भारत में बाघों (Tiger) को बचाने के प्रयास करीब आधी सदी से चल रहे हैं. प्रोजेक्ट टाइगर (Project Tirger) के तहत देश में कई जगह टाइगर रिजर्व की स्थापना हुई. तब से अब तक देशभर में करीब 50 खास क्षेत्र टाइगर रिजर्व की हैसियत से संरक्षित किए गए हैं. यहां हम यात्रा कर कहीं कहीं इन बाघों को जरूर देख सकते हैं. इनकी खास तौर से ट्रैकिंग होती है और निगरानी करते हुए उनकी देखभाल भी होती है. यहां तक सभी रिजर्व में बाघों के इंसानों की तरह के नाम भी होते हैं. इनके नाम कैसे रखे जाते हैं (How Tigers are Named in India), यह भी एक दिलचस्प दास्तान है.
बाघों के इंसानों जैसे नाम
अगर आप किसी टाइगर रिजर्व या कोई नेशनल पार्क में सफारी के लिए जाएंगे तो वहां आपको, माया को जरूर देखिएगा या माताराम के जवाब नहीं, जैसे कई तरह के संवाद सुनने को मिल सकते हैं. इन संवादों में जो नाम हैं वास्तव में वे किसी और के नहीं बल्कि किसी बाघ या बाघिन के होते हैं.
गाइड से लेकर यात्री भी
मजेदार बात यह है कि इस तरह के नाम बहुत सामान्य बोलचाल में भी इस्तेमाल होते हैं जैसे किसी जान पहचान के व्यक्ति के बारे में बात की जा रही हो. यहां गाइड, फॉरेस्ट अफसर, आसपास के गांव वाले और यहां तक कि सफारी में आए लोग भी अपनी बातचीत में बाघ बाघिनों को उनके नाम से पुकारते हैं. भारत में बाघों का केवल कोई टी-12,टी15 जैसा कोड ही नहीं होता है उनके वैसे ही नाम होते हैं जैसे हम अपने पालतू जानवरों के नाम रखते हैं.
अलग अलग वजह या आधार पर नाम
लेकिन इनके नाम कैसे रखे जाते हैं. कई बार तो इनकी शरीर के निशान के आधार पर ही नाम होते हैं जिसके जरिए वन विभाग के कर्मचारी इन्हें पहचानते हैं. तो वहीं कई बाघों ने अपने किसी विशेष गुण या उपलब्धि की वजह से खास नाम अर्जित किया होता है. कुछ नाम जहां सामान्य इंसानी नाम होते हैं तो कुछ अजीब से नाम भी लगते हैं.
मां बेटी का एक ही नाम
भारत में बाघों के नाम रखने की परम्परा की शुरुआत का श्रेय राजस्थान के रणथम्बोर नेशनल पार्क की बाघिन मछली को जाता है. मजेदार बात यह है कि इसका नाम मछली की वजह से नहीं बल्कि के मगरमच्छ को मारने की वजह से पड़ा था. और तो और इसकी मां के गाल पर मछली के निशान थे और उसका नाम भी मछली थी. जब बीबीसी की टीम मां मछली की डॉक्यूमेंट्री बनाने रणथम्बोर पहुंची तब तक मां मर चुकी थी और बेटी को मछली नाम मिल गया था.
माथे के निशान पर
मछली की साल 2018 में मौत हो गई थी. लेकिन उसकी जगह अब उसकी पोती ऐरोहेड उर्फ जूनियर मछली ने ले ली है. इस बाघिन के माथे पर तीर के जैसा निशानदिखाई देता है जिसकी वजह से इसे यह नाम मिला है. इसकी मां का नाम कृष्णा था और कई जगह इसे मछली जूनियर के नाम से भी संबोधित किया गया है. अब उसके इलाके पर उसकी बेटी ऋद्धि का कब्जा है.
बदलते भी हैं नाम
मध्यप्रदेश के पेंच टाइगर रिजर्व में टी15 बाघिन का नाम कॉलरवाली पड़ गया था क्योंकि उसके गले रेडियो कॉलर लगा हुआ था जिससे उसे ट्रैककर उस पर निगरानी रखी जा सके. उसने अपने आधे जीवन काल में 8 बार कुल 29 बच्चों को जन्म दिया है जो कि एक विश्व रिकॉर्ड है. उम्र बढ़ने के साथ ही पेंच में उसे माताराम कहा जाने लगा था.
इसी तरह से महाराष्ट्र का तडोबा माया की वजह से मशहूर है. टी12 बाघिन का नाम माया इसलिए रखा गया है कि क्योंकि उसके कंधे पर अंग्रेजी के एम अक्षर से मिलती जुलती आकृति है. माया पर्यटकों में खासी लोकप्रिय हैं हर पर्यटक माया को जरूर देखने चाहता है. इसी तरह से मटकासुर बाघ के बारे में इलाके के आदिवासियों ने अफवाह फैलाई थी वह मटकों में रखी शराब पीने आता है. इसी पर बाघ का नाम ही मटकासुर पड़ गया. इसी तरह कान्हा का मुन्ना दूसरे बाघ से लड़ते हुए अपना पैर घायल कर बैठा और जीवन भर के लिए लंगड़ा कर चलता रहा जिसके कारण उसका नाम प्यार से मुन्ना रख दिया गया. इस तरह हर बाघ के नाम की कोई ना कोई कहानी है.