फिल्म सूरमा के रिलीज होने के बाद भारतीय हॉकी के दिग्गज संदीप सिंह (Sandeep Singh) शायद ही किसी परिचय के मोहताज होंगे. हम में से कई लोग शायद इस बात से अनजान होंगे कि संदीप सिंह बचपन में बहुत आलसी हुआ करते थे लेकिन जैसा कि हम जानते हैं कि उनके अंदर एक शानदार हॉकी खिलाड़ी (Hockey Player) हमेशा से बसा हुआ था. हालांकि एक हादसे ने उनकी जिंदगी को हमेशा के लिए पूरी तरह से बदल दिया था. आइए जानें कि संदीप को विश्व प्रसिद्ध हॉकी खिलाड़ी बनने के लिए क्या करना पड़ा?
संदीप सिंह बचपन में काफी आसली बच्चे थे. उनका काम केवल खाना और सोना था, उनकी इस हरकत को देखते हुए उनकी फैमिली को यकीन हो गया था कि संदीप खेल के लिए नहीं बना है. जब संदीप छोटे थे तब उनके बड़े भाई ने हॉकी को करियर के रूप में चुना. उनके भाई भी टैलेंटेड ड्रैग फ्लिकर थे और उन्हें लगातार पॉपुलैरिटी मिल रही थी जिसे देखकर संदीप के मन में भी हॉकी खेलने की एक चिंगारी पैदा हो गई.
संदीप को बेहतरीन ड्रैग-फ्लिकर बनाने में उनके कोच बिक्रमजीत (Bikramjeet) सिंह का बहुत बड़ा हाथ है. शुरुआत में बिक्रमजीत सिंह ने उन्हें कोचिंग दी. इसके बाद संदीप भी हॉकी ट्रेनिंग के लिए अकादमी में अपने भाई के साथ शामिल हो गए. संदीप की कड़ी मेहनत ने उन्हें जल्द ही इंडियन नेशनल हॉकी टीम का हिस्सा बना दिया. संदीप सिंह दुनिया के सबसे तेज ड्रैग-फ्लिकर (Drag-Flicker) में से एक रहे हैं. उनकी 145 किमी प्रति घंटे की तूफानी गति है. कोई आश्चर्य नहीं कि उन्हें फ़्लिकर सिंह के रूप में उपनाम दिया गया है.
जनवरी 2004 में, संदीप ने कुआलालंपुर में सुल्तान अजलान शाह कप के दौरान इंटरनेशनल मैच में डेब्यू किया. उसी वर्ष अगस्त में, उन्होंने एथेंस, ग्रीस में आयोजित समर ओलंपिक में पदार्पण किया. 2004 में ही, उन्होंने पाकिस्तान में आयोजित जूनियर एशिया कप हॉकी में 16 गोल किए और वह उस टूर्नामेंट में टॉर स्कोरर भी बने.
उन्होंने इस टूर्नामेंट के फाइनल में भारत को पाकिस्तान के खिलाफ 5-2 से जीत दिलाई. उन्होंने इस मैच में 2 गोल किए और भारत को यह खिताब पहली बार मिला. 2004 में, वह लाहौर में आयोजित चैंपियंस ट्रॉफी के लिए खेले, और 3 गोल किए. उन्होंने चेन्नई में अगले साल 2005 की चैंपियंस ट्रॉफी में भी 3 गोल किए. 2006 में, उन्होंने मेलबर्न में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में 7 गोल किए, जिससे वे इस टूर्नामेंट के टॉप स्कोरर बने. उसी साल जून में, उन्होंने कुआलालंपुर में आयोजित सुल्तान अजलान शाह कप के दौरान फिर से 3 गोल किए.
संदीप सिंह और हरजिंदर कौर की प्रेम कहानी
जिस स्टेज पर संदीप सिंह की पत्नी हॉकी के मैदान में धूम मचा रही थी, उसी समय पुरुष हॉकी टीम का कोई और भी भारत को राष्ट्रीय स्तर पर गौरवान्वित कर रहा था. साल 2006 में संदीप सिंह को जर्मनी में हॉकी वर्ल्डकप के लिए चुना गया था. तभी एक दुर्घटना घटी, 22 अगस्त 2006 को शताब्दी एक्सप्रेस में सफर करते हुए संदीप को गलती से गोली लग गई. गोली कमर के नीचे लगी थी और लगभग 2 साल तक संदीप व्हीलचेयर में रहे और उनकी पत्नी हरजिंदर कौर( Harjinder Kaur ) ने उनका कठिन समय में साथ दिया.
आखिरकार, सभी संघर्षों के बाद, संदीप सिंह 2008 में ठीक हो गए और उन दोनों ने शादी करने का फैसला किया. अंतत: हरजिंदर को हॉकी के मैदान को किसी ऐसे व्यक्ति के लिए छोड़ने का एक कठिन फैसला लेना पड़ा, जिसकी वह परवाह करती थी और जिससे वह प्यार करती थी. हरजिंदर अब दो बच्चों की मां हैं और रिटायरमेंट के बाद संदीप सिंह के साथ एक खुशहाल जीवन जी रही हैं.
एक भयावह दुर्घटना ने बदल दी जिंदगी
22 अगस्त 2006 यह भारतीय टीम के साथ-साथ एक महान हॉकी खिलाड़ी संदीप सिंह के लिए एक काला दिन था. उस दिन वह अपने दोस्त मेजर सिंह के साथ शताब्दी एक्सप्रेस में यात्रा कर रहे थे. दरअसल सिंह जर्मनी में होने वाले वर्ल्ड कप में हिस्सा लेने के लिए नेशनल टीम से जुड़ने वाले थे. तभी अचानक उनके दोस्त मेजर सिंह द्वारा एक गोली सीधे उनकी जांघ पर जा लगी, जिससे वह बुरी तरह घायल हो गए.
इस खबर ने हॉकी देखने वाले पूरे देश के दर्शकों में खलबली मचा दी थी. दरअसल टूर्नामेंट उस घटना के ठीक 2 दिन बाद होने वाला था, और संदीप इस टूर्नामेंट का हिस्सा नहीं बन पाए. गोली ने उनके बैकबोन, लीवर और किडनी को क्षतिग्रस्त कर दिया, जिससे उनके शरीर का निचला हिस्सा पैरालाइज हो गया और डॉक्टरों ने यहां तक कह दिया कि वह अब और नहीं खेल सकते.
सभी को लगने लगा था कि उनका हॉकी करियर खत्म हो गया है. क्योंकि हॉकी एक ऐसा खेल है जहां फिटनेस बहुत जरूरी है. और संदीप के लिए इतनी गहरी चोट से वापसी करना वाकई चुनौतीपूर्ण था. इस वजह से वह 2008 में ओलंपिक के क्वालीफाइंग मैचों में नहीं खेल सके. लेकिन संदीप सिंह ने अपने सपनों को लेकर उम्मीद नहीं छोड़ी और 2008 में उन्होंने न सिर्फ वापसी की बल्कि अजलान शाह टूर्नामेंट 2008 में 8 गोल कर हीरो बनकर सबको चौंका दिया. भारत को दूसरा स्थान दिलाने में मदद करने के साथ-साथ उन्हें ‘टॉप गोल स्कोरर’ पुरस्कार भी मिला.
गोली लगने के बाद कप्तान के रूप में वापसी
उन्हें 2009 में भारतीय राष्ट्रीय हॉकी टीम का कप्तान बनाया गया, जिसके बाद उन्होंने 13 साल में पहली बार सुल्तान अजलान शाह कप जीतने वाली टीम का नेतृत्व किया. उन्होंने भारत को 2012 के समर ओलंपिक में क्वालीफाई करने में मदद की जो लंदन में आयोजित किया गया था. फ़्लिकर सिंह ने इस मैच में 5 गोल दागे, जिसमें उनकी हैट्रिक भी शामिल है.
इस क्वालीफाइंग टूर्नामेंट के फाइनल में, उन्होंने फ्रांस के खिलाफ खेला और अपनी जीत 8-1 से दर्ज की. वह लंदन ओलंपिक का क्वालीफाइंग मैच जीतकर सबसे सफल खिलाड़ी होने के साथ-साथ हीरो भी बने.
संदीप 2014 में इंडियन नेशनल हॉकी टीम से बाहर हो गए, जिसके बाद उन्होंने क्लब हॉकी लीग और विदेश में अपनी ताकत दिखाना शुरू कर दिया. 2017 की शुरुआत में, उन्होंने हॉकी से सन्यास ले लिया और फिर उन्होंने कोचिंग लेने की इच्छा जताई. वर्तमान में सिंह हरियाणा सरकार में खेल मंत्री के पद पर कार्यरत हैं.