जंगम योगी: महादेव की जांघों से हुई थी उत्पत्ति, केवल इन्हें है शिव-पार्वती विवाह कराने का अधिकार

हर सोमवार और विशेष कर शिवरात्रि के अवसर पर हरियाणा से पंजाब तक के शहर-गांवों में शिव का गुणगान करते हुए एक अनोखी गायनशैली में आपको एक अनूठा भजन हर कहीं सुनने को मिल जाएगा. टल्ली (एक प्रकार की घंटी) की आवाज के साथ ये अनोखा भजन आपको अपनी तरफ आकर्षित करेगा. इस अनोखे भजन को गाने वाले होते हैं ‘जंगम बाबा’. इनके द्वारा गाए जाने वाले भजन से भी अनोखी है इन योगियों की कहानी. तो चलिए जानते हैं कि आखिर कौन होते हैं ये घुमंतू योगी और कैसे अपना जीवनयापन करते हैं:

कौन होते हैं जंगम बाबा?

Jangam Yogi

इन ‘जंगम योगियों’ पर हरियाणा राज्य का अधिकार माना जाता है. कहते हैं ये लोग हरियाणा से ही निकल कर देशभर में अलग अलग नामों से जाने जाते हैं. जानकारी के मुताबिक जंगम शब्द जड़ का विलोम शब्द है, जिसका अर्थ है चलने फिरने वाला. ये योगी एक स्थान से दूसरे स्थान तक भ्रमण करते हैं और दान से ही अपना जीवनयापन करते हैं. शैव संप्रदाय से जुड़े इन योगियों को भगवान शिव की भक्ति के लिए जाना जाता है. 

ये है इनकी पहचान!

Jangam Yogi

इनकी पहचान बहुत ही आसान है. अगर आप कहीं भी गेरुआ लूंगी कुर्ते पहने, सिर पर दशनामी पगड़ी और उस पर तांबे-पीतल के बने गुलदान में मोर पंखों का गुच्छा लगाए और हाथ में एक विशेष आकार की घंटी जिसे टल्ली कहते हैं, पकड़े हुए साधू को देखें तो समझ जाएं कि ये जंगम ही है. ये अन्य भिक्षुओं की तरह सीधे भिक्षा नहीं मांगते बल्कि घरों दुकानों के आगे खड़े हो कर टल्ली बजाते हुए अनोखा शिव भजन गाने लगते हैं. इनके भजन में शिव विवाह कथा, कलयुग की कथा और शिव पुराण तक शामिल होता है. 

हाथ फैला कर दान नहीं लेते 

सबसे खास बात है कि ये योगी कभी भी हाथ फैला कर दान नहीं मांगते. इन्हें जब भी कोई दान देता है तो ये अपने हाथ में पकड़ी टल्ली को उलटकर उसमें दान स्वीकार करते हैं. लोककथाओं के अनुसार ये योगी टल्ली में दान इसलिए लेटे हैं कि इन्हें भगवान शिव का आदेश मिला था कि ये माया को कभी हाथ में ना लें, यही वजह है कि ये दान टल्ली में लेते हैं.

ऐसे हुई थी जंगम की उत्पत्ति 

Jangam Yogi

जंगम साधुओं की उत्पत्ति को लेकर दो तरह की कथाएं प्रमुख रूप से प्रचलित हैं. पहली कथा के अनुसार कहा जाता है कि माता पार्वती ने जब भगवान गणेश को बनाया तो उन्होंने शिवजी से कहा कि वह भी किसी देव की उत्पत्ति करें. ऐसे में भगवान शिव ने अपनी जांघ को काटा और उसमें से गिरा रक्त कुश नामक मूर्ति पर पड़ा और वह निर्जीव मूर्ति जीवित हो गई. इसी कुश की मूर्ति से उत्पत्ति हुई जंगम साधुओं की. 

दूसरी कथा के अनुसार माना जाता है कि शिव-पार्वती के विवाह के दौरान भगवान शिव ने पहले विष्णु और फिर ब्रह्माजी को विवाह कराने हेतु दक्षिणा देनी चाही लेकिन दोनों ने दक्षिणा लेने से इनकार कर दिया. हिंदू मान्यताओं के अनुसार बिना दक्षिणा स्वीकार किये कोई भी अनुष्ठान संपन्न नहीं माना जाता. यही कारण था कि भगवान शिव ने अपनी जांघ काटकर जंगम साधुओं को उत्पन्न किया. इसके बाद इन साधुओं ने ही दक्षिणा लेकर शिव-पार्वती विवाह रस्में पूरी कराईं और खूब गीत गाए. यही कारण है कि आज भी शिव पार्वती विवाह जैसे अनुष्ठान को कराने का अधिकार सिर्फ जंगम साधुओं के पास ही है. 

नाम अलग अलग मगर पहचान एक 

Jangam Yogi

जंगम साधु पूरे देश के अलग अलग हिस्सों में अलग अलग नामों से जाने जाते हैं. महाराष्ट्र से मध्यप्रदेश तक इन्हें जंगम कहा जाता है तो कर्नाटक में ये जंगम अय्या (आचार्य) स्वामी कहा जाता है. तमिलनाडु के कई इलाकों में जंगम साधु जंगम वीराशिव पंडरम के नाम से जाने जाते हैं. वहीं हरियाणा में जंगम योगी तो उत्तर भारत में जंगम बाबा के नाम से जाने जाते हैं. आंध्रप्रदेश में इन्हें जंगम देवा तो नेपाल में जंगम गुरु के नाम से बुलाया जाता है. 

जानकारी के अनुसार देशभर में इन साधुओं की आबादी 5 से 6 हज़ार के बीच है. इन साधुओं से जुड़ी एक खास बात ये भी है कि ऐसे ही कोई भी व्यक्ति जंगम साधू नहीं बन सकता. कहा जाता है कि सिर्फ जंगम साधु का पुत्र ही जंगम साधु बन सकता है. कहा जाता है कि इनकी हर पीढ़ी में हर जंगम परिवार से एक सदस्य साधु बनता है. इसी तरह यह समुदाय सदियों से बढ़ता चला आ रहा है.