चील की पत्तियों में ढूंढ निकाला आजीविका का साधन

जादारी के सेल्फ हेल्फ़ ग्रुप की 10 महिलाए तैयार कर रही उत्पाद

रमेश ठाकुर
सोलन

जंगलों में बेकार मानी जाने वाली चलार (चीड़) की पत्तियों से कंडाघाट के जदारी गांव के स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने कई उत्पाद तैयार किए हैं। अब इन उत्पादों की डिमांड लगातार बढ़ती जा रही है ।

ये महिलाएं जितने भी उत्पाद तैयार कर रही हैं, वे हाथों हाथ बिक रहे हैं । जदारी स्वयं सहायता समूह में दस महिलाएं इस काम से जुड़ी हैं। ये सभी चलार की पत्तियों से रोटी रखने का बॉक्स, पेंसिल बॉक्स, पेन स्टैंड कप ट्रे, चिल्लर बॉक्स समेत कई तरह के उत्पाद तैयार कर रही हैं । इससे जहां महिलाओं की आमदनी बढ़ गई है, वहीं उनका इसमें खर्च भी नहीं हो रहा है। जहां एक और महिलाएं इन उत्पादों को बनाने से अपनी आजीविका सुधार रही हैं, वहीं जरूरत पड़ने पर परिवार की मदद भी कर रही हैं। क्योंकि इससे महिलाओं की आमदनी में भी सुधार हो रहा है ।
जंगलों के लिए खतरनाक हैं चलार की पत्तियां

चलार की पत्तियां जंगलों के लिए खतरनाक होती हैं।

गर्मियों के दौरान चीड़ के जंगलों में इन्हीं पत्तियों में आग लगने के कारण जंगल नष्ट हो जाते हैं। इनमें लगी आग को बुझाना काफी मुश्किल रहता है। ऐसे में जहां एक ओर महिलाओं के इस तकनीक से जहां उनकी आमदनी बढ़ा दी है, वहीं जंगलों को भी आग से बचाने में वे सहयोग कर रही हैं। इन पत्तियों को न तो पशुओं को खिला सकते और न ही इसका इस्तेमाल किसी और जगह होता है ।

अंजना ने बताया अब तक दो लाख रुपये कमाए

ग्रुप की प्रधान और प्रशिक्षका अंजना ने बताया कि वे तीन सालों से यह काम कर रही हैं। अब लगातार उनके सामान की डिमांड बढ़ती जा रही है। उन्होंने बताया कि जब से उन्होंने यह काम शुरू किया है, तब से अभी तक उन्होंने इससे करीब दो लाख रुपये तक कमा लिए हैं और अभी भी कई ऑर्डर पेंडिंग चल रहे हैं। उन्होंने बताया कि वे अपने परिवारजनों से कोई भी सहायता नहीं लेतीं और परिवार को जरूरत पड़ती है तो उनकी भी सहायता करती हैं। उन्होंने बताया कि कई महिलाएं उनसे काम सीखकर अब यही काम कर रही है।