बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर सिंह इन दिनों चर्चा में हैं। पूरे बिहार में उनके ऊपर कोर्ट में परिवाद दायर किया जा रहा है। रामचरितमानस को लेकर की गई उनकी टिप्पणी से लोग नाराज हैं। संत समाज भी उनसे नाराज है। आम लोग भी नाराज हैं। शिक्षा मंत्री चारों तरफ से घिर गये हैं। उनसे जवाब देते नहीं बन पड़ रहा है। जब विवाद बहुत बढ़ गया है, तब शिक्षा मंत्री की ओर से कुतर्क किया जा रहा है।
पटना : बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर सिंह वैसे तो काफी पढ़े लिखे हैं। साइंस में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा किया है। रामचरितमानस को उन्होंने सीधे-सीधे समाज में नफरत फैलाने वाला बता दिया। नालंदा ओपेन यूनिवर्सिटी के कार्यक्रम में जिस पीली पगड़ी को धारण कर रामचरितमानस के बारे में शिक्षा मंत्री भला-बुरा कह रहे थे। शिक्षा मंत्री को पता नहीं कि पीले रंग के वस्त्र भी रामचरित मानस से जुड़े हुए हैं। तुलसीदास कहते हैं कि पीत बसन परिकर कटि भाथा। चारु चाप सर सोहत हाथा। तन अनुहरत सुचंदन खोरी। स्यामल गौर मनोहर जोरी। भावार्थ ये है कि राम-लक्ष्मण पीले रंग के वस्त्र पहने हैं। कमर में पीले दुपट्टों में तरकस बंधे हैं। हाथों में सुंदर धनुष-बाण सुशोभित है। श्याम और गौर वर्ण के शरीरों के अनुकूल सुंदर चंदन की खौर लगी है। सांवरे और गोरे रंग की मनोहर जोड़ी है। विवादित टिप्पणी कर बैकफुट पर आये चंद्रशेखर सिंह अपनी गलती मानने की जगह कुतर्क कर रहे हैं। चंद्रशेखर सिंह ने बयान पर बवाल के बाद जो जवाब दिया है। उस जवाब का उत्तर भी रामचरितमानस में है और शिक्षा मंत्री पर सटीक बैठता है।
विवाद के बाद मंत्री की सफाई
चंद्रशेखर सिंह ने विवाद पैदा होने के बाद अपने बयान में कहा है कि मेरे बयान के बाद से ठेकेदारों के पेट में मरोड़ आ रही है। अरे वे परेशान होंगे ही। उन्होंने तो मंदिरों से ख़ूब माल छापे हैं। सवाल दलितों-वंचितों का है जिन्हें तुम मंदिर में घुसने से रोकते हो! उन्होंने आगे लिखा है कि मेरा बयान बहुजनों के हक में है और मैं उस पर अडिग व कायम रहूंगा। ग्रंथ की आड़ में गहरी साजिश से देश में जातीयता व नफरत का बीज बोने वाले बापू के हत्यारों के प्रतिक्रिया की परवाह नहीं करता। अब भला चंद्रशेखर सिंह को कौन बताये कि ऐसे लोगों के लिए रामचरितमानस में तुलसीदास पहले ही लिख चुके हैं। निज भ्रम नहिं समुझहिं अग्यानी। प्रभु पर मोह धरहिं जड़ प्रानी। रामचरितमानस बालकाण्ड में शिव-पार्वती संवाद के दौरान इस चौपाई का वर्ण करते हुए तुलसीदास कहते हैं कि अज्ञानी मनुष्य अपने भ्रम को तो समझते नहीं और वे मूर्ख प्रभु राम पर उसका आरोप करते हैं। जैसे आकाश में बादलों का परदा देखकर कुविचारी (अज्ञानी) लोग कहते हैं कि बादलों ने सूर्य को ढंक लिया।
शिक्षा मंत्री का कुतर्क
शिक्षा मंत्री के बयान के बाद मुजफ्फरपुर सहित बिहार के अन्य जिलों में लगातार परिवाद पत्र दायर हो रहा है। उन पर लोगों की भावनाओं को आहत करने का आरोप लगा है। यहां तक कि कांग्रेस पार्टी ने मंत्री के बयान को विभाजनकारी करार दिया है। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने इस बयान से पार्टी को अलग कर दिया है। आपको बता दें कि रामचरितमानस और रामायण को लेकर महागठबंधन के सहयोगी जीतनराम मांझी भी पहले टिप्पणी कर चुके हैं। विवादों में घिरे जीतन राम मांझी को बाद में सफाई देनी पड़ी थी। धार्मिक ग्रंथों के जानकार और पटना हनुमान मंदिर के प्रमुख पूर्व आईपीएस किशोर कुणाल ने भी मंत्री के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। कुणाल ने तो चंद्रशेखर सिंह को रामायण पर बहस की खुली चुनौती तक दे दी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कुणाल ने साफ कहा है कि रामचरितमानस प्रेम, सद्भाव और सामाजिक एकता का सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है। कुणाल ने कहा कि किसी दीक्षांत समारोह में इस तरह का बयान देना बिल्कुल सही नहीं है। जानकार कहते हैं कि रामायण को आज भी पारिवारिक संस्कारों के निर्माण का उत्तम ग्रंथ माना जाता है। देश के कमोवेश सभी हिंदु घरों में रामायण की पूजा होती है। रामलीला में सभी जाति और धर्म के लोग भाग लेते हैं। वैसे में चंद्रशेखर का ये बयान और उस पर उनका कुतर्क समझ से परे हैं।
चंद्रशेखर ने क्या कहा ?
राज्य के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने बुधवार को नालंदा खुला विश्वविद्यालय (एनओयू) के 15वें दीक्षांत समारोह के दौरान उन्होंने कहा कि मनुस्मृति, रामचरितमानस, गुरु गोलवलकर के बंच ऑफ थॉट्स हैं। यह ग्रंथ नफरत फैलाने वाले ग्रंथ हैं। नफरत देश को महान नहीं बनाएगा, देश को मोहब्बत महान बनाएगा। शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने विवादित बयान देते हुए ‘रामचरितमानस’ को नफरत फैलाने वाला ग्रंथ बताया। मंत्री चंद्रशेखर ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि रामचरितमानस ग्रंथ समाज में नफरत फैलाने का ग्रंथ है। यह समाज में दलितों, पिछड़ों और महिलाओं को पढ़ाई से रोकता है। उन्हें उनका हक दिलाने से रोकता है। उन्होंने कहा कि मनुस्मृति को क्यों जलाया गया, क्योंकि उसमें एक बड़े तबके के खिलाफ अनेकों गालियां दी गईं। रामचरितमानस का क्यों प्रतिरोध हुआ और किस अंश का प्रतिरोध हुआ? उन्होंने कहा कि मनुस्मृति ने समाज में नफरत का बीज बोया। फिर उसके बाद रामचरित मानस ने समाज में नफरत पैदा की। बता दें, इससे पहले राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद प्रसाद सिंह भी राम मंदिर को लेकर बयान दे चुके हैं।