नई दिल्ली. दिल्ली हाईकोर्ट ने साफ किया है कि यौन शोषण करने के बाद नाबालिग और आरोपी के बीच शादी हो जाती है या उनसे बच्चे का जन्म होता है तो भी इस अपराध की गंभीरता कम नहीं हो जाती. कोर्ट ने साथ ही कहा कि ऐसे मामले में नाबालिग की सहमति का कोई मतलब नहीं रह जाता है, क्योंकि कानून में नाबालिग पीड़िता की सहमति कानून में अप्रासंगिक है.
दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता की बेंच ने आईपीसी की धारा 363, 376 और 366 और पॉक्सो एक्ट की धारा 4 और 5 के तहत दर्ज मामले में आरोपी व्यक्ति को जमानत देने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की.
दरअसल इस मामले में पीड़ित नाबालिग की मां ने पुलिस में एफआईआर दर्ज कराते हुए आरोप लगाया कि उसकी 15 वर्षीय बेटी का कुछ लोगों ने अपहरण कर लिया और वह जुलाई 2019 से लापता है. पुलिस ने केस दर्ज कर पीड़िता की तलाश शुरू की. पुलिस ने आखिरकार मोबाइल सर्विलांस के आधार पर 5 अक्टूबर 2021 को पीड़िता को बरामद कर लिया. तब तक उसे एक बच्ची हो चुकी थी और वह डेढ़ माह की गर्भवती थी.
अभियोजन पक्ष ने कोर्ट को बताया कि आरोपी की उम्र 27 साल है और उसने लड़की को बहला-फुसलाकर मंदिर में शादी के लिए राजी किया.
वहीं याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि पीड़ित और याचिकाकर्ता के बीच सहमति से संबंध बने थे. इसके साथ ही उन्होंने दलील दी कि आरोपी पीड़िता और उसके बच्चों की देखभाल करेगा.
हालांकि हाईकोर्ट ने साफ किया कि नाबालिग के साथ यौन संबंध निषिद्ध है, भले ही नाबालिग ने सहमति दी हो. अदालत ने कहा कि नाबालिग पीड़िता और आरोपी के बीच संबंध कानून का उल्लंघन है. इस यौन दुर्व्यवहार के परिणामस्वरूप बच्चे का जन्म होता है तब भी यह बलात्कार के कृत्य को कम नहीं करता है. इस तरह अदालत ने बलात्कार आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए उसकी याचिका खारिज कर दी.