जमीन पर नहीं 40 फीट ऊंचे आम के पेड़ पर बना है यह अद्भुत आशियाना, एक टहनी को भी नही हुआ नुकसान

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कईयों का सपना होता है, बिल्डिंग के सबसे ऊंचे माले पर एक घर हो…जिसकी बालकनी से ठंडी ठंडी हवा आए… सामने खूबसूरत नजारे दिखें और शोर के नाम पर बस खुद की आवाजें हों.. भई जिनकी जेब में मोटी रकम है वो तो इस सपने को पूरा भी कर लें लेकिन बाकी लोगों का क्या?

तो इन बाकी लोगों को उदयपुर के कुल प्रदीप सिंह से सीख लेना चाहिए. जिन्होंने चिडियों के बसने वाली जगह पर खुद का आशियाना बनाया है. जो ज़मीन से काफ़ी ऊंचाई पर भी है, जहां ठंडी और साफ हवा आती है, शोर के नाम पर पक्षियों का संगीत सुनाई देता है. और सबसे खास बात ये कि घर बनाने के लिए ना तो ज्यादा रकम खर्च की गई ना ही प्रकृति को कोई नुकसान पहुंचाया.

बस मन किया और जा बसे ईको फ्रेंडली आशियाने में… वो भी आम के पेड़ पर!

एक टहनी को भी नही हुआ नुकसान

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झीलों के लिए मशहूर उदयपुर राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत से ओत-प्रोत है. पहाड़ियों से घिरा हुए इस शहर में महलों की कमी नहीं है. पर फिर भी कुल प्रदीप सिंह का छोटा सा घोसला हर किसी को अपनी ओर आकृषित करता है. असल में कुल प्रदीप सिंह ने अपना घर 40 फीट ऊंचे आम के पेड़ पर बनाया है. इस ट्री हाउस में सुविधा की हर चीज मौजूद है. यहां बेडरूम, किचन, वॉशरूम और एक लाइब्रेरी तक है.

वैसे तो कुलप्रदीप अजमेर में पले-बढे लेकिन उदयपुर उन्हें बसने के लिए सबसे अच्छी जगह लगी. पहले प्लान ये था की जमीन खरीदेंगे, प्लॉटिंग होगी, फिर नींव डाली जाएगी और उस पर तैयार होगा घर. लेकिन जहां जमीन देखी गई वहां का इतिहास जानने के बाद पूरी प्लानिंग बदल गई. कुल प्रदीप का ‘ट्रीहाउस’ जिस जगह पर है उस इलाके को पहले ‘कुंजरो की बाड़ी’ कहा जाता था.

मीडिया से बात करते हुए प्रदीप बताते हैं कि यहां रहनेवाले लोग, फलों के पेड़ लगाते थे और फल बेचकर अपना गुजारा करते थे लेकिन जैसे-जैसे शहर का दायरा फैलता गया, वैसे—वैसे वहां जंगलों की कटाई शुरू हो गई. उस जगह से करीब 4 हजार पेड़ काट दिए गए. कुल प्रदीप ने अपने प्रॉपर्टी डीलर से कहा कि क्या पेड़ काटे बिना कोई घर बन सकता है, तो उसे मना ​कर दिया.

इसके बाद पेड़ को काटने की जगह उसे उखाड़कर अन्य खाली जगह पर लगाने का सुझाव दिया पर इसमें ज्यादा खर्च होगा इसलिए ये आइडिया भी काम ना आया. कुल प्रदीप नहीं चाहते थे कि उनके घर के कारण सालों पुराने पेड़ तबाह कर दिए जाएं. इसलिए उन्होंने पेड़ पर ही घर बनाने के लिए कहा लेकिन उनकी इस बात के लिए कोई इंजीनियर राजी ना हुआ.

कुलप्रदीप ने आईआईटी से इंजीनियरिंग की थी, वे माहिर थे इसलिए उन्होंने खुद पेड़ पर अपने घर को डिजाइन किया. 1999 में मकान का काम शुरू हुआ जो एक साल में बनकर तैयार हो गया. दो मंजिला मकान की शुरूआत जमीन से 9 फीट ऊंचाई से होती है. कुल प्रदीप कहते हैं कि जब मकान बना था तब पेड़ 20 फीट का था और अब ये 40 फीट का है. मकान बनाने के लिए पेड़ की एक टहनी तक नहीं काटी. इसलिए मकान के कमरे, किचिन, बाथरूम से पेड़ की टहनियां निकली हुईं हैं. कई टहनियों को तो फर्नीचर की तरह इस्तेमाल किया जाता है. जैसे बुक शेल्फ, सोफा और टीवी स्टैंड

रिमोट से चलती हैं घर की सीढियां

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कुलप्रदीप के ट्रीहाउस में रिमोट कंट्रोल वाली सीढियां लगी हैं. इतना ही नही मकान बनाने के पहले उन्होंने पेड़ के आसपास 4 खंबे बनाएं. जिसमें से एक खंबा ‘विद्युत् परिचालक’ का  काम करता है, ताकि अगर कभी बारिश में बिजली कड़के तो वह इस पेड़ पर न गिरे. फिर बनाया मकान का पूरा ढांचा वो भी स्टील से. सेल्यूलॉज शीट और फाइबर से घर की दीवारें और फर्श बनाया गया. 

जैसे जैसे पेड़ की ऊंचाई बढ़ी उन्होंने मकान की एक मंजिल और बढ़ा दी जब मकान में प्रवेश किया जाता है तो कमरों में पेड़ की टहनियां नजर आती हैं. पहली मंजिल पर किचन, बाथरूम, और डाइनिंग हॉल बनाया है. इसके बाद दूसरी मंजिल पर वॉशरूम, लाइब्रेरी और एक कमरा बना है. तीसरी मंजिल पर भी एक कमरा बना है, जिसकी छत ऊपर से खुल सकती है.

खास बात यह भी है कि पेड़ को बढ़ने के लिए जगह-जगह बड़े छेद छोड़े गए हैं. ताकि पेड़ की शाखाओं को भी सूर्य की रोशनी मिल सके और वे अपने प्राकृतिक रूप से बढ़ सकें. इस पेड़ पर आम भी खूब फलते हैं और पक्षियों को भी यहां रहना बहुत पसंद है. कुल प्रदीप कहते हैं कि हमने पेड़ पर मकान बनाकर पक्षियों के रहने की जगह ले ली इसलिए उन्हें अपने घर में रहने की पूरी आजादी दी है

इस मकान में लाइट, पंखा, फ्रिज जैसी सभी जरूरी सुविधाएं हैं. हालांकि यह मकान इतना ठंडाता है कि पंखे की जरूरत ही नहीं होती. वैसे अपनी मां की सेहत को देखते हुए कुलप्रदीप ने पास में ही एक और मकान बनाया है ताकि वे वहां आराम से रहें लेकिन वे खुद इस मकान में आराम से रहते हैं.

लिम्का बुक में शामिल हुआ नाम

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कुलप्रदीप के जिस आइडिया को लोगों ने मजाक समझा था उसी ने उन्हें ख्याति दिलवाई. उनका नाम और यह ट्री हाउस लिम्का बुक आॅफ रिकॉर्ड में दर्ज है. जो लोग उदयपुर घूमने आते हैं वे उनके मकान को देखने भी आते हैं. इंजीनियरिग के छात्रों के लिए तो यह एक तरह का स्टडी मटेरियल है. कुल प्रदीप कहते हैं कि लोगों को ट्री हाउस का कॉन्सेप्ट समझने बहुत जरूरत है. असल में जो ट्री हाउस बन रहे हैं, उन्हें सुविधाजनक बनाने के चक्कर में पेड की टहनियों को ही काट दिया जाता है. जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए. 

ट्री हाउस का मतलब ही है पेड़ पर रहना और जब पेड़ पर रहना ही है तो हमें उसके नक्शे के हिसाब से मकान को तैयार करना होगा. उनके पास बहुत से लोग आते हैं जो ट्री हाउस बनवाने की मांग करते हैं पर वे सुविधाओं से समझौता नहीं करना चाहते इसलिए पेड़ की ट​हनियों में कांट छांट की बात करते हैं. जबकि मैं पेड़ को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता. तो अगर आपका उदयपुर जाना हो तो कुलप्रदीप के ट्री हाउस को भी देखकर आइएगा. बेशक यह महलों की तरह नहीं है पर जो भी है वो प्रकृति की गोद में बसने जैसा है…!