व्यंजनों का जायका भी बेहतरीन रहता है.

ये सभी व्यंजन अलग-अलग कार्यक्रमों और उनकी प्रकृति, आने वाले मेहमानों की प्रकृति, उनके खान-पान के तरीकों और पंसद के हिसाब से तैयार किए जाते हैं. जिस देश के मेहमान आ रहे होते हैं, वहां के व्यंजनों को भी भारतीय और कांटिनेंटल डिश के साथ परोसने की कोशिश की जाती है, यहां ये सिलसिला तब से ही चल रहा है, जब 1929 में ये बनकर तैयार हुआ और तत्कालीन वायसराय यहां रहने आए.

राष्ट्रपति भवन में भोज से पहले सजी टेबलें (फोटो साभारः शेफ मोंटू सैनी पेज)

80 के दशक में किचन आधुनिक होनी शुरू हुई

आजादी के बाद भारत के पहले भारत के गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचार्य ने मेहमानों की शानदार अगवानी की परंपरा को और आगे बढाया. लेकिन तब तक यहां का किचन अंग्रेजी स्टाइल का बना हुआ था. जैसे-जैसे यहां भारत के राष्ट्रपतियों ने अपनी जगह ली, उन्होंने इसकी किचन में अपनी पसंद के अनुसार डिश के मेनू में फेरबदल किया.

80 के दशक में यहां किचन पूरी तरह आधुनिक होना शुरू हुआ. नब्बे का दशक आते-आते राष्ट्रपति भवन का किचन पांच सितारा होटलों के व्यंजनों को भी मात देने लगा. ये कहा जा सकता है कि आज इसका जो स्वरूप है, उसमें ये दुनिया के किसी भी बेहतरीन होटल के किचन को कंपटीशन दे सकता है. दशकों में राष्ट्रपति भवन के किचन विभाग ने लोगों के विशिष्ट स्वागत और खाना परोसने की विशिष्ट शैली भी विकसित कर ली.

निजी पारिवारिक किचन भी 

राष्ट्रपति भवन में ही एक राष्ट्रपति का निजी पारिवारिक किचन भी है, जिसमें राष्ट्रपति, उनके परिवार और मेहमानों के खानपान का ध्यान रखा जाता है. इस किचन का प्रमुख भी एग्जीक्यूटिव शेफ ही होता है. फिलहाल मुकेश कुमार राष्ट्रपति भवन के एग्जीक्यूटिव शेफ हैं. उनके पास इस क्षेत्र का बड़ा अनुभव है.

राष्ट्रपति भवन के किचन में बनने वाली सब्जियां और मसाले पूरी तरह से यहां के किचन गार्डन में ही उगाए जाते हैं. ये काफी बड़ा है. यहां अलग-अलग प्रकार और प्रजातियों की सब्जियां और हर्ब्स उगाए जाते हैं, ये पूरी तरह आर्गेनिक होते हैं.

हर काम का समय है तय 

राष्ट्रपति भवन की ये पाक शाला रोज़ नई चुनौतियों के साथ काम शुरू करती है. हर काम के लिए एक समय तय होता है, उससे एक मिनट इधर या उधर नहीं हो सकता. किचन स्टाफ को तब गर्व का अहसास भी होता है, जब मेहमान उनके व्यंजनों की तारीफ करते हैं.

सुबह जल्दी शुरू होता है किचन का काम 

अगर रात के कुछ घंटों को छोड़ दिया जाए तो किचन में सुबह जल्दी काम शुरू होता है और फिर देर तक चलता रहता है. किचन टीम रोजाना 15-16 घंटे काम करती है. किसी भी समारोह या औपचारिक बैंक्वेट के लिए तैयारियां कई दिन पहले शुरू हो जाती हैं. इसके मेनु के लिए प्लानिंग की जाती है. फिर एग्जीक्यूटिव शेफ इस पर मुहर लगाते हैं. मेनु की मंजूरी के बाद सामग्रियों की लिस्ट स्टोर में भेजी जाती हैं. इसमें खाद्य सामग्री से लेकर कटलरी, क्रॉकरी, कांच के सामान आदि सभी जरूरी चीजों की डिमांड होती है. सभी तरह की कटलरी और कांच के सामानों पर राष्ट्रीय प्रतीकचिह्न छपा होता है.

दावत का मेनु फाइनल होने के बाद अगर इसके सामानों की मांग स्टोर से की जाती है, तो साथ ही इसके मेनु को भी राष्ट्रपति भवन के ही प्रिंटिग प्रेस में छपने के लिए भेज दिया जाता है. हालांकि इससे पहले डिजाइन विभाग इसकी विशिष्ट तौर पर डिजाइन भी करता है.

यूं तैयार की जाती है खाने की टेबल 

राष्ट्रपति भवन में किसी भी भोज से करीब छह से आठ घंटे पहले टेबल तैयार कर ली जाती है. उस पर क्रॉकरी सज चुकी होती है. टेबल पर फूलों की सजावट होती है. आमतौर पर ऐसे भोज में सूप, वेज और नॉन वेज व्यंजनों की विविधता और कई तरह के डेजर्ट होते हैं. इसके बाद चाय, कॉफी का दौर चलता है. मेहमानों की विदाई के समय उन्हें पान और माउथ फ्रेशनर दिया जाता है. खाने के दौरान नौसेना का बैंड संगीत की धुनें बजाता है. इस संगीत का कंपोजिशन हिन्दी, अंग्रेजी और संबंधित देश के अनुसार होता है.