ऐसा माना जाता है, जो करे शर्म-उसके डूबे कर्म। ये बात, शहर के समीपवर्ती गांव तालों की रहने वाली 21 साल की अंजली ‘ईशा’ बखूबी जानती है। वो इस बात को भी भली भांति जानती है कि सरकारी नौकरी के पीछे दौड़ लगाना भी बेकार है। बेहतर है माता-पिता के व्यवसाय में ही हाथ बंटाया जाए, साथ ही आगे की पढ़ाई भी जारी रखी जाए।
निश्चित तौर पर ‘अंजली’ उन युवाओं के लिए एक विशेष प्रेरणा है, जो सरकारी नौकरी के पीछे दौ़ड़ते हुए ओवरएज होकर हताश हो जाते हैं
अंजली तड़के उठ जाती है। इसके बाद गाय की तीमारदारी करने का जिम्मा उठा लेती है। मां जंगल से गाय के लिए घास बटोर कर लाती है। इसके बाद अंजली गाय का दूध निकालना शुरू कर देती है। ये सारा कामकाज, 7 बजे तक निपटाना पड़ता हैै, ताकि वो 8 बजे दूध की बाॅटल्स का डिस्ट्रिब्यूशन करने के लिए नाहन का रुख कर सकें।
स्कूटी पर बेटियों के पसंदीदा रंग ‘पिंक’ कलर के हेलमेट को पहन कर निकल जाती है। तकरीबन तीन घंटे तक 25 लीटर दूध को अलग-अलग घर तक पहुंचाती है। लगभग दो साल पहले पिता गोपाल को दाहिने हाथ में चोट लगी थी। इसके बाद तो बेटा बनकर अंजली ने पिता के व्यवसाय को संभाल लिया, क्योंकि वो इस बात को बखूबी जानती है कि दूध के व्यवसाय से ही घर का गुजर-बसर चलेगा।
खास बात ये है कि अंजली दूध के डिस्ट्रिब्यूशन में न तो संकोच न ही हिचकिचाहट महसूस करती है। ग्रैजुएशन की पढ़ाई पूरी कर चुकी अंजली इसी शैक्षणिक सत्र में पत्राचार के माध्यम से अर्थशास्त्र में पोस्ट ग्रैजुएशन करने का फैसला कर चुकी है।
पहली बार एक पढ़ी लिखी बेटी को जब कोई दूध बांटते देखता है तो आश्चर्यचकित भी होता है। मगर अंजली अपने इससे बेपरवाह होकर केवल और केवल इस बात पर ध्यान केंद्रित कर रही होती है कि समय पर घरों पर दूध पहुंचाना है।
अंजली के पिता गोपाल कहते हैं, ‘ये मेरी बेटी नहीं है, बल्कि बेटा है’। सुबह दूध निकालने के बाद बाॅटल्स में पैकिंग की जिम्मेदारी निभाती है। इसके बाद 8 बजे शहर में डिस्ट्रिब्यूशन के लिए निकल जाती है। गोपाल ने कहा कि उन्हें अपनी बेटी पर गर्व है।
उधर एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में अंजली लगातार मुस्कुराती रही। आत्मविश्वास से लबरेज अंजली ने कहा कि रोजाना दो वक्त 10-12 लीटर दूध निकालती है। सुबह वितरण की जिम्मेदारी होती है। गाय के घास को लेकर पूछे सवाल पर अंजली ने कहा कि घास मम्मी लेकर आती हैं।
अंजली ने कहा कि पढ़ाई के साथ-साथ व्यवसाय की जिम्मेदारी उठाने में काफी मजा आता है। दिनचर्या तय है। इस कारण मोबाइल का इस्तेमाल भी ज्यादा नहीं कर पाती हैं। अंजली ने कहा कि सरकारी नौकरी का कोई खास लगाव नहीं है, क्योंकि सीमित सरकारी नौकरियों के लिए लंबी लाइनें हैं। बेहतर है, परिवार के व्यवसाय को संभाल लिया जाए।
21 साल की युवा अवस्था में युवाओं को सोशल मीडिया (Social Media)का जमकर चाव रहता है। रील व वीडियो पोस्ट करने की होड़ रहती है। मगर वो इसे हावी नहीं होने देती। पिता का हाथ बंटाते-बंटाते वो एक उद्यमी बनने की तरफ भी तेजी से अग्रसर है।
कुल मिलाकर सरकार को भी ऐसी बेटियों का मददगार बनना चाहिए। मुख्यमंत्री स्वावलंबन योजना का ऑफर लेकर अगर अधिकारी अंजली के घर पहुंचें तो निश्चित तौर पर होनहार बेटियों की हौसला अफजाई होगी ही।