आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ड्रोन तकनीक की लेंगे मदद …
डॉ. नेगी ने बताया, एम्स में ड्रोन तकनीक के जरिए सेंपल भेजने और दवा मुहैया कराने जैसे टॉस्क पूरे होंगे। इसके लिए मंडी स्थित आईआईटी के साथ अनुबंध किया गया है। आईआईटी के विशेषज्ञ ड्रोन सहित अन्य तकनीक, जिसका फायदा यहां के लोगों को सुविधा प्रदान करने के लिए उठाया जा सकता है, इस बाबत एक खास रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का बेहतर इस्तेमाल हो, इस तकनीक पर भी काम हो रहा है। चूंकि हिमाचल प्रदेश, एक पहाड़ी राज्य है, इसलिए आपातकालीन स्थिति में किसी को मरीज को यहां तक पहुंचने में देरी न हो, इसके लिए एयर एंबुलेंस की व्यवस्था की गई है। एम्स परिसर में हेलीपैड तैयार कराया जा रहा है। इसके लिए एक पुख्ता सिस्टम बनाया जाएगा। किस मरीज को हेलीकॉप्टर सेवा की सबसे ज्यादा जरूरत है, इस बाबत संबंधित जिले के डीएम और सीएमओ की रिपोर्ट को तव्वजो मिलेगी। बरसात के मौसम में यहां लैंड स्लाइड होना आम बात है, ऐसे में मरीजों को एम्स पहुंचने में दिक्कत आ सकती हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हेलीपैड सेवा शुरु करने का निर्णय लिया गया है।
एम्स में मौजूद रहेगी 40 हजार लीटर लिक्विड ऑक्सीजन
कोरोना महामारी के दौरान मरीजों को ऑक्सीजन की किल्लत का सामना करना पड़ा था। इस बात को ध्यान में रखते हुए बिलासपुर एम्स में बीस-बीस हजार लीटर के दो टैंक बनाए जा रहे हैं। इससे एम्स में ऑक्सीजन की किल्लत नहीं रहेगी। डॉ. वीर सिंह ने कहा, इतना ही नहीं, एम्स का अपना ऑक्सीजन प्लांट लगे, इस दिशा में भी काम शुरू हुआ है। इसके लिए स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ बातचीत चल रही है। उम्मीद है कि जल्द ही इस दिशा में सार्थक नतीजा देखने को मिलेगा। बिलासपुर एम्स की अपनी ब्रांड वेल्यू होगी। इसके लिए प्रयास किया जा रहा है कि देश के प्रख्यात चिकित्सक यहां अपनी सेवाएं दें। पहाड़ी इलाका है तो कुछ दिक्कतें भी आती हैं। फैकल्टी को वो तमाम सुविधाएं यहां मिल जाएं जो उन्हें दूसरे प्रदेशों या दिल्ली जैसे राज्य में मिलती है, इसके लिए प्रयास हो रहा है। केंद्र सरकार ने यहां एक सेंट्रल स्कूल शुरू करने की मंजूरी प्रदान की है। यह स्कूल अगले वर्ष तक बनकर तैयार हो जाएगा।
एम्स के साथ जुड़ना, खुद में एक गौरव की बात
लोगों को छोटी बीमारियों के लिए एम्स में न आना पड़े, इसके लिए उन्हें टेलीमेडिशन की सुविधा प्रदान की जाएगी। लोग अपने घर बैठकर ही डॉक्टर से बातचीत कर बीमारी के बारे में बता सकते हैं। बाद में यहां एक सैटेलाइट सेंटर भी प्रस्तावित है। कार्यकारी निदेशक डॉ. नेगी कहते हैं, ये एक सेना जैसी सर्विस है। जिस तरह से जवान, अपने देश की रक्षा के लिए कोई भी जोखिम उठाने के लिए तैयार रहते हैं, वैसे ही डॉक्टर की ड्यूटी रहती है। एम्स के साथ जुड़ना, खुद में एक गौरव की बात होती है। हिमाचल प्रदेश के रिमोट क्षेत्र जैसे केलांग, किन्नौर, चंबा व लाहौल स्पीति आदि क्षेत्रों से लोगों को इलाज के लिए अभी तक पीजीआई चंडीगढ़ या दिल्ली एम्स सहित दूसरे अस्पतालों में जाना पड़ता है। यह तरीका बहुत खर्चीला भी रहता है। समय भी ज्यादा लगता है। 12 से 16 घंटे में दूसरे राज्यों के चिकित्सा संस्थानों तक पहुंचा जा सकता है। बिलासपुर एम्स तैयार होने के बाद हिमाचल के किसी भी हिस्से से सात आठ घंटे में मरीज यहां पहुंच सकते हैं। रिमोट एरिया के लोगों को ज्यादा से ज्यादा सुविधा मिलें, इस योजना पर काम शुरू कर दिया गया है। इसके लिए आईसीएमआर के सेंटर की मदद ली जा रही है। जब यह एम्स पूरी तरह से शुरू हो जाएगा तो दूर दराज के क्षेत्रों में विशेष ‘आउटरीच स्टेशन’ तैयार होंगे।
एम्स में रहेगी ‘लाइव ओटी’ की व्यवस्था
डॉ. नेगी बताते हैं, एम्स में सभी ऑपरेशन थियेटर अत्याधुनिक तकनीक से लैस हैं। ऑपरेशन के वक्त देश-विदेश के किसी भी चिकित्सा संस्थान से जुड़ा जा सकता है। विशेषज्ञों से ऑपरेशन के वक्त सलाह ली जा सकती है। ऑपरेशन के तरीके में बदलाव लाया जा सकता है। एम्स में 25 वेंटिलेटर मौजूद हैं। ये सभी वेंटिलेटर कोरोनाकाल में पीएम रिलीफ फंड से खरीदे गए थे। ट्रांसपोर्टर वेंटिलेटर सुविधा भी है। एम्स में पचास फीसदी से ज्यादा तकनीकी उपकरण भारत में निर्मित हैं। बिलासपुर एम्स में अभी तक 92 संकाय सदस्य हैं, जबकि स्वीकृत पदों की संख्या 183 है। दस सीनियर रेजिडेंट और 15 जूनियर रेजिडेंट की भर्ती की गई है। हाल ही में 12 सीनियर रेजिडेंट व 25 जूनियर रेजिडेंट्स का चयन हुआ है। इन सभी ने कार्यभार संभाल लिया है। संस्थान में 155 नर्सिंग अधिकारी कार्यरत हैं। आठ छात्रावास बनाए गए हैं। इनमें पीजी बॉयज 1, पीजी मैरिड 1, पीजी गर्ल्स, यूजी गर्ल्स और डायनिंग 1 क्रियाशील हैं। पीजी बॉयज और डाइनिंग 2 का कार्य पूरा हो चुका है। नर्सिंग हॉस्टल का काम अभी चल रहा है।