जानिए क्यों मनाया जाता है राजगढ़ का जिला स्तरीय “बैसाखी मेला”

राजगढ़ का बैशाखी मेला प्रदेश के प्रसिद्व प्राचीन मेलों में से एक है। बैशाख मास की संक्रान्ति को इसका आयोजन होने से इसका नाम बैशाखी मेला पड़ा है। जबकि पंजाब में मनाए जाने वाले बैशाखी पर्व से इस मेले का कोई सरोकार नहीं है।

हिमाचल प्रदेश के कुछ जिलों में वर्ष की चार ῾̕बड़ी संक्रांति” देवी-देवताओं की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। जिनमें बैशाख संक्रान्ति जिसे स्थानीय भाषा में “बीशू की संक्रांति” भी कहा जाता है। श्रावण मास की “हरियाली संक्रांति” दीपावली पर्व और मकर संक्रान्ति प्रमुख है। इस वर्ष यह मेला 14 से 16 अप्रैल तक नेहरू ग्राउंड राजगढ़ में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है।

राजगढ़ शहर के अस्तित्व में आने से पहले यह मेला कूफरधार में मनाया जाता था। तदोपरांत इस मेले को राजगढ़ के साथ लगते सरोट के टिले पर मनाया जाने लगा जहां पर राजगढ़ के लाला मनसा राम द्वारा छोटा सा शिरगुल मंदिर बनाया गया था। राजगढ़ शहर के अस्तित्व में आने के उपरान्त इस मेले को बीते करीब पांच दशक से नेहरू ग्राउंड में मनाया जा रहा है। स्थानीय बुजुर्ग घणू राम, रूपा राम इत्यादि का कहना है कि कालान्तर से ही राजगढ़ मेला पूरे क्षेत्र के लोगों के लिए मनोरंजन का एक मात्र साधन हुआ करता था।

उनका कहना था कि लोग सरोट के टिब्बे पर ῾शिरगुल मंदिर” में नमन करने के साथ मेले का भी भरपूर आनंद उठाते थे। लोगो का विश्वास आज भी कायम है कि शिरगुल देवता के मेले के आयोजन से समूचे क्षेत्र में कभी भी महामारी के फैलने तथा ओलावृष्टि का भय नहीं रहता है और शिरगुल देवता की अपार कृपा से क्षेत्र में खुशहाली और समृद्धि का सूत्रपात होता है।

गौर रहे कि इस क्षेत्र के अराध्य देव शिरगुल का प्रार्दुभाव राजगढ़ से लगभग 17 किलोमीटर दूरी पर शाया छबरोण व तपस्थली चूड़चांदनी पर्वत माने जाते है। शिरगुल को भगवान शिव का अंशावतार माना जाता है और सिरमौर तथा जिला शिमला के अतिरिक्त पडोसी राज्य उत्तराखण्ड के जोनसार बाबर में शिरगुल की कुल देवता के नाम से अराधना की जाती है। शिरगुल को एक वीर योद्धा के रूप में भी माना जाता है। जिन्होंने दिल्ली के मुगल शासक की सेनाओं के दांत खटटे किए थे। शिरगुल देवता का इतिहास माता भंगायणी देवी हरिपुरधार के साथ भी जुड़ा है।

मेले की प्राचीन गरिमा बनाए रखने व इसे आकर्षक व मनोरंजक बनाने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा इसे῾जिला स्तरीय बैशाखी मेले का दर्जा दिया गया है। हर वर्ष यह मेला बैशाख मास की संक्रान्ति से आरंभ होकर तीन दिन तक चलता है। मेले का शुभारंभ राजगढ़ शहर में स्थित शिरगुल देवता की मंदिर में पारम्परिक पूजा से होता है। गत कुछ वर्षो से मेले के पहले दिन शहर में शिरगुल देवता की पालकी पारम्परिक वाद्य यंत्रों के साथ पूरे शहर में निकाली जाती है, ताकि मेले में आए सभी लोग शिरगुल देवता का आशीर्वाद प्राप्त कर सके।

मेले को आकर्षक बनाने के लिए मेला समिति द्वारा सांस्कृतिक संध्याओं का विशेष आयोजन किया गया है जिसमें प्रदेश के प्रसिद्ध लोक कलाकारों को आमंत्रित किया गया है। मेले के अंतिम दिन 16 अप्रैल को विशाल दंगल होगा, जिसमें उत्तरी भारत के नामी पहलवान भाग लेंगें। मेलों एवं उत्सवों के आयोजन से जहां लोगो को आपसी मिलने-जुलने के अवसर प्राप्त होते है। वहीं युवा पीढ़ी को अपनी संस्कृति का बोध होता है और संस्कृति के सरंक्षण के साथ-साथ राष्ट्र की एकता व अखण्डता को भी बल मिलता है।