हमारे खगोलविदों का कहना है कि मंगल ग्रह के बाद किसी ग्रह का गहनता से अध्ययन करना चाहिए तो वह शुक्र ग्रह (Venus) ही होना चाहिए. सामान्य तौर पर जब भी सौरमंडल (Solar System) के किसी ग्रह का जिक्र होता है तो पहले यही देखा जाता है कि क्या उस ग्रह में आवासीयता होने मुमकिन है या नहीं. संभावितों की इस सूची में मंगल शीर्ष पर है. हमारे वैज्ञानिक इस बात का भी अध्ययन कर रहे हैं कि शुक्र ग्रह जब कभी पृथ्वी जैसा ही था तो आज उसके हालात इतने अलग क्यों है. लेकिन शुक्र ग्रह में एक और विशेषता है जो सभी को चौंकाती है कि वह दूसरे ग्रहों की तुलना में उल्टी दिशा में घूर्णन (Rotation of Venus) करता है.
केवल शुक्र में है ये खासियत
सौरमंडल में 8 मे से छह ग्रह एक ही दिशा यानि पश्चिम से पूर्व की ओर घूर्णन करते हैं. इसमें यूरेनस की धुरी इतनी घूमी हुई है कि वह ऊपर से नीचे की ओर घूमता है जिससे उसके हिस्से 24 घंटे दिन और एक हिस्से में 24 घंटे रात होती है. लेकिन शुक्र एकमात्र ग्रह है जो पूर्व से पश्चिम की दिशा में घूमता है. लेकिन इसके कारणों की लंबे समय से पड़ताल चल रही है और अभी तक खगोलविदों ने इसकी व्याख्या के लिए तीन मत बताए हैं जो अब भी बहस का विषय है.
पहले नहीं था शुक्र ग्रह ऐसा
पहले मत के अनुसार शुक्र ग्रह ने भी अन्य ग्रहों की तरह पश्चिम से पूर्व की ओर घूमना शुरू किया था. लेकिन यूरेनस कीतरह ही शुक्र ग्रह पर भी एक बड़ा टकराव हुआ होगा. यानि किसी विशाल क्षुद्रग्रह या शायद किसी ग्रह के आकार का पिंड टकराव हुआ होगा. हो सकता है कि यह स्थिति बहुत से टकरावों के बाद बनी हो. इस टकराव कारण यह ग्रह पूरी तरह से पलट गया होगा जिससे इसके घूर्णन की दिशा बदल गई होगी.
अलग अलग परतों में घर्षण
एक अन्य मत के मुताबिक इसका संबंध ग्रह के आंतरिक भाग से है. किसी पथरीले ग्रह के आंतरिक हिस्सों की अलग अलग परते हैं होती हैं जिनकी अलग अलग गाढ़ापन होता है. इनमें दो हिस्से प्रमुख होते हैं. सबसे अंदर का क्रोड़ और उसके बाद और पर्पटी के नीचे मेंटल. दोनों ही हिस्से घूमते हैं और गाढ़ापन होने के कारण इनमें घर्षण होता है. यह क्रोड़ मेंटल घर्षण धीरे धीरे समय के साथ ग्रह के घूर्णन की दिशा बदल सकता है.
घने वायुमंडल का योगदान
इसके साथ ही शुक्र का वायुमडंल भी बहुत ही घना है. यह घना वायुमंडल ग्रह से 60 गुना ज्यादा तेजी से घूमता है और यह दिन की लंबाई तक को प्रभावित कर देता है. इस सिद्धांत के अनुसार ये सभी कारक ग्रह की घूर्णन की दिशा बदलने के लिए काफी है. शुक्र की घूर्णन की दिशा के भी यही कारण हो सकते हैं.
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धीमी होते होते बदली घूर्णन की गति
इसके बाद तीसरा सिद्धांत हाल ही में सबके सामने लाया गया है. यह कहता है कि शुक्र ने भी शुरुआत में सौरमंडल के दूसरे ग्रहों की तरह ही घूर्णन करना शुरू किया था. लेकिन समय के साथ यह धूर्णन धीरे धीरे कम होता चला गया और एक दिन हाल यह हो गया कि इसकी घूमने की दिशा ही पूरी तरह से बदल गई.
क्या हुआ होगा जब दिशा बदली
इस सिद्धांत के मुताबिक जब शुक्र ने अपने घूर्णन की दिशा बदली तो शुरू में उसका नया घूर्णन अस्थिर था. लेकिन बाद में पिछले घूर्णन की तुलना में यह ज्यादा स्थिर अवस्था में पाया गया. वैज्ञानिकों का कहना है कि इसी के जरिए इस बात की भी व्याख्या की जा सकती है कि शुक्र दूसरे ग्रहों की तुलना में धीमा क्यों घूमता है.
क्या कहता है विज्ञान: आखिर क्यों अपनी ही धुरी पर घूमती है पृथ्वी?
शुक्र ग्रह के बारे में आमतौर पर उसका घूर्णन बहुत कौतूहल नहीं जगाता है क्योंकि इसका ग्रह पर जीवन के होने या कभी आवासीय ग्रह की श्रेणी में होने से कभी नहीं रहा. लेकिन इसके घूर्णन की दिशा सौरमंडल के इतिहास की उन घटनाओं पर जरूर ध्यान देने के लिए इशारा करती है जिन्होंने दूसरे ग्रहों को भी प्रभावित किया होगा.