मंगलदोई: प्रांजल और धारित्री के लिए जीवन यूं तो हमेशा ही समाज के हाशिये पर रहा लेकिन सप्ताह भर पहले हुई उनके पिता की मौत ने उन्हें जाति प्रथा की कठोरता का एक अगल ही चेहरा दिखाया. दोनों के पिता उमेश शर्मा का आठ अगस्त को यहां से करीब दस किलोमीटर दूर पातालसिंहपारा में संक्षिप्त बीमारी के बाद निधन हो गया था.
हिंदू रीति रिवाज के अनुसार दाह संस्कार के बजाए शर्मा के पार्थिव शरीर को अगले दिन दफना दिया गया. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि शर्मा ने करीब 27 वर्ष पहले ‘‘निचली जाति’’ की महिला से विवाह किया था और तब से ही उनके परिवार का समाजिक बहिष्कार चल रहा है.
बेटे ने पिता को दी मुखाग्नि मामला सामने आने पर जिला प्रशासन तथा अनेक संगठनों ने हस्तक्षेप किया जिसके बाद शव को जमीन से निकाला गया और शर्मा के बेटे ने 12 अगस्त को अपने पिता को मुखाग्नि दी. मामले के तूल पकड़ने के बाद स्थानीय लोगों ने ‘‘गैर इरातन गलती’’ के लिए क्षमा मांगी और अंतिम संस्कार से जुड़ी सभी रस्मों में मदद का आश्वासन दिया.
धारित्री (20) ने कहा, ‘‘ हम सामाजिक समारोहों में तिरस्कृत होते पले बढ़े हैं. हमें समारोहों में बुलाया जाता था लेकिन वहां लोगों से दूर बैठ कर खाने को कहा जाता था. लोग हमारे हाथ का पानी भी नहीं पीते.’’
पंजाब में रहते हैं बेटा-बहू प्रांजल (27) अपनी पत्नी और बेटे के साथ पंजाब में रहते हैं. वह कहते हैं,‘‘सामाजिक समारोहों में हमें अलग-थलग बैठने को कहा जता था और हमें इसकी आदत पड़ गई है. एक समय ऐसा भी आया जब हमने समारोहों में जाना ही बंद कर दिया.’’
शर्मा की पत्नी प्रणीता देवी कहती हैं कि उनका परिवार गांव से दूर ही रहता है. वह कहती हैं,‘‘ प्रांजल पंजाब चला गया, वहीं धारित्री गुवाहाटी चली गई पढाई के लिए, मैं भी उसके साथ चली गई. मैंने इस वर्ष मार्च में वहीं उसकी शादी भी कर दी.’’ प्रणीता देवी ने कहा कि पति की अस्थियां मिलने और वैदिक रीति-रिवाजों का पालन करने दिया जाने का आश्वासन मिलने से उन्हें कुछ राहत मिली है.