मेडिकल पढ़ो, पर नौकरी की गारंटी नहीं, प्रदेश में डाक्टरों की कोई पोस्ट खाली नहीं; सभी स्वीकृति पदों पर तैनाती

बच्चों को दूसरों की देखादेखी में मेडिकल एग्जाम यानी नीट में धकेलने वाले माता पिता अब इस तथ्य को भी ध्यान में रखें कि हिमाचल में सिर्फ डाक्टर होना नौकरी की गारंटी नहीं होगा। इसकी वजह यह है कि राज्य में सरकारी क्षेत्र में डाक्टरों के खाली पद ही नहीं बचे हैं। हालात लगभग टीजीटी के जैसे होने वाले हैं, जहां बीएड वाले ज्यादा हैं और पद कम। राज्य स्वास्थ्य निदेशालय के तहत वर्तमान में डाक्टरों के कुल स्वीकृत पद 2499 हैं और ये सभी भरे हुए हैं। यदि किसी अस्पताल में डाक्टर नहीं हैं, तो उनके पदों के अगेंस्ट किसी अन्य अस्पताल में सरप्लस डाक्टर हैं, लेकिन कुल क्रिएटिड पोस्ट भर गई हैं। अब सिर्फ लोक सेवा आयोग के जरिए डाक्टर रखे जाएंगे और यह भर्ती रेगुलर आधार पर ही होगी। ये सभी 2499 पद मेडिकल ऑफिसर के हैं और इनमें ही स्पेशलिस्ट डाक्टरों को मर्ज किया गया है।

हालांकि इसी कैडर में वर्तमान में 375 स्पेशलिस्ट डाक्टर भी हैं। जहां तक छह सरकारी मेडिकल कालेजों की बात है, तो यहां 980 डाक्टर फैकल्टी में हैं। राज्य में पिछले चार साल में डाक्टरों के 260 पद और सृजित किए गए हैं। इस अवधि में 1778 डाक्टरों की भर्ती भी हुई। इस कारण खाली पद अब नहीं बचे हैं। अब यदि नई भर्ती करनी है, तो संख्या बढ़ानी होगी। इसका भी एक तरीका यह है कि स्पेशलिस्ट कैडर को अलग कर दिया जाए। इससे पहले डाक्टर ऐसा करने पर सहमत नहीं थे, लेकिन इस बार शायद बजट में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर कैडर अलग करने पर ऐलान कर दें। इससे करीब 500 पद भी भरने के लिए मिल सकते हैं।

हर साल तैयार हो रहे डाक्टर

हिमाचल के पास छह मेडिकल कालेज अब सरकारी क्षेत्र में हैं। आईजीएमसी, टांडा के बाद अब मंडी के नेरचौक, हमीरपुर, सिरमौर के नाहन और चंबा में मेडिकल कालेज हैं। इसके अलावा एम्स बिलासपुर में शुरू हो गया है और सोलन में एमएमयू निजी क्षेत्र में हैं। अब से हर साल 870 डाक्टर एमबीबीएस के बाद निकलेंगे। 309 सीटें एमडी की हैं और 95 सीटें एमडीएस की। ये स्पेशलिस्ट डाक्टर होंगे।

यूक्रेन से लौटे, अब डिग्री कैसे

रूस के हमले के कारण जान बचाकर यूके्रन से लौटे हिमाचल के बच्चों की ये आधी-अधूरी डिग्री अब कैसे पूरी होगी? ये सबसे बड़ा सवाल है। इस बारे में जब स्वास्थ्य सचिव अमिताभ अवस्थी से पूछा गया कि अभी इंतजार करना होगा। लड़ाई हमेशा के लिए नहीं रहती। हो सकता है इन बच्चों को वापस लौटने का मौका मिल जाए। यदि भारत सरकार ने ही इस बारे में कोई फैसला ले लिया तो भी मसला हल हो जाएगा।