मूवी रिव्यू
मूवी रिव्यू : कोड नेम तिरंगा
कोड नेम तिरंगा की कहानी (Code Name: Tiranga Story)
कहानी की शुरुआत परिणीति चोपड़ा (Parineeti Chopra) के वॉइस ओवर से होती है, जिंदगी की कहानी जिंदगी से पहले शुरू होती है, जिंदगी खत्म होती है, मगर कहानी खत्म नहीं होती। अंडरकवर एजेंट इस्मत उर्फ दुर्गा जख्मी हालत में किसी रेगिस्तान को पार करते हुए अपनी दास्तान बयान कर रही है। असल में उसे 2001 में संसद पर हमला करने के मास्टरमाइंड खालिद उमर (शारद केलकर) को पकड़ने का काम सौंपा जाता है। अपने मिशन को पूर्ण करने के लिए वह डॉक्टर मिर्जा अली (हार्डी संधू) से निकाह करके उसका इस्तेमाल करती है। हालांकि वह मिर्जा से मोहब्बत करती है, मगर उसे अपने असाइनमेंट को किसी भी हाल में पूरा करना है इसलिए वो अपने प्यार को भी जोखिम में डाल देती है। उसके इस मिशन में उसका साथ देते हैं उसके जासूस अफसर राजित कपूर और दिब्येंदु भट्टाचार्य। दुर्गा को अपने मिशन को पूरा करने के लिए बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है, मगर क्या वह इस कीमत को देने के लिए तैयार थी? इन सारे सवालों के जवाब आपको फिल्म देखने के बाद मिलेंगे।
निर्देशक रिभु दासगुप्ता की कहानी शीर्षक कोड नेम तिरंगा से देशभक्ति पर आधारित फिल्म लगती है। फिल्म शुरू भी देशभक्ति के नोट से होती है, मगर आगे चलकर कहानी अपनी पकड़ खो देती है और फिर लव एंगल के कारण फिल्म में बिखराव साफ नजर आने लगता है। क्लाइमेक्स तक आते-आते फिल्म एक व्यक्तिगत बदले की घिसी-पिटी कहानी में तब्दील होकर रह जाती है। रिभु की फिल्म की एक्शन कोरियोग्राफी फिल्म का प्लस पॉइंट है और इसमें उनका एफर्ट साफ नजर आता है, मगर जैसे -जैसे फिल्म आगे बढ़ती है, कन्फ्यूजन भी बढ़ता है और दुर्गा और उम्र के बीच पकड़ा-पकड़ी का खेल लंबा प्रतीत होता है। फिल्म 10-15 मिनट कम की जा सकती थी। एक्शन के बीच किरदारों का सामंजस्य बैठाने में समय लगता है। फिल्म के स्क्रीनप्ले में कसावट की कमी है। संगीत की बात करें, तो ‘की करिये’ और ‘दमदम मस्त कलंदर’ जैसे गाने अच्छे बन पड़े हैं। तुर्की और अफगानिस्तान की गलियों में फिल्माए गए चेजिंग दृश्य दिलचस्प हैं। त्रिभुवन बाबू सादिनेनी की फोटोग्राफी में दम है। फिल्म के कुछ संवाद ध्यान आकर्षित करते हैं।
कोड नेम तिरंगा का ट्रेलर (Code Name:Tiranga Trailer)
कोड नेम तिरंगा का रिव्यू (Code Name:Tiranga Review)
परिणीति चोपड़ा पिछली कुछ फिल्मों से अपनी बबली इमेज से हटकर कुछ अलग करने का प्रयास कर रही है, जिसका सबूत उनकी पिछली संदीप और पिंकी फरार, द गर्ल ऑन द ट्रेन और सायना जैसी फिल्मों में नजर आता है। यहां भी एक एक्शन ओरिएंटेड भूमिका में उनकी चपलता कमाल की लगती है। अपने एक्शन अवतार के साथ-साथ अपने इमोशनल पक्ष को वे बखूबी जी जाती हैं। पंजाबी सिंगर हार्डी संधू मिर्जा की भूमिका में जंचते हैं। खालिद उमर के रूप में शरद केलकर की भूमिका में नएपन का अभाव है। इस तरह के आतंकी को हम फिल्मों में पहले भी देख चुके हैं। अंडरकवर एजेंट के तौर में रजित कपूर और दिब्येंदु भट्टाचार्य ने अपनी भूमिकाओं संग न्याय किया है।