हर माता-पिता अपने बच्चों को पढ़ा लिखा कर बड़ा आदमी बनाना चाहते हैं. इसके लिए गरीब से गरीब इंसान भी खूब मेहनत करता है. राजस्थान के झुंझुनू के रहने वाले एक दर्जी ने भी अपने दोनों बेटों को इसी सोच के साथ पढ़ाया. उनके जीवन का संघर्ष उस समय सफल हुआ जब उनके दोनों बेटे IPS बन गए.
दो भाई एक साथ बने IPS
हम यहां बात कर रहे हैं 2018 बैच के दो भाइयों पंकज कुमावत और अमित कुमावत की. जिनका परिवार बेहद साधारण तरीके से जीवन-यापन कर रहा था. उन्होंने कभी सोच भी नहीं था कि एक दिन ऐसा आएगा जब इस तरह से उनकी किमस्त हमेशा के लिए बदल जाएगी. दोनों भाइयों ने एक साथ पढ़ते हुए, एक साथ अधिकारी बनने का सपना देखा और उसे साकार भी एक साथ ही किया. पंकज कुमावत और अमित कुमावत ने एक साथ यूपीएससी की सिविल सेवा की परीक्षा क्रैक की.
पंकज ने इस परीक्षा ने 443वीं और अमित ने 600वीं रैंक प्राप्त की थी. अपने बेटों के रिजल्ट की खबर सुनते ही पिता सुभाष कुमावत का सीना गर्व से चौड़ा हो गया और आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े. सुभाष का जीवन काफी संघर्षपूर्ण रहा था. वह एक दर्जी का काम करते थे और उनकी पत्नी राजेश्वरी देवी उनके साथ ही तुरपाई करने का काम करती थीं.
माता पिता ने किया खूब संघर्ष
सुभाष कुमावत ने अपने दोनों बेटों पंकज और अमित को खूब पढ़ाया. दोनों ने आईआईटी दिल्ली से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक किया. इसके बाद पंकज ने नोएडा की एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी भी की. दोनों भाइयों ने ये सपना देखा था कि उन्हें सिविल सेवा की परीक्षा को पास करनी है लेकिन इसमें सबसे बड़ी बाधा थी परिवार की आर्थिक तंगी. मगर दोनों भाइयों ने बिना हार माने इस चुनौती को स्वीकार किया. दूसरी तरफ इनके माता-पिता ने भी हार नहीं मानी और बच्चों की पढ़ाई में कोई कमी ना आए इसके लिए दिन-रात मेहनत कर दोनों सिलाई और तुरपाई के काम में व्यस्त रहने लगे.
बच्चों को मिली सफलता
परिवार और दोनों भाइयों की मेहनत तब रंग लाई जब इन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली. 2018 के अपने पहले प्रयास में आए परिणाम से दोनों भाई संतुष्ट नहीं थे. इस परीक्षा में अमित को आईआरटीएस कैडर मिला था. इसके बाद साल 2019 में अमित को 423वीं व पंकज को 424वीं रैेंक मिली. इस बार दोनों को आईपीएस कैडर मिला. पंकज पहले से ही आईपीएस थे जबकि अब अमित भी आईपीएस बन गए.
एक इंटरव्यू में पंकज और अमित ने कहा था कि हम दोनों भाइयों के लिए पढ़ना तो बेहद आसान था लेकिन हमारे माता-पिता के लिए हमारी पढ़ाई का खर्चा उठाना उतना ही मुश्किल था. हालांकि, उन्होंने कभी हार नहीं मानी और हम दोनों भाइयों से हमेशा कहते रहे कि पढ़कर-लिखकर एक बड़ा आदमी बनना है. कोई भी चुनौती आए उसका डटकर सामना करना है और हम आपका साथ हमेशा देंगे.