जलवायु परिवर्तन की वजह से जर्मनी को क्यों हो रहा है हर साल अरबों का नुकसान

इन दिनों यूरोप में भीषण गर्मी से हाहाकार मचा हुआ है. ब्रिटेन में अधिकतम तापमान पहली बार 40 डिग्री सेंटीग्रेड को छू गया है. इसके अलावा यूरोप के अन्य देश सूखे और भीषण बाढ़ से परेशान हैं. पिछले कुछ सालों से यूरोप में जलवायु परिवर्तन का असर कुछ गहरा हो रहा है और  हर साल इन मौसमी घटनाओं के चरम स्तर देखने को मिल रहे हैं. अब जर्मनी के आर्थिक मामलों और जलवायु गतिविधि मंत्रालय के द्वारा करवाए गए अध्ययन से एक खुलासा हुआ है कि साल 2000 से जर्मनी को हर साल 6.6 अरब यूरो (6.7 अरब डॉलर) का नुकसान हो रहा है.

अध्ययन में पाया गया है कि जर्मनी को हर बार जलवायु परिवर्तन (Climate Change) की पहले से ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)

जलवायु परिवर्तन की मार झेलता यूरोप
इस एक तरह से पूरा यूरोप ही जलवायु परिवर्तन के बुरी मार को झेलता दिखाई दे रहा है. जर्मनी सहित पश्चिमी यूरोप में अधिकतम तापमान के रिकॉर्ड बन रहे हैं. जर्मनी में भी 40 डिग्री तापमान तक गर्मी पहुंच सकती है. वहीं स्पेन ग्रीस और फ्रांस जैसे देश जंगल की आग से बहुत परेशान हैं. पर्यावरणविशेषज्ञ पहले ही अनुमान जता चुके हैं कि भीषण गर्मी इस साल यूरोप को बहुत परेशान करने वाली होगी.

चेतावनी भरा अध्ययन
आर्थिक शोध की कंपनी प्रोग्नोस का यह अध्ययन ऐसे समय में सामने आया है जब पूरा यूरोप ही चरम गर्मी और जंगल की आग की समस्याओं से जूझ रहा है. वैज्ञानिकों ने इन सभी हालात के लिए जिम्मेदार जलवायु परिवर्तन को ही माना है. जर्मनी की पर्यावरण मंत्री स्टेफी लेमके ने इस अध्ययन पर कहा के इसमें जो डरावने वैज्ञानिक आंकड़े हैं वो जलवायु संकट के भारी नुकासन और कीमत को दर्शा रहे हैं.

स्पष्ट चेतावनी के संकेत
लेमके ने कहा कि जब बात जलवायु की होती है तो यह संख्याएं चेतावनी का संकेत हो जाती है और रोकथाम की जरूरत पर बल देती हैं. यह अध्ययन इसी सोमवार को पीटर्सबर्ग क्लाइमेट डायलॉग की शुरुआत में जारी किया गया था. इस संवाद में दुनिया के 40 देश के वरिष्ठ अधिकारी जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों से निपटने के लिए चर्चा करने के लिए जमा हुए थे.

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जर्मनी (Germany) में बाढ़ से हर साल काफी नुकसान होता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: bear_productions / Shutterstock)

एक ही कश्ती पर सवार
इसी कार्यक्रम में जर्मनी की विदेशमंत्री एनालीना बेयरबोक ने जलवायु परिवर्तन को खतरे की व्याख्या करते इसे दुनिया के की सबसे बड़ी सुरक्षा समस्या बताया. उन्होंने कहा कि हम सब एक ही कश्ती में सवार हैं और हम मिल कर ही इस समस्या का सामना कर सकते हैं और कोई हल निकल सकते हैं.

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जर्मन सरकार की योजना
जर्मन सरकार ने इस सम्मेलन में जलवायु जोखिमों के खिलाफ एक वैश्विक सुरक्षा छाता भी पेश किया. जर्मन सरकार के विकास मंत्रालय के मुताबिक इसका लक्ष्य दुनिया के सबसे कमजोर देशों और लोगों के लिए जलवायु जोखिम के वित्त और बीमा के लिए वैश्विक संरचना का विकास करना और उसे मजबूत बनाना है.

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वैज्ञानिकों का कहना है कि चरम गर्मी (Extreme Heat) जैसी घटनाएं यूरोप में अब सामान्य घटना हो जाएंगी. 

किस तरह का नुकसान
जर्मनी की अर्थव्यवस्था और पर्यावरण मंत्रालय ने इस अध्ययन का हवाला देते हुए कहा है कि राइनलैंड- पैलेटाइनेट और उत्तरी राइन वेस्टफिला राज्यों में साल 2021 में 40 अरब यूरो से ज्यादा का नुकसान पहुचाया था.  इतना ही नहीं साल 2018 और 2019 दोनों की गर्म ग्रीष्म ऋतुओं को मिला कर नुकासन की कीमत 80 अरब यूरो से ज्यादा हो गई थी. अध्ययन के लेखकों का कहना है कि ये साल 2000 से नुकसान के ये  आंकलन हर अलग अलग घटना के कारण और ज्यादा होते, लेकिन इनका और इनके प्रभावों का अभी तक अध्ययन नहीं किया गया.

एक वरिष्ठ जर्मन सरकारी अधिकारी ने बताया कि सवाल अब यह नहीं है कि जलवायु परिवर्तन होगा कि नहीं. बल्कि अब सवाल यही है कि यह कितनी बार बार आएगा, कितनी तीव्रता से आएगा और यह कितना महंगा साबित होगा. इससे भी सवाल यही है कि इससे कौन कौन प्रभावित होगा. यह भी एक संयोग था कि यह सम्मेलन ऐसा समय हुआ जब जर्मनी चरम झेल रहा था और वैज्ञानिकों ने ऐलान किया है कि अब इस तरह की गर्मी यूरोप में सामान्य बात होने वाली है.