छत्तीसगढ़ी म पढ़व- ये बात हे के बारुद के गोला?

भले ही कुरुक्षेत्र में महाभारत हो जाए, अथवा अयोध्या श्मशान घाट में तब्दील हो जाए, क्या फर्क पड़ता है? लोगों का मुंह आज इतना खतरनाक हो गया है वह बारूद उगलने लगा है. बिना ब्रेक के यदि गाड़ी चलेगी तो दुर्घटनाएं तो होगी ही. इसलिए मुख पर संयम रूपी ब्रेक का होना जरूरी है.

नीति शतक में यही तो कहा गया है- ”शौर्यस्य वाक्यसंयम:” अर्थात वीरता की आभूषण संयम है. कायर क्या खाक संयम का पालन करेंगे. इसलिए अनहोनी से बचने के लिए ”कम बोले, धीरे बोले और मीठे बोले” जैसे स्लोगन का प्रयोग किया जाना चाहिए.

अइसन मन के मुंह ला थुथर देना चाही, मुरकेट देना चाही, सुरर के जीभ ल फेंक देना चाही घुरवा मं कचरा सही, अइठ देना चाही, दुबारा बक्का झन खुलय. गजब अजलइत करत हें, आनी-बानी जइसने पावत हे तइसने मुंह फरकावत हे, जना-मना लड़ई के मैदान मं खड़े हे, बइरी संग तलवार भांजत हे.

सबके घर मं, परिवार मं, समाज मं अउ देश मं आगी लगावत हे, जइसने पावत हे तइसने बोल-बोल के. ये मुंह ला कोन अइसे कतेक आजादी दे दे हे ते ककरो हित-अनहित घला नइ देखत हे. अतको नइ सोचत हें के आन-तान बोलिहौं तब ये बोली-बात के का असर होही. अतेक अकलमुंडा अउ अकलमुंडी नइ बन जाना चाही के ओकर बोली तीर कस काम करय. बात, बोली अउ जुबान कुछु का, बात एक्चेच हे. ये दू तरह के होथे. उही एक बात गुरतुर होथे, मन ला सुकुन अउ शांति देथे, हिरदय मं परेम पैदा कर देथे, इहां तक देखे मं आथे के आंसू घला ढरक जथे अउ मुंह ले दूसर ढंग ले निकले बोली बात, जबान हा जहर घोरे कस लगथे.
रामायन, महाभारत म अइसन बोली के ठउका उदाहरण देखे ले मिलथे. का अइसे बात बोल दिस द्रौपदी, जेला सुन के दुर्योधन तिलमिलागे. ओ बात ओकर छाती मं तीर मारे असन अइसे घुसरगे जइसे हिरनी ला कोनो शिकारी निशाना साध के जमीन मं गिरा देथे, छटपटावत रहिथे, तड़पत बिन पानी के मछरी बरोबर. जहर खाय कस लगथे अइसने बोली, मर जतिस तइसे जीव हा तालाबेली करे ले धर लेथे. द्रौपदी सही जहर घोरे कस बात कैकेयी घला बोले रिहिसे. ओकर बोली ला सहे नइ सकिस राजा दशरथ अउ अपन परान ला तियाग दिस.

द्रौपदी के बोली कुरुक्षेत्र मं महाभारत करा दिस अउ कैकेयी के बोली राजा के परान ला हर लिस. पूरा अयोध्या वीरान होगे, सुनसान होगे,सन्नाटा पसरगे असमशान घाट असन. यहा का बोली, बात अउ जबान जेमा तलवार कस धार होथे, कैंची कस कच-कच चलथे. भगवान आंखी, कान, नाक, मुंह, हाथ अउ गोड़ देहे, एकर सेती नइ देहे के जाव संसार मं अजलइन करत रइहौ, घर-परिवार उजारिहौ, खून-खराबा करिहौ, इंसान ला इंसान नइ समझिहौ. चेतलग परानी हव, हित-अनहित सब ला समझत हौ, फेर काबर अइसन ढंग के जान-सुन के सब कोती अशांति फ़इलाथौ? मनखे हौ, इंसान हौ, तब थोकन इंसानियत अउ मानवता नांव के चीज तो थोकन होना चाही. काबर कुकुर मांस खाय बरोबर ककरो घर मं पथरा फेंकथौं, आगी लगाथौ. धरम, राजनीति, उद्योग धंधा, खेती-किसानी एमन तो कभू अनदेखनी नइ मरय एक दूसर बर, सब अपन-अपन रस्दा मं चलत रहिथे. कोनो मनखे ला आंय-बांय कहि देना, का जरूरत हे, कोनो ला अइसन बोले के? लगथे मनखे के रूप में कोनो राक्षस के रूप धर के अवतरे हौ ये धरती मं. नइते मानस जोनी मं जउन जनम धर के आथे तेकर मुंह ले अइसन बात कभू निकले नइ सकय.

बोले के घला सलीका होथे, कोन बात ला कोन करा कइसे बोले जाय? अब बहिनी करा कहूं परेमिका सही लटर पटर कहूं बात करे जाही तउन तो फभय नहीं ना, युद्ध के मैदान मं लड़े बर गे हस अउ अरजुन सही कहूं ”न कांक्षे विजयं कृष्ण” कस गोठियाय ले धर लेबे तब तो होगे ना काम, लड़ डरे लड़ई. जइसन मौका तइसन बात करे जाथे. अइसे नहीं के उत्ता-धुर्रा फलानी अइसना, फलाना वइसना, ओहर खोरी, अंधरी, डेढ़ बग्गी हे तब फलाना लफंगा, चोर, बदमाश, अउ डकैत हे.अइसन बोली- बात मं रंगझाझर नइ मातही, लड़ई-झगड़ा, खून-खराबा नइ होही तब का होही? जइसे बिना ब्रेक के गाड़ी होथे तइसने कतको झन के बोली, बात अउ जबान के कांही ठिकाना नइ राहय. जहां एक घौं मुंह खुलगे ते फेर शुरू, कब का कहि दिही, बोल दिही अइसन बन के कांही ठिकाना नइ राहय? सबके मुंह आज खुलगे हे. कोनों ला रोके छेके नइ सकय. सुनब मं आय हे के सरकार हा संसद मं नियमावली बनइया हे जेमा राजनीति, धरम, उद्योग-धंधा, शिक्षा, न्याय, समाज, परिवार अउ घर मं अइसन ढंग के बात करे मं कहूं कोनो ला नुकसान होवत हे ओकर ऊपर रोक लगाय जाही. बने हे बन जाय,फेर चले मुंह अउ चले… ला कोन कभू रोक सके हे भला आज तक? भगवान करय, अइसन लपरहा, बड़बोला अउ अजलइत करइया मन ला सद्बुद्धि देवय, विवक देवय तभे देश अउ समाज मं शांति अउ सुख रइही.