Peach Interesting History: आड़ू भारत का बहुत पसंदीदा फल नहीं है, लेकिन इसके चाहने वाले विशेष कारणों से इसके मुरीद हैं. वह ये है कि इस खट्टे-मीठे और रसीले फल में गुण भरे पड़े हैं. यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर उसे मजबूत करता है. फाइबर अधिक होने के कारण पाचन सिस्टम को भी दुरुस्त रखता है. इसका नियमित सेवन वजन को भी कंट्रोल करता है. इस फल का इतिहास खासा रोचक है और कई देशों में इस फल को लेकर अलग-अलग तरह की किंवदंतियां भी रही हैं.
क्या बुरी आत्माओं को दूर रखता था यह फल?
हजारों वर्षों से आड़ू पृथ्वी पर मौजूद है और यह कई सभ्यताओं का गवाह रहा है. इसका आकार और रंग कुछ अलग तरीके का होता है, इसलिए इसके साथ कुछ मिथक भी जुड़े हुए हैं. पुराने समय में अपने घरों से बुरी आत्माओं को दूर रखने के लिए चीन के लोग आड़ू के पेड़ की लकड़ी को धनुष, बाण, मूर्ति आदि बनाकर घरों के दरवाजे पर लटकाते थे. कोरिया में दस विशेष पेड़ों में आड़ू का पेड़ भी शामिल है और इसे दीर्घायु, धन, सम्मान व खुशी का प्रतीक माना जाता था. विएतनामी लोग मानते थे कि यह फल बुराइयों से दूर रखता है. पश्चिम में जब आड़ू पहुंचा तो वहां के निवासी इसे ‘फारसी सेब’ कहकर बुलाते थे, क्योंकि फारसी सौदागर इसे वहां लेकर गए थे. भारत में इस फल को लेकर न तो कोई विशेष आग्रह रहा है और न ही किसी तरह की अलग मान्यता या विश्वास.
चीन के पत्थरों में पाए गए थे आड़ू के जीवाश्म
इस मसले पर दो-राय नहीं है कि आड़ू चीन का प्राचीन फल है और माना जाता है कि चीन में 6000 ईसा पूर्व आड़ू को यांग्ज़ी नदी के किनारे उगाया गया था. वहां के पत्थरों में आड़ू के जीवाश्म पाए गए हैं. भारतीय अमेरिकी वनस्पति विज्ञानी डॉ. सुषमा नैथानी ने आड़ू के उत्पत्ति केंद्र को चिन्हित करते हुए जानकारी दी है
कि यह चीन व दक्षिण पूर्वी एशिया जैसे चीन, ताइवान, थाइलैंड, मलेशिया, फिलीपींस, वियतनाम, कोरिया व दक्षिणपूर्व एशिया में सबसे पहले उगा. अंग्रेजी भाषा के विश्वकोष ‘ब्रिटेनिका’ के अनुसार, आड़ू शायद चीन में उत्पन्न हुआ और फिर एशिया के माध्यम से भूमध्यसागरीय देशों और बाद में यूरोप के अन्य हिस्सों में पश्चिम की ओर इसका विस्तार हुआ.
कुछ विद्वान इसका उत्पत्ति केंद्र फारस बताते हैं. यह फल चीन से ही भारत में पहुंचा और कहा जा रहा है कि भारत में आड़ू पहली बार लगभग 1700 ईसा पूर्व हड़प्पाकाल के दौरान दिखाई दिया. एक विचार यह भी है कि दूसरी शताब्दी में कनिष्क-कुषाण काल में चीन के एक नागरिक इसे भारत में लाए थे. इस विचार में दम नजर आता है, क्योंकि 700-800 ईसा पूर्व लिखे गए भारत के आयुर्वेदिक ग्रंथ ‘चरकसंहिता’ में आड़ू (संस्कृत नाम आद्रालु:, आरुकम) का कोई वर्णन नहीं है.
सिकंदर महान इसके बीज यूरोप लेकर गया था?
धीरे-धीरे आड़ू का सफर बाकी विश्व में शुरू हुआ. यह फल चीन से निकलकर ग्रीस, फिर इटली, फ्रांस और स्पेन पहुंचा. इतिहास की किताबें बताती हैं कि स्पेनिश खोजकर्ता वर्ष 1571 में आड़ू को मैक्सिको और बाद में दक्षिण अमेरिका ले आए. लगभग 1600 में यह उत्तरी अमेरिका में नज़र आने लगा और 1607 में वर्जीनिया के जेम्सटाउन में दिखाई दिया. इसकी खेती 1600 के दशक में न्यू जर्सी, डेलावेयर और मैरीलैंड में शुरू हो गई थी. कुछ विज्ञानी दावा करते हैं कि फारस पर विजय करने के बाद सिकंदर महान आड़ू के बीजों को यूरोप ले गए और शुरुआती दौर में फ्रांस और स्पेन में इसे उगाया गया, लेकिन इस दावे के समर्थन में उचित प्रमाण उपलब्ध नहीं है. अब विश्वभर में आड़ू की 200 किस्में मौजूद हैं और शेक के अलावा इसका मिठाई, पाई, जैम और आइसक्रीम के लिए इस्तेमाल होता है.
कुछ विज्ञानी दावा करते हैं कि फारस पर विजय करने के बाद सिकंदर महान आड़ू के बीजों को यूरोप ले गए.
खनिज और विटामिन्स से भरपूर होता है आड़ू
फिलहाल, भारत में आड़ू की पैदावार जमकर होती है और पहाड़ी प्रदेशों में यह खूब उगता है. इस फल को चाहने वाले इसके खट्टे-मीठे और रसभरे स्वाद के दीवाने होते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि आड़ू में विटामिन ए, सी, बी1, बी2, बी6, और पोटैशियम, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, कैल्शियम, सल्फर, क्लोरीन, मैंगनीज, जिंक और आयरन जैसे खनिज होते हैं. साथ ही इसमें फाइबर भी खूब होता है. सौ ग्राम आड़ू में छह प्रतिशत खनिज, 1.5 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है. आयुर्वेदाचार्य व योगगुरु आचार्य बालकृष्ण के अनुसार, आड़ू का फल कषाय, मधुर, अम्ल, उष्ण, गुरु तथा पित्त-कफ शामक होता है. यह फल डायबिटीज और पाइल्स के इलाज में मदद करता है. आड़ू का पका हुआ फल स्वाद में मधुर और स्वभाव में गुरू (भारी) होता है. यह रुचिकर, धातुवर्धक और शीघ्र पचने वाला है.
शरीर में नहीं चढ़ती चर्बी, लेकिन ज्यादा न खाएं
आहार विशेषज्ञ कहते हैं कि इन्हीं विशेषताओं के चलते इस फल को खाने से शरीर पर चर्बी नहीं चढ़ती. यह शरीर में रोगों से लड़ने के लिए प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाता है. आड़ू खाने से आंखों की रोशनी स्वस्थ बनी रहती है. चूंकि, इसमें फाइबर होता है, इसलिए पाचन सिस्टम को दुरुस्त रखता है.
आड़ू खाने से आंखों की रोशनी स्वस्थ बनी रहती है.
यह शरीर में रक्त संचार को सामान्य बनाए रखता है और दिल को भी सवस्थ रखता है. इसमें खनिज है, इसलिए एनीमिया की समस्या भी नहीं होती है. इसमें मिठास बहुत बढ़कर नहीं होती, इसलिए शुगर वाले लोग इसका सेवन कर सकते हैं. यह गठिया में भी लाभकारी है. आड़ू ज्यादा खाने के कुछ नुकसान भी हो सकते हैं. यदि ज्यादा खा लिया तो पेट में दर्द हो सकता है. दस्त भी हो सकता है और किसी-किसी को एलर्जी भी हो सकती है.